
दोस्तो, आपका ख्याल में होगा कि किसी का निधन हो जाने पर बारहवें तक नियमित बैठक में नाते-रिश्तेदार महिलाएं आ कर रुदन का करती हैं। शोकाकुल महिला को जानबूझ कर रुलाया जाता है। क्यों?
देहात में यह चलन अब भी है, लेकिन षहरों में आजकल कई लोग परिवार में किसी सदस्य का निधन हो जाने पर तीये की बैठक के साथ ही घोशणा कर देते हैं कि आज के बाद कोई नियमित बैठक नहीं होगी। उसकी वजह यह है कि दुकानदार तीये की बैठक के बाद दुकान नियमित खोलना चाहता है या नौकरीपेषा नौकरी पर जाना चाहता है। जिन परिवारों में नियमित बैठक होती है, उनमें नाते-रिष्तेदार महिलाएं आ कर रूदन करती हैं। जाहिर तौर पर परिवार की षोकाकुल महिलाएं भी बहुत रोती हैं। विषेश रूप से जिस महिला के पुत्र, पुत्री अथवा पति का निधन हो चुका होता है, वह फूट फूट कर रोती है। कई बार रोते-रोते बेहोष तक हो जाती है। ऐसे में परिवार के पुरूश सदस्य क्रोधित हो जाते हैं और महिलाओं से रूदन बंद करने को कहते है। इस पर बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि रूदन की परंपरा यूं ही नहीं बनाई गई है। अच्छा हमें भी नहीं लगता, मगर रूदन से षोकाकुल महिला की रूलाई बाहर आ जाती है। दिल का दर्द आंसुओं के जरिए बह जाता है। इसलिए जानबूझ कर रूलाया जाता है। अगर उसे रोने नहीं दिया जाएगा तो परिजन की मौत का सदमा उसके दिल में बैठ जाएगा, जो उसके स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदेह हो सकता है।