स्व. मिश्रीलाल कुमठ की पहली पुण्य तिथी (9 जनवरी) पर विषेष

mishrilalji kumath-श्यामलाल बौराना (पूर्व आचार्य पिपलिया मंडी)- 9 जनवरी 2013 समय दोप. 3.30 बजे नगर के गौरव भैया साहेब (मिश्रीलाल कुमठ) की देहदान यात्रा जिसमें हजारों लोग नम आँखों से इस समाज रत्न को बिदा दे रहे थे। विधाता के निर्णय को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। विडम्बना देखिये उदयपुर से आकर नगरवासियों से अंतिम क्षमा याचना कर पुनः उदयपुर की ओर प्रस्थान ऐसे दानी महायोगी को शत् शत् वंदन ।
शून्य से सफर की शुरूआत में कुमठ परिवार के वरिष्ठ प्रणेता स्व. मन्नालाल जी कुमठ नारायणगढ़ से व्यवसाय हेतु पिपलियामंडी आये। पिपलिया उस समय एक नया बसता हुआ नगर था। उन्होने यहाँ एक आढ़तीया फर्म मेसर्स नागोरी हाजी मुसा ईसा के यहां मुनीम की नौकरी की। प्रतिदिन नारायणगढ़ से पैदल आते। अपनी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा से सेठ का मन जीत लिया और पुत्रों को भी पिपलिया लाने की सोचा मन्नालाल जी कुमठ के चार पुत्रों में सबसे वरिष्ठ श्री हस्तीमल जी कुमठ (प्रथम नगर पंचायत अध्यक्ष) श्री मिश्रीलाल जी, श्री लक्ष्मीलाल जी एवं श्री कोमलसिंह जी कुमठ (नगर के प्रथम इंजीनियर वो भी पिलानी से)।
दोनों भाईयों ने पिपलिया में सड़क पर पल्ली बिछाकर व्यापार शुरू किया उस समय नारायणगढ़ से पिपलिया के ताँगे चलते थे तांगो मे पायदान पर बैठकर आनें में पैसे कम लगते थे दोनो ने कठिनाईयों को उपहार समझा और पायदान का सफर शुरू रखा लेकिन अपनी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और मृदु व्यवहार के चलते पायदान से शुरू हुआ व्यापार सफलता की ऊँची नई मंजीलों को छू गया। मंडी के व्यवसाय में मिश्रीलाल जी कुमठ 50 वर्षो तक निरंतर तेज धूप में तपते रहे, ठंड में ठिठूरते रहे बरसात मे भिगते रहे उसी का परिणाम मंडी में आने वाले किसानों का 90 प्रतिषत माल ‘‘ मन्ना बा की आढ़त में ‘‘ बिकने लग गया। आगे तो आलम ये हो गया कि जब तक भैया सा नहीं जाते तब तक मंडी चालू नहीं होती थी। भैया सा. कि दृढ़ इच्छाषक्ति, ईमानदारी, पारदर्षिता और मृदु व्यवहार से ये सब संभव हो सका। छोटे भैया सा. लक्ष्मीलाल जी कुमठ भी कदम-कदम पर साथ देते रहे।
कुमठ जी ने सामाजिक,धार्मिक,व्यापारिक सफलताओं का पूरा श्रेय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को दिया। अनुषासन,दृढ़इच्छाषक्ति, ईमानदारी से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है ये गुण संघ ने बचपन से ही कूट-कूट कर भर दिये थे। विगत 70 वर्षो से संघ को प्रेरणा मान हर क्षैत्र मंे अविमस्रणीय कार्य करते रहे। पिपलिया मंडी की संघ की शाखा में जाने वाले वे पहले स्वयं सेवक थे। संघ के स्वयंसेवक से विभाग संघ चालक तक के सफर में मिली सभी जिम्मेदारीयों का ईमानदारी से निर्वहन किया। कुमठ परिवार के इस व्यक्तित्व ने पूरे जीवनभर कर्तव्य पथ की कठोर पगडंडियों पर चलकर समाज को एक प्रेरणा दी।
