अभियान द्वारा बाल विवाह को रोकने के लिए अभिनव पहल

jaipur-100x100जयपुर। ‘‘बालिकायें सिर्फ वधु ही नहीं – गर्ल्स नॉट ब्राइड’’ नामक अभियान आज राज्य में यूनीसेफ एवं उरमूल ट्रस्ट द्वारा एक अभिनव आयोजन ‘‘बियोंड़ नावेला नामक’’ पुस्तक विमोचन से किया गया। इस पुस्तक में थार रेगिस्तान में आयोजित सैकड़ों बालिका शिविरों की उन हजारों लड़कियों में से
11 लड़कियों की कहानियॉं का संग्रह है- जिन्होंने अपने गॉंव व समाज में परिवर्तन की अगुवाई की है और समाज में रोल मॉड़ल के रूप में उभर रही हैं।
यूनीसेफ एवं उरमूल ट्रस्ट द्वारा बीकानेर एवं जैसलमेर जिलों में इसअभियान द्वारा बाल विवाह के खिलाफ कार्यक्रम की शुरूआत की जा रही है। प्रबुद्ध शिक्षा शास्त्री स्व. अनिल बोर्दिया को समर्पित इस पुस्तक का विमोचन श्रीमती दीपक कालरा, राजस्थान बाल संरक्षरण आयोग की अध्यक्ष – श्रीमती दीपक कालरा, राज्य सरकार की शिक्षा सचिव श्रीमती वीनु गुप्ता, हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्व-विद्यालय के उपकुलपति सन्नी सेबेस्टियन, राज्य यूनीसेफ प्रमुख सेम्मुयल मुवांनगिज व वरिष्ठ शिक्षा विद् डॉं. शारदा जैन एवं विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के समक्ष किया गया।
उरमूल ट्रस्ट के सचिव अरविन्द ओझा ने बताया कि संस्था द्वारा गत कई वर्षों से आयोजित किये गये सैकड़ों बालिका शिविर पश्चिमी राजस्थान के हजारों गांवों के लिए महत्वपूर्ण शैक्षणिक क्रान्ति के रहे जिनके माध्यम से इस इलाके की 35 हजार से भी ज्यादा लडकियॉं शिक्षित हो पाई और आज
अपने जीवन को बेहतर बनाने में लगी हुई हैं। ओझा ने बताया कि बालिका  शिविरों से ऐसी लड़कियों को जोड़ा गया जो या तो कभी स्कूल ही नहीं जा सकीं या उन्हें सामाजिक, पारिवारिक या आर्थिक कारणों से बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

हजारों लड़कियों की सफलता को कहानियों की अभिव्यक्ति एवं शिविर के दौरान अनुभव बताने के लिए पुस्तक में चर्चित-रोल मॉडल लड़कियां संतोष, मनु, बसन्ती, सलेमा, मगी भी कार्यक्रम में मौजूद थी। इन लड़कियों पर बनी लघु फिल्म का भी प्रदर्शन किया गया।
छत्तरगढ़ तहसील के छोटै से गॉंव बाड़िया की सलेमा बालू ने 21 वर्ष की उम्र में 12वीं कक्षा पास करने की अपनी संघर्षपूर्ण कहानी में स्थानीय बालिका शिविर को महत्वपूर्ण बताया। गाय, बकरिया चराने वाली 23 वर्ष की मगी ने बदहाली की हालत में भी शिक्षा को अपना कैरियर बनाया और अब
नर्सिंग का कोर्स करके सेवा करना चाहती है। मनु ने बताया कि बाल विावह होने के बावजूद भी पढ़ाई जारी रखना बड़ी चुनौती रही।
यूनीसेफ के राज्य प्रमुख सेम्युएल मुंवानगिज ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से बालिकायें वधु नहीं सम्पूर्ण महिला बनकर समाज में बदलाव ला सकती है। राज्य सरकार की शिक्षा सचिव श्रीमती वीनू गुप्ता ने कहा कि ग्रामीण  शिविरों की वजह से बालिकायें सशक्त हो रही हैं और सपने देख रही है।
उन्होंने कस्तूरबा गांधी स्कूलों के माध्यम से ड्राफ्ट आउट की दर कम करने में अधिक संख्या में छात्रावास की व्यवस्था किये जाने की जानकारी दी। प्रमुख शिक्षा विद् शारदा जैन ने कहा कि ‘लड़कियों को सशक्त करने में आवासीय शिविरों की महत्वपूर्ण भूमिका का मूल्यांकन किया है।

राजस्थान बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष दीपक कालरा ने कहा कि आज केन्सर की तरह प्राइवेट कोचिंग 80000 रूपये देकर भी श्विास पैदा नहीं किया जा रहा है इसलिए इस तरह के शिविरों की महत्ता के मॉडल का अपनाया जाना चाहिये। आत्म विश्वास एवं सशक्त महिलाओं को तैयार करने
की जरूरत है। उन्होंने कहा कि रोल मोडल के ये उदाहरण समाज में परिवर्तन लायेंगे। हरिदेव पत्रकारिता विश्व विद्यालय के उपकुलपति सन्नी सेब्सिरियल ने पुस्तक के अंशों को रेखांकित करते हुए कहा कि तेजी से बदलाव हो रहा है जो समाज में परिलक्षित हो रहा है।
इस अवसर पर पुस्तक की लेखिका दीपिका नायर ने भी अपने अनुभव सुनाये।

 

कल्याण सिंह कोठारी
मीडिया सलाहकार

 

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