सरकार का स्कूलों के समय वृद्धि के पीछे कारण छात्र व अभिभावक हित नहीं है, अपितु एक गहरी राजनीतिक साजिश व चाल है। अनुमानत: समय वृद्धि करने से पूर्व हमारे शिक्षा मंत्री जी ने अपने शिक्षा-सचिव से कुछ इस प्रकार से संवाद कर राजनीतिक लाभ हेतु उक्त निर्णय किया था,संवाद कुछ इस प्रकार है-
मंत्री जी- यार समझ में नहीं आता है कि राजस्थान में 5 साल वसुंघरा और फिर 5 साल गहलोत और फिर वसुंघरा, आखिर यह 5 साल का परिवर्तन करने वाले जनता में कौन से लोग हैं।
सचिव- साहब, यह सारा खेल मास्टरों (शिक्षक) का रचा हुआ है। आधे में देवी-देवता और आधे में (हम) तेत्तरपाल। कुछ नहीं बिगाड़ सकते हम इनका।
मंत्री जी- क्या बात करते हो, मास्टर, नहीं।
सचिव- हां साहब, ये बड़ी ऊंची रकम है, बी एल ओ से लेकर मत-गणना तक का खेल यही रचता है।
मंत्री जी- तो क्या फर्जी मतदाता के नाम लिखता है, क्या फर्जी वोट डलवाता है या फिर फर्जी मत-गणना करता है, आखिर यह सरकार के विरुद्ध वोटिंग कैसे करवाता है, आज तक मेरे समझ में नहीं आया।
सचिव- सर यह प्राणी बहुत चालक है, ऐसा कुछ नहीं करता। यह गैर-कानूनी काम नहीं करता बल्कि कानून में रहकर आप लोगों का तीया-पांचा कर देता है।
मंत्री जी- वो कैसे ?
सचिव- साहब, यह केवल पांच घण्टे स्कूल ड्यूटी करता है। उसके बाद घर भी नहीं जाता बल्कि डेढ़ व दो घंटे बैठ कर या तो गांवों की चौपालों या चाय की थडिय़ों या पान की दुकानों या फिर गांव के पटेलों के बीच बैठकर पटेलाई करता है। जो सरकार इसके कहे अनुसार नहीं चलती, उसकी अर्थी का सामान तैयार कर देता है। गांवों में इसका बहुत सम्मान है, यह लेटेस्ट न्यूज मीडिया रिपोर्टर का काम भी करता है। इसके कहे को सब सच मानते हैं। यह 5 साल में मतदाता के दिमाग को चेंज कर देता है, फिर आपकी व हमारी कोई नहीं सुनता,जो यह कहता है जनता वही करती है।
मंत्री जी- अच्छा, यह गड़बड़झाला है। इतना बोलने पर क्या इसका दिमाग खराब नहीं होता है?
सचिव- नहीं साहब, भगवान ने इसके दिमाग में स्पेशल हार्डडिस्क रखी है, हम लोग तो केवल श्रोता हैं जो पूरी ड्युटी यस सर, नो सर, यस बोस ही कहते रहते हैं, लेकिन यह एक कुशल वक्ता है, यह तब तक सामने वाले का सिर चाटता रहता है, जब तक की सामने वाले की सोचने समझने की शक्ति खत्म न हो जाए, पर यह नहीं थकता।
मंत्री जी- (पसीना पोंछते हुये) पर सचिव साहब, इस प्राणी का कोई तो इलाज होगा, जिससे अगले पांच साल भी हमारा ही राज हो।
सचिव- साहब, इलाज तो है, हमें इसकी नस पर चोट करनी चाहिए, न रहेगा बांस तो न बजेगी बांसुरी। साहब, इसकी स्कूल ड्यूटी का समय दो घंटे बढ़ा दो, जब इसके पास गांव में पटेलाई करने का समय ही नहीं रहेगा, तो घर जाकर आदतानुसार अपनों का सिर खायेगा, तब इसकी अक्ल ठिकाने आयेगी। साथ में अभिभावकों व छात्रों का अलग से सरकार को समर्थन मिलेगा, सो अलग। आम के आम, गुठलियों के दाम।
मंत्री जी- (सचिव की पीठ थपथपाते हुये) वेरी गुड, शाबाश, मुझे गर्व है तुम्हारे ऊपर।
समय-वृद्धि के 4 माह बाद की स्थिति
सचिव- साहब, बहुत बुरा हो गया, क्या सोचा था, क्या हो गया? कुछ समझ नहीं आ रहा है।
मंत्री जी- आखिर बात क्या है, कुछ तो बको।
सचिव- साहब, सर्वे रिपार्ट आयी है कि इन 4 महिनों में सबसे ज्यादा नेट-रिचार्ज का बिल व मेसेज चेटिंग का ग्राफ मास्टरों का सबसे ज्यादा है और जीओनी मोबाइल कम्पनी के अनुसार सभी मास्टरों ने एंडरोयड स्मार्ट फोन खरीद लिये हैं तथा शिक्षकों ने सारे गांव वालों का ग्रुप बना कर स्कूल में दो घंटे तक बैठे-बैठे सरकार विरोधी चेटिंग कर रहा है। कह रहा है कि नगर-पालिका चुनाव में सरकार की भट्टी बुझा कर ही दम लूंगा। साहब, मैने तो पहले ही कहा था कि मास्टर से पंगा मोल न लो।
मंत्री जी- अक्ल के अंधे, जीते जी मरवा दिया, अब मुझे ही कुछ करना पडेगा।
साथियों, इसीलिए सरकार ने शिक्षक-संघों को वार्ता के लिए बुलवाया है।
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