वर्तमान में हर मनुष्य को अपने जीवन काल में सफलता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना होता हैं क्योंकि बिना संघर्ष के सफलता नहीं पाई जा सकती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हनुमान है। जैसे – रामभक्त हनुमान ने भी लंका जाने के लिए और वहां माता सीता को खोजने के लिए बहुत संघर्ष किया था। इसलिए मनुष्य को संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
सशरीर आज भी हैं हनुमान :-वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी की जयंती के प्रति विद्वानों में मतभेद हैं। हनुमान के भक्त उनकी जयंती प्रथम चैत्र पक्ष पूर्णिमा और द्वितीय कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाते हैं। हनुमानजी का बचपन जितना रोचक और रोमांचक था उतनी ही उनकी युवावस्था भी। कहते हैं कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
संकट कटै मिटे सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलवीरा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय।
नाम महिमा : इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमानजी को बजरंगबली, केसरी नंदन, अंजनीपुत्र, पवनपुत्र आदि अनेक नामों से जाना जाता है।
” श्री मानस के चार आदर्श पात्र है — श्री लक्ष्मण जी, श्री भरत जी, श्री शंकर जी, श्री हनुमान जी | श्री राम के चरित्र को जब समझते है तो येही चार श्री राम के सच्चे सेवक के रूप में दिखाई पड़ते है | यदि तुलनात्मक चर्चा की जाये तो श्री महादेव स्वयं निर्णय देते है की ” हनुमान से बढ़कर श्री राम का परं भक्त और आदर्श सेवक और कोई नहीं है | ”
हनुमान हमारे आदर्श इसलिए भी है क्युकी श्रीमद्भागवत के ग्यारहवे स्कन्ध के षोडश अध्याय के २९ वे श्लोक अनुसार :
” वासुदेवो भगवतां त्वं तू भागवतेष्वाहम |
किम्पुरुषाणाम हनुमान विद्या ध्राणाम सुदर्शन: ||
श्री भगवन कहते है : षडेश्वरयुक्त महापुरुषों में मै वासुदेव हूँ , प्रेमी भक्तो में उद्धव हूँ , किम्पुरुषो (सेवको) में हनुमान और विद्याधरो में सुदर्शन हूँ |
ऐसे दासानुदास श्री बालाजी हनुमान के श्री चरणों में हमारा शत शत बारम्बार नमन है |
इसी प्रकार जब जामवंत भी लंका विजय के अभियान में सबसे बुजुर्ग वानरसेना थे। जब हम सुंदरकांड का पाठ शुरू करते हैं तो शुरुआत में ही उनके नाम का उल्लेख आता है, वह हमें सीख देता है कि हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करें।
जीवन में बड़ा काम करने से पहले तीन चीजें जरूरी हैं :-
पहला- काम शुरू करने के पहले भगवान का नाम लें।
दूसरा- बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें।
तीसरा है – काम की शुरुआत मुस्कुराते हुए करें।
स्वयं हनुमानजी ने भी लंका जाने के पहले इन तीनों काम किया था। उन्होंने हमें बताया कि –
सफलता का पहला सूत्र है—–
सक्रियता। जैसे हनुमानजी हमेशा सक्रिय रहते थे। वैसे ही मनुष्य का तन हमेशा सक्रिय रहना चाहिए और मन निष्क्रिय होना चाहिए। मन का विश्राम ही मेडीटेशन है। आप मन को निष्क्रिय करिए तो जीवन की बहुत-सी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।
सफलता का दूसरा सूत्र है—–
सजगता। मनुष्य को हमेशा सजग रहना चाहिए। यह तभी संभव है, जब उसका लक्ष्य निश्चित होगा। इससे समय और ऊर्जा का सदुपयोग होगा।
इसका उदाहरण यह है कि स्वयं हनुमानजी ने लंका यात्रा के दौरान कई तरह की बाधाओं का सामना किया। सबसे पहले उन्होंने मैनाक पर्वत को पार किया, जहां पर भोग और विलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध थी, लेकिन हनुमानजी ने मैनाक पर्वत को केवल छुआ। अन्य चीजों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया।

इसके बाद उन्हें सुरसा नामक राक्षसी मिली। इसे पार करने के लिए हनुमानजी ने लघु रूप धारण किया। हनुमानजी का यह लघु रूप हमें बताता है कि दुनिया में बड़ा होना है, आगे बढ़ना है तो छोटा होना पड़ेगा। छोटा होने का तात्पर्य यहां आपके कद से नहीं आपकी विनम्रता से है, यानी हमें विनम्र होना पड़ेगा।
सफलता का तीसरा सूत्र है——
सक्षम होना यानी मनुष्य को तभी सफलता मिल सकती है, जब वह सक्षम होगा। सक्षम होने का मतलब केवल शारीरिक रूप से ही सक्षम होना नहीं है, बल्कि तन, मन और धन तीनों से सक्षम होना है। जब हम इन तीनों से पूरी तरह सक्षम हो जाएंगे तभी हम सफलता को प्राप्त कर सकेंगे।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रिय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रिय पंडित परिषद्
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