क्या मूर्ति में शक्ति होती है?

हिंदू संस्कृति में मूर्ति पूजा का बड़ा महत्व है। अधिसंख्य हिंदू मंदिर जाते हैं और मूर्ति पूजा करते हैं। मूर्ति के सामने खड़े हो कर सच्चे दिल से पूजा-अर्चना व आराधना करने से इच्छा की पूर्ति होती है, यह भी पक्की धारणा है। न केवल धारणा है, अपितु ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे, जिनसे प्रमाणित हो सकता है कि मूर्ति पूजा करने से इच्छित फल मिलता है। बावजूद इसके हिंदू संस्कृति की ही एक शाखा आर्य समाज मूर्ति पूजा में यकीन नहीं रखता। सच क्या है, जरा विचार कर के देखें।
असल में आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने केवल इसी कारण मूर्ति पूजा का निषेध कर दिया कि मूर्ति में प्रतिष्ठित जो देवता या भगवान खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकता, वह भला हमारा भला क्या करेगा? ऐसा ख्याल उनमें मन में तब आया, जब उन्होंने देखा कि एक मंदिर में मूर्ति पर एक चूहा चढ़ कर मस्ती कर रहा है और मूर्ति के सामने रखा प्रसाद खा रहा है। तब उनकी सोच बनी कि एक चूहे से मूर्ति अपनी रक्षा नहीं कर पा रही है तो मूर्ति की पूजा करने से क्या लाभ? तार्किक ढंग से यह बात सही प्रतीत होती है।
इसी कड़ी में हमारी यह भी जानकारी है कि मुस्लिम आतताइयों ने देश के अनेक स्थानों पर मंदिर ध्वस्त किए, मूर्तियां तोड़ीं, मगर उनका कुछ भी नहीं बिगड़ा। मूर्तियां अपनी ही रक्षा नहीं कर पाईं। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि क्या वाकई मूर्ति में कोई शक्ति नहीं होती? बावजूद इसके मूर्तियों में अधिसंख्य हिंदुओं की प्रगाढ़ आस्था है। अनेक ऐसी मूर्तियां संज्ञान में हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि वे चमत्कारी हैं। ज्यादा दूर नहीं जाते। निकटवर्ती नागौर जिले में मेड़ता के पास गांव में बंवाल माता का मंदिर है। यहां देवी की मूर्ति श्रद्धालुओं के सामने ढ़ाई प्याला शराब पीती है। बताते हैं कि कई वैज्ञानिकों ने उसकी जांच-पड़ताल की, मगर वे यह नहीं पकड़ पाए कि वहां कोई चालबाजी तो नहीं है। स्वयं मैंने देखा है कि देवी मां ढ़ाई प्याला शराब पीती है। रहस्य क्या है, कुछ पता नहीं। दिलचस्प बात ये है कि जिस श्रद्धालु के पास में तंबाकू होती है, उसकी शराब मूर्ति ग्रहण नहीं करती। इसको भी मैने आजमाया, तो सच निकला। ऐसी मान्यता है कि जिस श्रद्धालु का शराब रूपी प्रसाद देवी मां ग्रहण करती है, उसकी मनोकामना पूरी होती है। जिसका ग्रहण नहीं करती, उसके बारे में यह मान्यता है कि अभी देवी उससे प्रसन्न नहीं है।
बात लंबी हो रही है, मगर प्रसंगवश बताना चाहता हूं कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनकी मान्यता है कि शिव जी, देवी मां, हनुमान जी, गणेश जी आदि देवताओं के अतिरिक्त लोक देवता बाबा रामदेव, भैरों जी, गोगा जी आदि तो त्वरित फल देते हैं, जबकि भगवान श्रीकृष्ण व भगवान श्री राम फल नहीं देते, अलबत्ता वे आत्म कल्याण जरूर करते हैं। चूंकि हमारी रुचि भौतिक उपलब्धियों में होती है, इसी कारण देवताओं की आराधना हम ज्यादा करते हैं। इस धारणा की पुष्टि इससे होती है कि देवताओं के तो अनेकानेक मंदिर हैं, जबकि भगवान श्री राम व भगवान श्री कृष्ण के मंदिर कम हैं।
