दोस्तो, नमस्कार। हम सब के ख्याल में है कि पिता के निधन पर पुत्र अंत्येश्टि से ठीक पहले बाल कटवाता है, लेकिन चोटी छोडी जाती है। क्या आपने विचार किया है कि ऐसा क्यों? वस्तुतः पिता के निधन पर हिन्दू परंपरा में पुत्र द्वारा सिर मुंडवाना एक सामान्य शोक प्रथा है, जो पितृ ऋण से मुक्ति, श्रद्धा और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। मगर चोटी यानि षिखा को नहीं काटने के पीछे गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं। शिखा विशेष रूप से ब्राह्मण, वैदिक परंपरा और संस्कार का प्रतीक होती है। यह आध्यात्मिक ऊर्जा और ज्ञान के अनुशासन की निरंतरता का चिन्ह मानी जाती है। ज्ञातव्य है कि सिर के जिस स्थान पर चोटी होती है, उसे ब्रह्मरंध्र या सहस्रार चक्र कहते हैं, जो आध्यात्मिक जागरण का केन्द्र माना जाता है। इसे पूरी तरह से काटना आध्यात्मिक रूप से अनुचित माना जाता है।
चोटी न रहने पर व्यक्ति कई धार्मिक कार्यों और कर्मकांडों के लिए अयोग्य माना जाता है। उदाहरणतः यदि शिखा नहीं हो, तो पिंडदान, श्राद्ध, हवन, संध्या वंदन आदि करने में बाधा मानी जाती है। सिर के बाकी हिस्से के बाल काटकर वैराग्य और शोक प्रकट किया जाता है। लेकिन चोटी को छोड़ना यह संकेत देता है कि धार्मिक जीवन और कर्तव्य अब भी जारी है। चोटी को न काटना धार्मिक परंपरा, आत्मिक ऊर्जा और कर्मकांड की निरंतरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक माना गया है।