सम्पूर्ण भारत का धार्मिक पर्व है मकर सक्रांति

surya devtaत्योहार सामाजिकबंधनों को प्रगाढ़ बनाने का एक माध्यम है. यह एक बहाना है अपनों से मिलने का, लड़ाई-झगड़ा भूलाकर एक होने का और ईश्वर कीआराधना करने का | हमारे देश में प्राचीन काल से ही मान्यता रही है कि परमपिता परमात्मा इस सृष्टिके कण-कण में विद्यमान है, ईश्वर केवल मंदिरों या मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलोंमें नहीं बसता है बल्कि यह तो इस संपूर्ण प्रकृति में बसता है | भारत वर्ष कोत्यौंहारों का देश भी कहा जाता है। यह कहा जाता है कि भारत में बारह महीनों में कमसे कम पंद्रह त्यौंहार तो होते ही हैं। त्यौंहार परमपिता परमात्मा के प्रतिकृतज्ञता व्यक्त करने, सामाजिक संबंधों में मजबूती प्रदान करने व जीवनमें उल्लास खुशी लाने के लिए मनाए जाते हैं। इन्हीं त्यौंहारों मे एक पर्व है मकर सक्रांति। मकर सक्रांति कापर्व पूरी सृष्टि के लिए ऊर्जा क स्रोत भगवान सूर्य की अराधना के रूप में मनायाजाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है ।

वैज्ञानिक विचार
वैज्ञानिकों केअनुसार संक्रांति के दिन से दिन की अवधि के क्रमिक वृद्धि की शुरुआत होती है।वैज्ञानिक विचार से 21-22दिसंबर के आसपास से ही दिन बढऩे शुरू होते हैं।इसलिए वास्तविक शीतकालीन संक्रांति21दिसंबरया22दिसंबर जब उष्णकटिबंधीय रवि मकर राशि में प्रवेशकरती है पर शुरू होती है। इसलिए वास्तविक उत्तरायण21दिसंबरको होता है। यही मकर सक्रांति की वास्तविक तारीख भी थी। एक हजार साल पहले मकरसंक्रांति31दिसंबर को मनाया गयी थी और अब14जनवरी को बनाई जाती है। वैज्ञानिक गणनाओं केअनुसार पांच हजार साल बाद,यह फरवरी के अंत तक हो सकता है,जबकि9000केवर्षों में यह जून में आ जाएगा।

खगोलीय तथ्य
सन 2012 में मकर संक्रांति 15 जनवरी यानी रविवार की थी। अगले 68 सालों तक यह पर्व 15 जनवरीको ही पड़ेगा। राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था। मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन कालमें यह त्योहार 11 जनवरी को पड़ा था।
आखिर ऐसा क्यों?
सूर्य के धनु राशिसे मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। साल 2012 में यह 14 जनवरी की मध्यरात्रिमें है। इसलिए उदय तिथि के अनुसार मकर संक्रांति 15 जनवरीको पड़ी थी। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल केबाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल एक दिन की देरीसे मकर राशि में प्रवेश करता है। इस तरह 2080 के बाद मकरसंक्रांति 16 जनवरी को पड़ेगी।

ज्योतिषीय आकलन
ज्योतिषीय आकलन केअनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकेंड बढ़ रही है।माना जाता है कि आज से 1000साल पहले मकर संक्रांति 31 दिसंबर को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल मेंइसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जानेलगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फ़रवरी महीने के अंत मेंमनाई जाएगी।

सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व
जितने समय मेंपृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को “सौर वर्ष” कहते हैं। पृथ्वी कागोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना “क्रान्तिचक्र” कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँबनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना “संक्रान्ति” कहलाता है। इसीप्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को “मकर संक्रान्ति” कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखासे उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना ‘उत्तरायण’ तथाकर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना ‘दक्षिणायन’ है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातेंछोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसारउत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल मेंउत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिनयज्ञमें दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्गसे पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोकका अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व हैऔर सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।
वास्तव में मकरसक्रांति सूर्य के उत्तरायण में आने का पर्व है और भगवान कृष्ण ने गीता में भी सूर्य केउत्तरायण में आने का महत्व बताते हुए कहा है कि इस काल में देह त्याग करने सेपुर्नजन्म नहीं लेना पड़ता और इसीलिए महाभारत काल में इच्छा-म्रत्यु का वरदानप्राप्त पितामह भीष्म ने अपनी देह का त्याग किया था।
ऐसा माना जाता है किसूर्य के उत्तरायण में आने पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है औरयह धरा प्रकाशमय हो जाती है।

