दोस्तो, नमस्कार। चालीस के अंक का बहुत महत्व है, यह हम सब जानते हैं। आइये, जरा विस्तार से समझने की कोषिष करते हैं।
आपको ख्याल में होगा कि इस्लाम जगत में मोहर्रम पर मुसलमान 40 दिन तक शोक मनाते हैं। हजरत मूसा को अल्लाह ने तोरेत देने के लिए 40 रातों के लिए तूर पर्वत पर बुलाया था। हजरत मुहम्मद साहब को भी 40 वर्ष की आयु में ही पहला ईश्वरीय संदेश प्राप्त हुआ। चालीस का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जब अजमेर आए तो आनासागर के पास स्थित पहाड़ी पर 40 दिन इबादत की थी। इस स्थान को ख्वाजा साहब का चिल्ला कहा जाता है। बताते हैं कि यहां इबादत करने के बाद जब ख्वाजा साहब दरगाह वाले स्थान की ओर जाने लगे तो कहते हैं कि उनकी जुदाई में पहाड़ के भी आंसू छलक पड़े थे। पहाड़ी के निचले हिस्से पर आज भी आंसू की सी आकृति साफ बनी दिखाई देती है। इस्लामिक मान्यता है कि हमारे पेट में एक निवाला भी हराम का हो तो चालीस दिन तक इबादत कबूल नहीं होती। बाइबिल में भी बताया गया है कि हजऱत मसीह ने 40 दिन रोज़े रखे थे। बाइबिल में 40 का अंक अक्सर दिखाई देता है। सख्या 40 न्याय या परीक्षा से सम्बन्धित सन्दर्भों में अक्सर पाई जाती है, जिसके कारण कई विद्वान इसे परख या परीक्षा की संख्या भी समझते हैं। बाइबिल के पुराने नियम में, जब परमेश्वर ने पृथ्वी को जल प्रलय से नष्ट कर दिया, तो उसने 40 दिन और 40 रात तक वर्षा को आने दिया।
नए नियम में, यीशु की परीक्षा 40 दिनों और 40 रातों तक की गई थी। यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बीच 40 दिन थे।
ऐसी मान्यता भी है कि जो स्थान चालीस दिन तक सुनसान होता है या आबाद नहीं होता, वहां प्रेत आत्माएं डेरा जमा लेती हैं।
सनातन धर्म में भी सभी देवी देवताओं की चालीसाएं गायी जाती हैं, जिनमें चालीस दोहे होते हैं। इसी प्रकार सिंधी समुदाय चालीस दिवसीय अखंड ज्योति महोत्सव यानि चालिहो मनाता है। सिंधी समाज के लोग चालीस दिन तक व्रत-उपवास रख कर पूजा-अर्चना के साथ सुबह-शाम झूलेलाल कथा का श्रवण करते हैं। इस महोत्सव में झूलेलाल मंदिरों को विशेष रूप से सुसज्जित किया गया है तथा मंदिरों में कथा, आरती, भजन-कीर्तनों के साथ धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। अर्थात चालीस अंक का बहुत महत्व है, मगर इस गणित या कीमिया का राज क्या है? इसके बारे में कहीं उल्लेख नहीं मिलता। अंक चालीस ही क्यों, बीस या तीस क्यों नहीं? इस बारे में मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि कोई भी नई आदत या आत्मिक अनुशासन विकसित करने में लगभग 40 दिन लगते हैं। इस दौरान मन और शरीर एक नई लय में ढलते हैं। इसलिए 40 दिन का समय किसी भी साधना या इबादत को गहराई से अपनाने के लिए उपयुक्त माना जाता है।