प्राचीन वैदिक काल से हीं रीति, नीति एवं समृद्ध परम्पराओं से अलंकृत भारत भूमि में मनुष्य की पहचान उसके कर्म से होती रही है वर्ण से नहीं l कुछ विद्वानों के मतानुसार भारतवर्ष में सनातन युग-काल से हीं जाति-प्रथा का विभेद चला आ रहा है, परन्तु यह बात सत्य प्रतीत नहीं होती l पुरा वैदिक काल में वर्ण की बजाय कर्म की महत्ता स्थापित थी कर्म-भ्रष्ट मनुष्य हीन माना जाता था l कालान्तर में विदेशी आक्रमणकारियों एवं संस्कृतियों के प्रभाववश पुराने रीति, नीति एवं मूल्य शनैः-शनैः लुप्त होते गए एवं मानसिक विभेद का वर्चश्व कायम होता चला गया l आगे चलकर यही विभेद जातीय एवं वर्णीय कट्टरता में परिणत हो गया l मनुष्य मनुष्य न रहकर जातियों एवं वर्णों में तब्दील हो गया ! वह भूमि, जहाँ पहले सबकुछ साँझा हुआ करता था धीरे-धीरे कई जाति, वर्ण और समुदाय में बँट गया l इस क्रम में मनुष्य का एक कमजोर वर्ग निरन्तर पिछड़ता चला गया और अन्ततः उसने स्वयं को अछूत, अस्पृश्य आदि की श्रेणी में विवश खड़ा पाया l ऐसे हीं समय में जब हमारे समाज में जात-पात की घोर कालिमा का विभेद कायम था14 अप्रैल सन 1891 को महाराष्ट्र की महू-छावनी के एक अछूत कहे जाने वाले परिवार में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का जन्म अपने माता पिता की 14वीं सन्तान के रूप में हुआ l बीए पास करने के बाद सन 1913 में बडौदा के महाराज से छात्रवृति पाकर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए जहाँ से वह एमए, पीएचडी और एल.एल.बी करके देश वापस लौटे l उस समय शुद्र कहे जाने वाले वर्णों को सार्वजानिक कुओं से पानी लेने मन्दिर में पूजा करने आदि के अधिकार नहीं थे l स्कूलों में उनके साथ भेद भाव का व्यवहार बरता जाता था बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर इन सब से आहत हुए और सभी कार्य छोड़कर दलित एवं पिछड़े समाज के उद्धार के लिए राजनीति में कूद पड़े l इस क्रम में सन 30 और 31 में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने लन्दन गए l 1946 में दलितों के लिए एक महाविद्यालय की स्थापना की l 1927 में दलितों को मानवाधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह भी किया l भीमराव अम्बेडकर दलित वर्ग की दुर्दशा एवं उद्धार से सम्बन्धित ”मूक” नाम की एक पत्रिका का प्रकाशन भी करते थे l भीमराव अम्बेडकर ने दो विवाह किये, पहली पत्नी रमाबाई एवं दूसरी सविता अम्बेडकर जो जन्म से ब्राह्मण थी बाद में भीमराव अम्बेडकर के साथ धर्म परिवर्तित कर बौद्ध हो गई l बौद्ध धर्म एवं भगवान बुद्ध पर डॉ भीमराव अम्बेडकर ने किताब भी लिखी एवं ओजपूर्ण भाषण भी दिए l डॉ भीमराव अम्बेडकर जब तक जिए पीड़ितों और दलितों के लिए जिए l इन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया l अपनी प्रखर विद्वता एवं योग्यता के कारण भीमराव अम्बेडकर को देश एवं विदेशों में समय समय पर यथेष्ट सम्मान एवं उपाधियों से अलंकृत किया गया l भीमराव अम्बेडकर ने हमेशा दलितों और महिलाओं के अधिकारों की वकालत की l उन्होंने कहा कि मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति द्वारा करता हूँ l
वह ना केवल हिन्दू धर्म की कट्टरता से बल्कि मुसलमानों से भी ख़ुश नहीं थे l मुसलमानों के बहुविवाह की प्रथा एवं रखैल रखने के वह कट्टर विरोधी थे l
उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा है कि –
1) तुम्हारी विरासत पर तीन बार हमला हुआ, पहले आर्यों के द्वारा फिर मुसलामानों के द्वारा और फिर अंग्रेजों के द्वारा तुम दूसरी और तीसरी गुलामी में फँस गए l
2) अन्याय का विरोध, सम्मान और अधिकार की प्राप्ति हीं जीवन है l
3) हम सबसे पहले और अंत में भारतीय है l
4) मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतन्त्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है l
भीमराव अम्बेडकर ने कहा कि

5) Men are mortal. So are ideas. And idea needs propagation as much as a plant needs watering. Otherwise both will wither and die.(मनुष्य नश्वर है l विचार भी ऐसे हीं होते हैं l एक विचार को प्रचार-प्रसार की उतनी हीं ज़रूरत है जितनी एक पौधे को पानी की l अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे l)
यह बात आज सत्य साबित हो रही है जब अन्य कई महान विभूतियों की भांति डॉ भीमराव अम्बेडकर के अनुयायी हीं निज स्वार्थवश आज उनके नाम एवं विचारों का दुरूपयोग कर रहे हैं !
– कंचन पाठक.