पुराणों के अनुसार
पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि कीराशि में प्रवेश करते हैं,वैसे तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व शनि मेंशत्रुता बताई गई है लेकिन इस दिन पिता सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं तोइस दिन को पिता पुत्र के तालमेल के दिन के दिन व पिता पुत्र में नए संबंधो की शुरूआतके दिन के रूप में भी देखा गया है।
इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार करके असुरोके सिर को मंदार पर्वत पर दबा कर युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी थी। इसलिए यह दिनबुराईयों को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा की शुरूआत के रूप में भी मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज व गंगाको धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों का तिल से तर्पण किया थाऔर तर्पण के बाद गंगा इसी दिन सागर में समा गई थी और इसीलिए इस दिन गंगासागर में मकरसक्रांति के दिन मेला भरता है।

मकर संक्राति के विभिन्न नाम
तिल संक्राति
देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभीसामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज भलेही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए।इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को “तिलसंक्राति” के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के गोल-गोललड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णुके शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के पापों से मुक्तकरता है; गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति में जिन चीज़ों को खाने मेंशामिल किया जाता है,वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर कोगर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं |

खिचड़ी संक्रान्ति
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है।इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जासे भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ होजाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन गंगानदी मेंस्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावलऔर तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है किमकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरेका वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।

विभिन्न प्रान्तों में मकरसंक्राति के विभिन्न तरीकों से बनाई जाती है

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

भारत के अलग-अलग प्रांतोंमें इस त्योहार को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है लेकिन इन सभी के पीछे मूल ध्येय एकता, समानता व आस्था दर्शाना होता है.
दक्षिण भारत में दूधऔर चावल की खीर तैयार कर पोंगल मनाया जाता है |
पंजाब मे संक्रांतिके एक दिन पूर्व में लोहड़ी मनाई जाती है।लोग घर-घर जाकर लकडिय़ां एकत्रित करते हैं और फिर लकडिय़ों के समूह को आग के हवालेकर मकई की खील,तिल व रवेडिय़ों को अग्न देव को अर्पित कर सबकोप्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं। इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है,क्योंकि इन दिनों में खिचड़ी खाई भी जाती है औरदान में भी दी जाती है।
‍गिल्ली-डंडे के खेलके रूप में मौज-मस्ती के एक बहाने के रूप में मध्य प्रदेश में इस त्योहार को मनाया जाता है. इस त्योहार परपरिवार के बच्चे से लेकर बूढ़े सभी एक साथ गिल्ली-डंडे के इस खेल का आनंद उठातेहैं
देसी घी,खिचड़ी में डाल कर खाने का प्रचलन उत्तर प्रदेश वबिहार में इसी संक्रांति से शुरू होता है।
महाराष्ट्र औरगुजरात में मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घर के सामने रंगोली अवश्य रचते हैं। फिरएक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाते हैं। साथ ही कहते हैं- तिल और गुड़ खाओ और फिरमीठा-मीठा बोलो।
इस दिन असम में माघबिहु या भोगाली बिहु के रूप में मनाया जाता है। यहां चावल से बने व्यंजन प्रसाद केरूप में बांटे जाते हैं।
राजस्थान,गुजरात मेइस दिन आसमान पतंगो से ढक जाता है |गुजरात में मकर सक्रांति के दिन पतंगबाजी केआयोजन में इसी प्रकार का सांप्रदायिक सद्भाव देखने को मिलता है. यहाँ सुबह से हीसभी लोग अपने घरों की छतों पर जमा होकर पतंगबाजी करके खु‍शी व उल्लास के साथ इसत्योहार का भरपूर आनंद उठाते हैं. लाल, हरी, नीली, पीली आदि रंग-बिरंगीपतंगें जब आसमान में लहराती हैं तो ऐसा लगता है मानो इन पतंगों के साथ हमारे सपनेभी हकीकत की ऊँचाईयों को छू रहे हैं और हम सभी सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे कीपतंगों के पेंच लड़ा रहे हैं|

केरल में मकर-सक्रांति
केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला कीवार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकरज्योति’ दिखाई पड़ती है।