खैर, मुद्दे पर आते हैं। सवाल ये कि क्या मूर्ति में शक्ति होती है? होनी तो चाहिए, क्योंकि मूर्ति निर्जीव पत्थर या धातु की होती है, इस कारण उनकी बाकायदा विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो एक अर्थ में वह सजीव हो जाती है। उसमें ताकत होनी ही चाहिए। मगर फिर वही सवाल कि तो फिर वे अपनी रक्षा क्यों नहीं कर पाती? यानि कि कौतुहल बरकरार है।
मूर्ति में शक्ति होती है, इस धारणा को बड़े पैमाने पर तब बल मिला, जब कुछ साल पहले पूरे देश में गणेश जी की मूर्तियों ने दूध पिया था। हालांकि उसकी वैज्ञानिक विवेचना भी हुई, आलोचना भी हुई। दूसरी ओर न्यायाधीशों व आईएएस अधिकारी स्तर के बुद्धिजीवियों ने भी गणेश जी को दूध पिलाया। बड़ी बहस हुई। किसी ने उसे अंध श्रद्धा करार दिया तो किसी ने वैज्ञानिक कारण बताए। हालांकि निष्कर्ष कुछ नहीं निकला।
मुझे ऐसा लगता है कि मूर्ति में अपने आप में ताकत नहीं होती। सारा रहस्य आस्था में है। हम जब उस पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तो हमारी आत्मिक शक्ति उसमें प्रतिबिंबित होती है। वही आत्मिक शक्ति पलट कर चमत्कार करती है और हमें ये लगता है कि मूर्ति ने चमत्कार किया है। जिस मूर्ति की बहुत अधिक मान्यता होती है, वहां चमत्कार की संभावना इसलिए बढ़ जाती है, क्यों कि वहां बहुत अधिक लोगों की आत्मिक शक्ति मूर्ति पर केन्द्रित होती है।
ऐसा भी हो सकता है कि भौतिक या त्वरित चमत्कार मूर्ति से नहीं होते होंगे। हम अपेक्षा करें कि वह हम मानवों की ही तरह व्यवहार करे तो यह संभव नहीं है। हां, उसमें धारणा करें तो वह अदृश्य रूप से फल देती होगी।
मूर्ति ही क्यों, किसी स्थान व मजारों आदि पर भी लोग इसी प्रयोजन मत्था टेकते हैं कि वहां मनोकामना पूरी होगी। आप देख सकते हैं कि कभी-कभी अजमेर की दरगाह ख्वाजा साहब के सामने कोई फकीर या कलंदर खड़ा हो कर सवाल करता है और तब तक डटा रहता है, जब तक वह सवाल पूरा नहीं होता। यह हठ योग है। ऐसे हठियों की मनोकामना भी पूरी होती ही है। हालांकि इसका साइंस कुछ और है।
आखिर में एक बात जरूर कहना चाहता हूं। वस्तुतः यह प्रकृति चूंकि विरोधी तत्त्वों से मिल कर बनी है, इस कारण इसमें विरोधाभास भी खूब हैं। यह इतनी रहस्यपूर्ण है कि हम इसकी थाह नहीं पा सकते। यहां कुछ भी अंतिम सत्य नहीं है। जिसे हम सत्य मानते हैं, वही देश, काल, परिस्थिति बदलने पर असत्य हो जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि हम न तो ये कह सकते हैं कि मूर्ति में शक्ति होती है और न ये कि वह केवल पत्थर है। कहीं है तो कहीं नहीं है। कभी है तो कभी नहीं। तभी तो जब मूर्ति के सामने कामना करने पर पूरी होती है तो कहते हैं कि वह चमत्कारी है और पूरी नहीं होती तो मूर्ति को दोष देने की बजाय खुद को जिम्मेदार मानते हैं कि हमारी श्रद्धा में ही कमी रह गई होगी।
मुझ अज्ञानी व अल्पबुद्धि को मूर्ति के रहस्य के बारे में जो कुछ समझ में आया है, वह साझा किया है। वास्तविक रहस्य क्या है, उसके आगे मैं सरंडर करता हूं। नेति नेति नेति।

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