पहली झमाझम बारिश के बाद आनासागर ख़ुशी की हिलोरें ले रहा है।अपने उच्चतम शिखर को छूने से कुछ ही दूर जल छलक पड़ने को आकुल नज़र आ रहा है।हज़ार वर्ष का इतिहास समेटे हुए इस झील ने सैंकड़ो बार यौवन का उद्दाम वेग देखा है तो वहीँ अपने आपको रेत के टीले में बदलते हुए भी पाया है।
दो वर्ष से यह जल से सराबोर है मगर यह बारिश भी उसके उत्सव का पर्व नही है।गंदे नालो के समस्त प्रवाह को झेलने वाली इस झील के हर तट पर गंदगी का सैलाब नजर आ रहा है। पॉलिथीन की थैलियां टूथपेस्ट के पैकेट लकडिया और कचरे के ढेर हर तरफ से मुह छिड़ा रहे है।मछलियो को दाना खिलाने की दानवीरता दुर्गंध
फैला रही है।
झील का आकर्षण हमे इसकी ओर खींचता है गंदगी का सैलाब इससे दूर भागने को मज़बूर कर देता है।आकर्षण और विकर्षण की इस उहापोह में हम प्रशासन नाम के किसी जंतु को ढूँढना चाहते हैं।मगर वह कोई आसान काम नही है।
प्रकृति अपना नेह बरसा सकती है मगर उसे अपने आँचल में सँभालने और सँवारने का हुनर हमारे हाथ में है।इन हाथों को शक्ति और समझ कौन बरसायेगा?
अनंत भटनागर की फेसबुक वाल से साभार