कर्नाटक में मकर-सक्रांति
कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाताहै। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधानमें सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल औरभुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रियपरम्परागत खेल है।

मकर संक्रांति परखान-पान
धार्मिक मान्यताएं-
मकर संक्रांति में सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायणमें आने का स्वागत किया जाता है। शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत का अभिवादन तथा अगहनीफ़सल के कट कर घर में आने का उत्सव मनाया जाता है। उत्सव का आयोजन होने पर सबसेपहले खान-पान की चर्चा होती है। मकर संक्रांति पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीके और नाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है। किंतु एक विशेष तथ्य यह हैकि मकर संक्राति के नाम,तरीके और खान-पान में अंतर के बावजूद सभीमें एक समानता है कि इसमें व्यंजन तो अलग-अलग होते हैं, किन्तुउनमें प्रयोग होने वाली सामग्री एक-सी होती है। यह महत्त्वपूर्ण पर्व माघ मास में मनाया जाता है।भारत में माघ महीने में सबसे अधिक ठंढ़ पड़ती है, अत:शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन किया जाता है। मकर संक्रांति में इन खाद्यपदार्थों के सेवन का यह भौतिक आधार है। इन खाद्यों के सेवन का धार्मिक आधार भी है।शास्त्रों में लिखा है कि माघ मास में जो व्यक्ति प्रतिदिन विष्णु भगवान की पूजातिल से करता है और तिल का सेवन करता है, उसके कई जन्मों केपाप कट जाते हैं। अगर व्यक्ति तिल का सेवन नहीं कर पाता है तो सिर्फ तिल-तिल जपकरने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। तिल का महत्व मकर संक्रांति में इस कारण भीहै कि सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि केस्वामी शनि देव हैं,जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्यसे शत्रु भाव रखते हैं। अत: शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनिउन्हें कष्ट न दें,इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्राति मेंकिया जाता है। चावल,गुड़ एवं उड़द खाने का धार्मिक आधार यह हैकि इस समय ये फ़सलें तैयार होकर घर में आती हैं। इन फ़सलों को सूर्य देवता कोअर्पित करके उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि “हेदेव! आपकी कृपा से यह फ़सल प्राप्त हुई है। अत: पहले आप इसे ग्रहण करें तत्पश्चातप्रसाद स्वरूप में हमें प्रदान करें, जो हमारे शरीर कोउष्मा, बल और पुष्टता प्रदान करे।”

मकर संक्रांति पर भारत के विभिन्न राज्योंमें अपना-अपना खान-पान है

बिहार तथा उत्तर प्रदेश
बिहार एवं उत्तर प्रदेश में खान-पान लगभग एक जैसाहोता है। दोनों ही प्रांत में इस दिन अगहनी धान से प्राप्त चावल और उड़द की दाल सेखिंचड़ी बनाई जाती है। कुल देवता को इसका भोग लगाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घरखिंचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार के अन्य व्यंजनों का आदान-प्रदान करते हैं। बिहारऔर उत्तर प्रदेश के लोग मकर संक्राति को “खिचड़ीपर्व” के नाम से भी पुकारते हैं। इस प्रांत में मकरसंक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही,गुड़ एवं तिल के लड्डू भी खाते हैं। चूड़ेएवं मुरमुरे की लाई भी बनाई जाती है।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मकर संक्रांति केदिन बिहार और उत्तर प्रदेश की ही तरह खिचड़ी और तिल खाने की परम्परा है। यहाँ केलोग इस दिन गुजिया भी बनाते हैं।

राजस्थान
तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं ,तिल के विभिन्न व्यंजन यथा तिल केलड्डू,तिल की गजक आदि बनाते हैं |

दक्षिण भारत
दक्षिण भारतीय प्रांतों में मकर संक्राति के दिनगुड़, चावल एवं दाल से पोंगल बनाया जाता है। विभिन्नप्रकार की कच्ची सब्जियों को लेकर मिश्रित सब्जी बनाई जाती है। इन्हें सूर्य देवको अर्पित करने के पश्चात सभी लोग प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते हैं। इस दिनगन्ना खाने की भी परम्परा है।

पंजाब एवं हरियाणा
पंजाब एवं हरियाणा में इस पर्व में विभिन्न प्रकारके व्यंजनों में मक्के की रोटी एवं सरसों के साग को विशेष तौर पर शामिल किया जाताहै। इस दिन पंजाब एवं हरियाणा के लोगों में तिलकूट, रेवड़ीऔर गजक खाने की भी परम्परा है। मक्के का लावा, मूँगफलीएवं मिठाईयाँ भी लोग खाते हैं

