परम्पराओं के सजीले दीपक

कंचन पाठक
कंचन पाठक

खुशियों, उत्साह एवं परम्पराओं के अनगिनत प्रकाशमान दीपक एवं पीढ़ियों से चली आ रही स्वादिष्ट व्यंजनों से सजी थाली फिर से आ पहुंचा है। आस्था का ज्योतिपर्व … यानि दीपावली।
जहाँ गंदगी है अस्वच्छता है, वहां रोग है … जहाँ रोग है वहाँ यमराज है, मृत्यु है।
कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला ज्योतिपर्व शायद इन्ही अंतर्निहित तथ्यों से प्रेरित हो कभी आरम्भ हुआ होगा … जो भी हो घर और घर के आसपास की सफाई, लिपाई-पुताई, साज-सज्जा, रंगाई ये सब बातें इस त्योहार में अपेक्षित है।
किन्तु सदियों से चली आ रही हमारी परम्परा का अटूट त्योहार दीपावली घर समाज एवं राष्ट्र का स्वच्छता पर्व ना होकर शनैः-शनैः बाकी त्योहारों की तरह अपना शुद्ध स्वरूप खोकर जुए का खेल, मांस मदिरा के सेवन से उन्मत्त होकर पटाखे आतिशबाजियों के शोर और धुंए में विलुप्त होता जा रहा है। सदियों से हमारी सांस्कृतिक धरोहर का स्वर्ण पर्व स्वार्थ और कुरीतियों का पर्व बनता जा रहा है। सक्षम लोग रात भर जुआ खेलते और लाखों रुपया आतिशबाजी में फूंक देते हैं। वहीँ वंचित घरों के बच्चे लालायित ही रह जाते हैं।
हमारे पर्व त्योहार हमारी सांस्कृतिक विरासत है, उन्हें सहेजकर आगे ले जाना होगा, उसे उसके शाश्वत स्वरूप में ही आगे की पीढ़ी तक पहुँचाना होगा, ना कि विकृत करके।
सच तो ये है कि हमारा समाज और पर्व त्योहार विरोधाभासों से अटा पड़ा है अथवा कालान्तर में आगे की पीढ़ी तक आते आते अपना वास्तविक स्वरूप खोकर विकृत हो चुका है।हमें अपने संस्कारों और त्योहारों को विकृति से बचाना होगा।
दीपावली में जहाँ एक ओर लक्ष्मी जी की उपासना आराधना की जाती है वहीँ दूसरी ओर अधिकांश घरों में घर की लक्ष्मी उपेक्षित तिरस्कृत रहती है। दीपावली के दूसरे दिन काली पूजा मनाई जाती है जिसमें महाकालिका शक्ति की आराधना की परम्परा है। किन्तु वस्तुतः देखा जाए तो समाज में उसी शक्तिरूपा की अंश स्त्री का शोषण, तिरस्कार, अवमानना एवं अत्याचार सर्वविदित है।
क्या हीं अच्छा हो कि साफ-सफाई का सन्देश देने वाले इस त्योहार में कुरीतियों की सफाई की जाए, सफाई की जाए विकृत, गन्दी विचारधारा की …वंचितों की थोड़ी-सी मदद कर दी जाए। घर और समाज में व्याप्त अनाचार और अत्याचार की समाप्ति की पहल की जाए। संस्कारों की ज्योति को प्रखर बनाया जाए। झिलमिलाती दीपमालाओं के इस ज्योतिपर्व को ना सिर्फ घर बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की स्वच्छता का पर्व बना लिया जाए।झिलमिलाती दीपमालाओं के इस ज्योतिपर्व को ना सिर्फ घर बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की स्वच्छता का पर्व बना लिया जाए।

– कंचन पाठक, नई दिल्ली

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