
ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की गतिशीलता का जीवन में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं में बड़ा महत्व है। इन घटनाओं के आकलन के लिए 27 नक्षत्रों, 9 ग्रहों व 12 राशियों को आधार बनाया गया है। राशियों व ग्रहों के अपने-अपने गुण व धर्म हैं जिसके आधार पर ज्योतिषीय कथन तय होते हैं।
कुण्डली में बृहस्पति वक्री होने पर पंचव भाव से सम्बन्धित फल को प्रभावित करता है.मंगल तीसरे भाव का फल देता है.ग्रहों में राजकुमार बुध चतुर्थ स्थान से सम्बन्धित फल को प्रभावित करते हैं.शुक्र वक्री होने पर विवाह स्थान अर्थात सप्तम भाव के फल पर प्रभाव डालते हैं.शनि भाग्य स्थान का और चन्द्रमा दूसरे स्थान के फल को प्रभावित करता है।वक्री ग्रह के संदर्भ में ज्योतिषशास्त्र की यह भी मान्यता है कि शुभ ग्रह वक्री होने पर व्यक्ति को सभी प्रकार का सुख, धन आदि प्रदान करते हैं जबकि अशुभ ग्रह वक्री होने पर विपरीत प्रभाव देते हैं.इस स्थिति में व्यक्ति व्यसनों का शिकार होता है, इन्हें अपमान का सामना करना होता है. एक सिद्धान्त यह भी है कि वक्री ग्रहों की दशा में सम्मान एवं प्रतिष्ठा में कमी की संभावना रहती है.कुण्डली में क्रूर ग्रह वक्री हों तो इनकी क्रूरता बढ़ती एवं सौम्य ग्रह वक्री हों तो इनकी कोमलता बढ़ती है.यात्रा के लग्न में एक भी ग्रह वक्री होने पर अशुभ माना जाता है.
गुरुवार (22 जनवरी,2015 ) से 9 ग्रहों में से 4 प्रमुख ग्रह बुध, गुरु, राहु और केतु वक्री चाल चलने लगे हैं। वहीँ शुक्र ग्रह ने रात 2.18 बजे अपनी राशि मकर से कुंभ में प्रवेश किया है और इसी दिन कुंभ राशि में बने चर्तुग्रही का समापन हो गया । गुरुवार (22 जनवरी,2015 ) को सुबह 9 बजे से बुध वक्री चाल चलने लगे हैं जबकि गुरु गत 8 दिसंबर से वक्री हैं । राहु-केतु हमेशा वक्री चाल चलते हैं । व्यापार के देवता कहे जाने वाले बुध के वक्री होने से जहां बाजार पर असर पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर राजनीति में भी उथल-पुथल की स्थिति बनेगी। इसके प्रभाव से लोगों में धार्मिक मतभेद की स्थिति बनेगी।
चर्तुग्रही योग का भी समापन—
सौर मंडल में नौ में से चार ग्रहों की वक्री चाल एवं शुक्र का राशि परिवर्तन से चिंताजनक स्थितियां बन रहीं हैं । बुध, गुरु, राहु-केतु वक्री चाल चलेंगे वहीं कुंभ राशि में बने चर्तुग्रही योग का समापन है।ग्रहों की ऐसी स्थिति खतरे के संकेत दे रही है । इससे राष्ट्र की राजनीति गड़बड़ाएगी । राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के साथ अप्रिय घटनाओं की आशंका बन रही हैं ।धर्माचार्य पं विष्णु राजोरिया का कहना है कि सौर मंडल में गोचरीय स्थित का प्रभाव मौसम में देखने को मिलेगा ।इससे वर्षा, तापमान गिरावट आदि स्थितियां निर्मित होंगी।
—बसंत पंचमी को अस्त होगा बुध—-
इस वर्ष बसंत पंचमी 24 जनवरी 2015 को है । बुध वक्रीय होकर 24 जनवरी को अस्त होगा। इसके असर से वर्तमान में महंगी वस्तुएं सस्ती होंगी और सस्ती वस्तुएं जैसे सब्जी फिर महंगी होगी ।बारिश के प्रभाव से एक बार फिर ठंड अपना जोर दिखाएगी।
—अबूझ मुहूर्त में बड़ी संख्या में होंगे विवाह—
इस वर्ष बसंत पंचमी 24 जनवरी 2015 के दिन मां सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है इस दिन सूर्य उत्तरायण रहते हैं, इस दिन स्वयं सिद्घ मुहूर्त व अबूझ मुहूर्त के रूप में मनाया जाता है..पं. दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस मुहूर्त (बसंत पंचमी) में बड़ी संख्या में विवाह होते हैं।