संक्रान्ति दान औरपुण्य कर्म का दिन
संक्रान्ति काल अति पुण्य माना गया है। इस दिनगंगा तट पर स्नान व दान का विशेष महत्त्व है। इस दिन किए गए अच्छे कर्मों का फलअति शुभ होता है। वस्त्रों व कम्बल का दान, इसजन्म में नहीं; अपितु जन्म–जन्मांतरमें भी पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन घृत, तिलव चावल के दान का विशेष महत्त्व है। इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकरमोक्ष को प्राप्त करता है,ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। उत्तरप्रदेश में इस दिन तिल दान का विशेष महत्त्व है। महाराष्ट्र में नवविवाहितास्त्रियाँ प्रथम संक्रान्ति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएँ सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। बंगाल में भी इसदिन तिल दान का महत्त्व है। राजस्थान में सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस दिन तिल केलड्डू, घेवर तथा मोतीचूर के लड्डू आदि पर रुपय रखकर, “वायन” के रूप में अपनी सास को प्रणाम करके देती है तथाकिसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प करके चौदह ब्राह्मणों को दान करती है।

मकर संक्रांति पर किये जाने वाले धार्मिक कार्य एवं आयोजन
हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्राति के दिन हमें ब्रह्म मूहर्त में किसी पवित्र नदीमें स्नान कर सूर्य देवता को देना अर्क देना चाहिए, उसके बाद यथोचित दान-धर्म करअपने ईश्वर का नमन करना चाहिए तथा अपनों के साथ खुशियाँ बाँटकर इस त्योहार कोमनाना चाहिए |
इस दिन भारत केप्रमुख तीर्थस्थलों-प्रयाग,हरिद्वार,वाराणसी,कुरुक्षेत्र,गंगासागरआदि में पवित्र नदियों गंगा,यमुना आदि में करोडों लोग डुबकी लगा कर स्नानकरते हैं। अथर्ववेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दीर्घायु और स्वस्थ रहने केलिए सूर्योदय से पूर्व ही स्नान शुभ होता है। ऋग्वेद में ऐसा लिखा है कि-हेदेवाधिदेव भास्कर,वात,पित्तऔर कफ जैसे विकारों से पैदा होने वाले रोगों को समाप्तकरो और व्याधि प्रतिरोधक रश्मियों से इन त्रिदोशों का नाश करो।
पश्चिम बंगाल केगंगासागर तीर्थ में मेले का आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है कि वरुण देवता इनदिनों में यहां आते हैं। शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि किसी को किसी कारणवशनदी या समुद्र में स्नान करने का अवसर ना मिले तो इस दिन कुएं के जल या सामान्य जलमें गंगा जल मिला कर सूर्य भगवान को स्मरण करते हुए स्नान कर सूर्य को तांबे केलोटे में शुद्ध पानी भर कर रोली,अक्षत,फूल,तिल तथागुड़ मिला कर पूर्व दिशा में गायत्री या सूर्य मंत्र के साथ अष्र्य देना चाहिए।
इस दिन से ही लोगमलमास के कारण रुके हुए अपने शुभ कार्य-गृहनिर्माण,गृहप्रवेश,विवाह आदि भी शुरू कर देते हैं। मलमास,बृहस्पति की राशियों – धनु और मीन में सूर्यभगवान के प्रवेश करने पर शुरू होता है। मान्यता है कि तब सूर्य भगवान देवगुरुबृहस्पति के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा में मग्न रहते हैं। इसीलिए भोग-विलास आदि सांसारिक कार्यों से दूरहोते हैं।
माना जाता है किउत्तरायण में देवता मनुष्य द्वारा किए गए हवन,यज्ञआदि को शीघ्रता से ग्रहण करते हैं। मकर संक्रांति माघ माह में आती है। संस्कृत मेंमघ शब्द से माघ निकला है। मघ शब्द का अर्थ होता है-धन,सोना-चांदी,कपड़ा,आभूषण आदि। स्पष्ट है कि इन वस्तुओं के दान आदिके लिए ही माघ माह उपयुक्त है। इसीलिए इसे माघी संक्रांति भी कहा जाता है।
संकलंनकर्ता—-जे.के.गर्ग

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