ज्योतिष में विदेश यात्रा के योग पर सवाल

दोस्तो, नमस्कार। ज्योतिश विद्या में कुंडली या हस्तरेखा का अध्ययन कर विदेष यात्रा का योग बताया जाता है। सवाल यह है कि विदेष किसे कहा जाता है? पुराने जमाने में एक षहर से दूसरे षहर जाने को भी विदेष कहा जाता था, जबकि अब एक देष से दूसरे देष जाने को। ऐसे में विदेष यात्रा के योग का क्या अर्थ निकाला जाए? वास्तव में “विदेश” शब्द का अर्थ समय और संदर्भ के अनुसार बदलता रहा है। भारत में जब संचार और आवागमन सीमित था, तब अपने नगर या सीमित भूभाग से बाहर जाना ही विदेश जाना कहलाता था। उदाहरण के लिए, किसी गांव या राज्य की सीमा पार करके दूसरे क्षेत्र में जाना “विदेश यात्रा” कही जाती थी। धर्मशास्त्रों और पुराणों में भी “विदेश” शब्द का प्रयोग “अपना देश छोड़ कर परदेश में जाना” (भौगोलिक या सांस्कृतिक दृष्टि से) के अर्थ में हुआ। समुद्र पार जाना तो म्लेच्छ भूमि मानी जाती थी और वह विशेष अशुद्धि का कारण समझी जाती थी। इसलिए ज्योतिष के शास्त्रों में विदेशगमन का महत्त्व काफी बड़ा माना जाता था। अब “विदेश” से आशय एक देश से बाहर किसी दूसरे संप्रभु देश में जाना होता है। यानी भारत से अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा या खाड़ी देशों में जाना। नगर या राज्य के भीतर यात्रा को यात्रा या प्रवास कहते हैं, “विदेश यात्रा” नहीं। जब पारंपरिक ज्योतिष ग्रंथ “विदेश यात्रा” का योग बताते हैं, तो उनका आशय मूलतः व्यक्ति के जन्म स्थान से दूर, परदेश में लंबा प्रवास होता है। यह परदेश देश के भीतर भी हो सकता है, पर आज की व्यावहारिक भाषा में इसे अंतरराष्ट्रीय यात्रा ही माना जाता है।
कुल जमा यही समझ में आता है कि घर से दूरस्थ स्थान पर जाने को विदेष यात्रा कहा जाता है, पहले वह एक षहर से दूसरे षहर के लिए माना जाता था, जबकि अब दूसरे देष के लिए। इसमें किलोमीटर में दूरी का जिक्र नहीं किया जा सकता।

 

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