प्रश्न के अपूर्ण उत्तर पर किरण नें दिया मर्यादा हनन का नोटीस

kiran thumbउदयपुर। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं विधायक किरण माहेश्वरी नें उदयपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ स्थापित करने के संदर्भ में उनके ताराकिंत प्रश्न क्रमांक 144 के असत्य, अपूर्ण एवं भ्रामक उत्तरपर गहरा रोष व्यक्त किया है। यह सदस्यों एवं सदन की मर्यादा का गंभीर हनन है। किरण माहेश्वरी नें विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख कर मांग की उन्हें अध्यक्षीय निर्देश दिनांक 14 मार्च 1964 के अनुसार इन गंभीर त्रुटियों के प्रति सदन का ध्यान आकृष्ट करने की अनुमति दी जाए।
किरण नें प्रश्न के भाग 1 में पूछा था कि उदयपुर में स्वतंत्रता पूर्व एवं पश्चात् किस तिथि तक उच्च न्यायालय कार्य कर रहा था ? इसकी स्थापना किस आदेश के अन्तर्गत की गई थी तथा इसे किस आदेश से बंद किया गया? उदयपुर में तत्कालीन संयुक्त राजस्थान राज्य के उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ 29.08.49 तक कार्यरत् थी। तत्पश्चात 22.05.1950 तक उच्च न्यायालय की एक पीठ उदयपुर में कार्यरत् थी। किन्तु यह सूचना उत्तर में छिपाई गई है।
प्रश्न के भाग 2 में पूछा गया था कि जयपुर में उच्च न्यायालय की पीठ कब स्थापित की गई व इसकी स्थापना के मुख्य कारण एवं आधार क्या थे ? इस प्रश्न के उत्तर में जयपुर में 1976 में खण्डपीठ की स्थापना के कारण एवं आधार के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई है। प्रश्न के भाग 3 में पूछा गया था कि उदयपुर सम्भाग के सभी जिलों एवं भीलवाडा़ जिले से जोधपुर की न्यूनतम एवं अधिकतम दूरी कितनी है ? किन्तु इसके उत्तर में मात्र उदयपुर शहर एवं भीलवाड़ा से जोधपुर की दूरी ही बताई गई है। प्रत्येक जिले की अधिकतम एवं न्युनतम दूरी की कोई सूचना नहीं दी गई है।
प्रश्न के भाग 4 के उत्तर में मात्र एक ज्ञापन का उल्लेख है, जो 13 अगस्त 2013 को दिया गया। इससे पूर्व भी सरकार को कई ज्ञापन विविध संगठनों द्वारा दिए गए थे। किन्तु किसी का भी उल्लेख नहीं किया गया है। उत्तर में सरकार द्वारा पूर्व में इन पर की गई कार्यवाही का भी उल्लेख नहीं है। वर्ष 2008 में राज्य सरकार नें उच्च न्यायालय से उदयपुर में खण्डपीठ के लिए अनुशंषा हेतु अनुरोध किया था। उत्तर में सरकार के मंतव्य के बारे में भी कूछ नहीं बताया गया है।
इस प्रकार उक्त प्रश्न के उत्तर में गंभीर तथ्य संबंधी त्रुटियाँ है। महत्वपूर्ण सूचनाएं नहीं दी गई है। सदस्यों के प्रश्नों का असत्य, मिथ्या, अपूर्ण एवं भ्रामक उत्तर देना सदन के विशेषाधिकार एवं मर्यादा पर गंभीर आघात है। अतएव किरण नें विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही प्रारम्भ करने का भी निवेदन किया है।

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