क्या यह धरती ही नर्क है?

एक उक्ति है नानक दुखिया सब संसार। अर्थात पूरा संसार दुखी है। यहां हर व्यक्ति दुखी है। चाहे बहुत धनवान हो या सत्ताधीष, दिखता भले ही सुखी हो, मगर उसके भी अपने दुख होते हैं। कोई विपन्नता के कारण परेषान है, तो कोई औलाद न होने के कारण, कोई औलाद के नालायक होने से दुखी है तो कोई पति अथवा पत्नी से संतुश्ट नहीं है। कोई गंभीर बीमारी से पीडित है तो कोई अपनी संतान के बीमार होने के कारण। संसारी मनुश्यों की छोडिये, संत-महात्मा तक व्याधियों से पीडित देखे गए हैं। ऐसे में यह सवाल खडा होता है कि कहीं यह धरती ही तो नर्क नहीं है। बेषक यहां सुख भी हैं, मगर उसका अंत तो दुख ही है। हालांकि षास्त्रों में स्वर्ग व नर्क का अलग से उल्लेख है, और धरती को कर्म व भोग की भूमि कहा गया है, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि ये धरती ही नर्क है। बेषक यह कर्म भूमि है। मनुश्य को कर्म की सुविधा है, जो कि पषु को नहीं है। लेकिन प्रत्यक्षतः प्रतीत होता है कि इस धरती पर कोई भी सुखी नहीं है। अव्वल तो तथाकथित नर्क देखा किसने है। अगर नर्क अलग से है तो फिर धरती पर नारकीय दुख क्यों हैं, वे तो नर्क में ही होने चाहिए थे। हां, इतना जरूर हो सकता है कि तथाकथित नर्क में धरती से कई गुना अधिक दुख भोगने पडते हों।

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