आम तौर पर हम रामभक्त पवनपुत्र हनुमानजी को देवताओं में ही शामिल मानते हैं, लेकिन यह कम लोगों को जानकारी है कि वे देवता नहीं हैं। वे न नाग योनि से हैं न पितर योनि से, न किन्नर हैं, न यक्ष। उनकी अलग ही योनि है। और वह है किंपुरुष। हालांकि वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश नहीं हैं, मगर उनके जितनी सामर्थ्य रखते हैं। वे अपनी इच्छा से अपने में किसी भी देवता को प्रकट कर सकते हैं।
कहते हैं कि श्रीराम के अपने निजधाम प्रस्थान करने के बाद हनुमानजी और अन्य वानर किंपुरुष नामक देश को प्रस्थान कर गए। वे मयासुर द्वारा निर्मित द्विविध नामक विमान में बैठ कर किंपुरुष नामक लोक में चले गए। किंपुरुष लोक स्वर्ग लोग के समकक्ष है। षास्त्रों के अनुसार यह किन्नर, वानर, यक्ष, यज्ञभुज् आदि जीवों का निवास स्थान है। योधेय, ईश्वास, अर्षि्टषेण, प्रहर्तू आदि वानरों के साथ हनुमानजी इस लोग में प्रभु रामकी भक्ति, कीर्तन और पूजा में लीन रहते हैं।
जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक किंपुरुष भी था। नेपाल और तिब्बत के बीच हिमालयी क्षेत्र में कहीं पर किंपुरुष की स्थिति बताई गई है। हालांकि पुराणों अनुसार किंपुरुष हिमालय पर्वत के उत्तर भाग का नाम है। यहां किन्नर नामक मानव जाति निवास करती थी। बताते हैं कि इस स्थान पर मानव की आदिम जातियां निवास करती थीं। यहीं पर एक पर्वत है जिसका नाम गंधमादन कहा गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। ज्ञातव्य है कि पांडव अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके गंधमादन के पास पहुंचे थे। यह कथा भी प्रचलित है कि एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई। हनुमान जी लेटे हुए थे। भीम ने उनसे रास्ते से अपनी पूंछ हटाने को कहा, इस पर हनुमानजी ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।
गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। गंधमादन सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।