हर क्षैत्र में कुछ नया और सेवा प्रकल्पों को हाथ मंे लेते रहे। मुझे याद है पिपलिया में मीडिल स्कूल था। हायर सेकेन्ड्री की शुरूआत आपने बेरिस्टर उमाषंकर त्रिवेदी (सांसद) के परिवारिक सदस्य श्री नर्मदाषंकर त्रिवेदी जो विद्यालय मंे प्राचार्य थे उनसे मिलकर गांव वालों के सहयोग से हायर सेकेन्ड्री स्कूल प्रारंभ करवाया। स्वास्थ्य के क्षैत्र में भी विषेष योगदान नगर को दिया। नगर के सभी वर्गो के दुखः में जरूर जाते चाहे मोहन दा बोराना हो चाहे बंषीदा माच्छोपुरिया हो चाहे दल्ला जी कराड़ा हो। बिमारी मे कुषल पूछने जरूर जाते थे। आपके पिताजी मन्नालाल जी कुमठ के देहवासन के समय पूरे नगर ने व्यवसाय बंद रखकर श्रद्धांजली दी। कुमठ परिवार ने पूरे गांव की गोतम प्रसादी रखी। उस दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला, ऐसा आयोजन नगर में आजतक नहीं हुआ।
काल की परिस्थतियों में यह निष्चय है समय के प्रवाह में परिवर्तन होता है जीवन में उतार चढ़ाव आते है लेकिन धैर्य,संयम और दृढ़ संकल्प से राह मिल ही जाती है ऐसे पुरूषार्थी व्यक्तियों की ईष्वर भी मदद करता है। आने वाली पीढीयों के लिये भैया साहब की दिनचर्या एक मील का पत्थर साबित हुई। जीवन को शुन्य से प्रारंभ कर षिखर की ऊँचाईयां तक कैसे पंहुचा जाता है ये नगर वासियों ने समझा ।
भैया सा. ने जीवन में दान का दामन कभी नहीं छोड़ा, किसी भी सामाजिक,धार्मिक आयोंजनो में विषाल हृदय रखते हुए दान की प्रवृति को जारी रखा। कमजोर और गरीबांे के प्रति मन में दया भाव रखते हुए जरूरत मंदों की खुब मदद की। नगर में वाचनालय भवन, शीतल जल ग्रह, स्कूल में कमरों का निर्माण, अस्पताल के कमरे उनकी दान भावना के जीते-जागते उदाहरण है। परासली और बही पार्ष्वनाथ तीर्थ के प्रति उनकी सेवा, सर्मपणा बरसों बरस तक याद रहेगी।
हमें क्या पता था कि अंत समय में भी वे अपनी दान प्रवृति को नहीं छोड़ेगे हमारी आँखों से आंसू निकल गये जब पता चला की भैया सा. ने अपनी देह का भी दान कर दिया। उन्होंने 2 वर्ष पहले ही संकल्प ले लिया था की इस नष्वर शरीर को जलाने के बजाय अगर मेडिकल के छात्रों का कुछ सिखने के लिये देहदान करना हो तो ये सर्वश्रेष्ठ दान है। उनके इस संकल्प को पूरा करने में सहधर्मणि श्रीमती हुलासबाई कुमठ एवं परिवारजनों ने जो साहस दिखाया उनकों भी में प्रणाम करता हूँ।
आना और जाना प्रकृति का क्रम है, लेकिन कुछ ऐसे प्रेरणा पुरूष होते है जो चिरविदाई के बाद भी अपनी स्मृति छोड़ जाते है उनका साधना पूर्ण तप, त्याग युक्त जीवन आने वाली पिढ़ीयों के लिये प्रकाष स्तंभ बन जाता है। ऐसी अनुकरणीय और वंदनीय जीवन शैली जीने वाले कर्मयोद्धा को हमारा शत् षत् नमन्।

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