जैसे धन दान व रक्त दान की महिमा है, ठीक वैसे ही अंग दान की उससे भी ज्यादा महत्ता है। इन दिनों अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं जो अंग दान के लिए शपथ पत्र भरवा रही हैं। इसे बहुत पुनीत कार्य समझा जाता है। हमारे किसी अंग के दान से अगर किसी के जीवन में उजियारा आता है, किसी की जिंदगी बेहतर होती है, तो इससे बेहतर पुण्य कार्य क्या हो सकता है? मगर इसके विपरीत ऐसे लोग भी हैं, जो अंग दान के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि इस जन्म में हम जिस अंग का दान करेंगे, अगले जन्म में उसका अभाव हो जाएगा। उनके कहने का तात्पर्य है कि अगर हम आंख का दान करते हैं, तो अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे। लेकिन वैज्ञानिक रूप से इसका कोई आधार नहीं है। विज्ञान के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर का विघटन हो जाता है, और कोई भी अंग अगले जन्म में नहीं जाता। यह पूरी तरह से भौतिक प्रक्रिया है। अव्वल तो पुनर्जन्म भी वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है। इसलिए अंगदान के पक्षधरों का कहना है कि अंग दान एक महान कार्य है और इसे किसी भी धार्मिक मान्यता या अंधविश्वास से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
दूसरे पक्ष का कहना है कि अंतिम संस्कार संपूर्ण अंगों के साथ ही किया जाना चाहिए, इसीलिए तो किसी की मृत्यु होने पर प्रयास यह रहता है कि शव का पोस्टमार्टम न किया जाए। दूसरा तर्क यह है कि देवता भी अंग भंग जानवर की बलि स्वीकार नहीं करते। बलि को देवताओं को अर्पित किया जाने वाला पवित्र कर्म माना जाता है। इसलिए उस जानवर को चुना जाता है जो स्वस्थ, संपूर्ण और निर्दोष हो। आपको ख्याल में होगा कि किसी बकरे की बलि नहीं चढाई जा सके, इसके लिए उसका कान काट दिया जाता है, ताकि वह अंग भंग की श्रेणी में आ जाए। उसे अमर बकरा कहा जाता है। इसी प्रकार अग्नि देवता को समर्पित किया जा रहा शव अंग भंग नहीं होना चाहिए। मजबूरी की बात अलग है। यदि कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो कोई उपाय नहीं। दुर्घटना में मौत को अकाल मृत्यु कहा जाता है, उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती, वह भटकती रहती है। प्रकृति की भी यही व्यवस्था है कि जैसा हम उसे देंगे, पलट कर वही हमें लौटा देती है। कुल मिला कर दोनों पक्षों के अपने दमदार तर्क हैं। प्रगतिशील लोग अंगदान को महान कार्य बताते हैं और परंपरावादी धार्मिक लोग अंगदान के पक्ष में नहीं हैं।
-तेजवाणी गिरधर 7742067000