जयपुर। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने राजनीतिक दलों को आरटीआई एक्ट से बाहर रखे जाने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि राजनीतिक दल कम से कम अपने वित्तीय मामलों को लेकर तो सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आने चाहिए। राय ने जयपुर में सूचना का अधिकार मंच की ओर से हुई प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जनता को यह जानने का तो हक है कि राजनीतिक दल किसी भी काम में कितना पैसा खर्च करते हैं। हा, उनकी विचारधारा कोई भी, किस रूप में वे काम करते हैं, इस बाबत वे अपनी बात अपने तक रख सकते हैं। राय ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपनी बात छिपाने के मामले में सभी दल एकराय से एक मत हो गए। आमतौर पर किसी भी मुद्दे पर वे एकसाथ नहीं आते। उन्होंने कहा कि जब सूचना का अधिकार कानून लाया जा रहा था तो कहा गया था कि इसमें कोई भी संशोधन बिना आमजन की राय, सुझाव के नहीं किया जाएगा। दुर्भाग्य है कि इस मुद्दे पर हमें धोखे में रखा गया। किसी को बुलाया नहीं गया। बातचीत नहीं की गई और फैसला कर लिया गया। संसद में वे अपने अधिकारों का इस प्रकार उपयोग कर लेते हैं, जहां हम नहीं जा सकते। सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि यह मामला कुछ ऐसे ही है जैसे खुद ही आरोपी, खुद ही पैरवी करने वाले, खुद ही जज और अपने ही पक्ष में फैसला भी। फिर कैसा निर्णय।
उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र पैसों की बली चढ़ गया है। तब ही तो राजनीतिक दल पैसों की लेनदेन को लेकर खुलकर बताना नहीं चाहते। दलों का तर्क है कि वे इनकम टैक्स विभाग या चुनाव आयोग तो इसकी जानकारी देते ही है। तो उनसे पूछना चाहिए कि यह सब जानकारी जनता को देने में क्या तकलीफ है। उन्होंने बताया कि मंच की ओर से सूचना का अधिकार का राष्ट्रीय जन अभियान और सूचना का अधिकार मंच की ओर से इस निर्णय के खिलाफ 5 अगस्त को स्टेच्यू सर्किल पर प्रदर्शन किया जाएगा। दिल्ली में 6 अगस्त को जनमंच का आयोजन किया जाएगा। इसके लिए सभी दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रण भेजा गया है।