दोस्तो, नमस्कार। अगर आप किसी की षव यात्रा में गए हों, तो आपको पता होगा कि षवयात्रा के आधे मार्ग में षव की दिषा बदल दी जाती है। षव की दिषा बदलने के लिए ष्मषान के पास बाकयदा चबूतरा बनाया जाता है, जिसे मारवाड में आधेठो कहा जाता है। क्या कभी विचार किया है कि ऐसा क्यों?
इसे तफसील से समझने की कोषिष करते हैं। जब घर से षव यात्रा निकाली जाती है तो षव के पैर आगे और सिर पीछे रखा जाता है। मान्यता है कि प्राणी जब ष्मषान स्थल की ओर जा रहा है तो उसके लिए पैर आगे होने चाहिए, मानो वह चल कर जा रहा हो। आधे मार्ग पर उसकी दिषा बदल जाती है और षव का सिर आगे व पैर रखे जाते हैं, यानि उसने संसार का परित्याग कर दिया है। यह संकेत माना जाता है कि मृत व्यक्ति अब वापस लौट कर नहीं आएगा। यह जीवन से मृत्यु की यात्रा का प्रतीकात्मक विभाजन है। कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि आधे रास्ते तक मृतक का मुख घर की ओर रहता है, क्योंकि अभी वह अपने घर-परिवार से जुड़ा माना जाता है। आधे रास्ते पर दिशा बदलने से संकेत होता है कि अब उसका संबंध भूलोक से पूरी तरह समाप्त हो गया। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी बताया जाता है, वह यह कि परिजन को यह भाव दिया जाए कि अब लौटने की कोई आशा शेष नहीं है। एक धारणा यह है कि प्राणी का मुख मोड़ दो ताकि आत्मा आसक्ति के कारण पीछे मुड ़कर घर न देखे।