—-जानिए वक्री ग्रह के विषय में —
संपूर्ण ब्रह्माण्ड 360 अंशों में विभाजित है। इसमें 12 राशियों मे से प्रत्येक राशि के 30 अंश हैं। इस प्रकार ये राशियां पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करती हैं। सभी 9 ग्रह प्रत्येक राशि में अपनी-अपनी गति से प्रवेश कर 30 डिग्री पार कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक ग्रह की गति व राशि की 30 डिग्री को पार करने की समय सीमा अलग-अलग होती है। ग्रहों की इस गतिशीलता को गोचर कहा गया है जिसका सामान्य अर्थ है मौजूदा समय में ग्रहों की राशिगत स्थिति क्या है।
सब ग्रहों से तेज चंद्रमा की गति :- सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु इन नौ ग्रहों में सबसे तेज गति चंद्र की है। चंद्रमा एक राशि में कोई 54 घंटे (सवा दो दिन) रह कर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जबकि शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए 30 माह यानी ढाई वर्ष का समय लगता है।
इसी प्रकार सूर्य को सामान्यतः 30 दिन, मंगल डेढ़ से तीन माह, बुध 27 दिन, गुरु 12 माह, शुक्र डेढ़ से दो माह तथा राहु व केतु 18 माह में एक राशि से दूसरी राशि में गतिमान होते हैं।
ग्रहों का पथ अंडाकार होने से पृथ्वी की गति से जब अन्य ग्रहों की गति कम होती है तब वे विपरीत दिशा में चलते हुए प्रतीत होते हैं जिससे ग्रहो को वक्री कहते हैं.ग्रह यूं तो निरन्तर अपने पथ पर चलते रहते हैं परंतु ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से ग्रह सीधी चाल से चलते हुए कुछ समय के लिए ठहर जाते हैं..
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह निरन्तर गोचर करते हैं .गोचर में ग्रह व्रकी भी होते हैं अर्थात उल्टा चलने लगते हैं.वास्तव में ग्रहों की यह गति आभासीय होती है.ग्रह कभी भी विपरीत दिशा में गमन नहीं करते हैं.ग्रहों का पथ अंडाकार होने से पृथ्वी की गति से जब अन्य ग्रहों की गति कम होती है तब वे विपरीत दिशा में चलते हुए प्रतीत होते हैं जिससे ग्रहो को वक्री कहते हैं.ग्रह यूं तो निरन्तर अपने पथ पर चलते रहते हैं परंतु ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से ग्रह सीधी चाल से चलते हुए कुछ समय के लिए ठहर जाते हैं फिर विपरीत चलने लगते हैं.वक्री चाल चलते समय ग्रह अपने नियत स्वभाव के अनुसार फल देने की बजाय उससे अलग फल भी देते हैं.
—जानिए की कभी वक्री नहीं होते सूर्य व चंद्र :—-
नौ ग्रहों में सूर्य व चंद्र ही ऐसे दो ग्रह हैं जो कभी वक्री (विपरीत गति) नहीं होते, जबकि राहु व केतु सदैव वक्री गति से ही चलते हैं। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि ग्रह कई बार सीधी गति से चलते हुए वक्री होकर पुनः सीधी गति पर लौटते हैं।
ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को आत्मा का तो चंद्र को मन का कारक माना गया है। मंगल युद्ध, शौर्य व नेतृत्व का कारक है तो गुरु शिक्षा, अध्यात्म व धर्म का प्रतिनिधि है। शुक्र सुंदरता, शारीरिक गठन व भोग-विलास का कारक है तो शनि न्याय व दंड के साथ प्रतिशोध मनोवृत्ति व विलंबता का प्रतिनिधित्व करता है। राहु आलस्य, अस्थिरता, उदर रोग व कूटनीति तथा केतु मानसिक अस्थिरता, लेखन, हतोत्साहितता व शोध कार्यों का कारक है।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रिय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रिय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश) एवं 09024390067 (राजस्थान)