क्‍या गणित में हर प्रश्‍न का जवाब ‘=’ में ही होता है ?

sangita puri
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इसमें कोई शक नहीं कि गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष ब्‍लागिंग की मदद से अपनी पहचान बना पाने में कामयाबी प्राप्‍त करता जा रहा है , पर कुछ दिनों से पाठकों द्वारा इसके द्वारा ज्‍योतिष के विज्ञान कहे जाने के विरोध में कुछ आवाजें भी उठ रही हैं। वैसे तो सबसे पहले मसीजीवी जी ने ज्‍योतिष को विज्ञान कहे जाने पर आपत्ति जतायी थी , पर अभी हाल में ज्ञानदत्‍त पांडेय जी के द्वारा यह प्रश्‍न उठाया गया तो मुझे काफी खुशी हुई , क्‍योंकि उनकी सकारात्‍मक टिप्‍पणियां हमेशा ही मेरा उत्‍साह बढाती आयी है। उनके बाद एक दो और पाठक भी इसी प्रकार के प्रश्‍न करते मिले हैं। आज उन सबके द्वारा उठाए गए प्रश्‍न का तर्कसंगत जवाब देना मैं उचित समझ रही हूं और शायद पहली बार हो रही इस प्रकार की सकारात्‍मक चर्चा करते हुए मुझे काफी खुशी भी हो रही है। मैं चाहूंगी कि इस प्रकार के और प्रश्‍न भी सामने आएं , मैं सबकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करूंगी।

सबसे पहले गणित विषय को ही लें। गणित में हर प्रश्‍न का जवाब ‘=’ ही नहीं होता है। इसमें किसी समीकरण का उत्‍तर ‘लगभग’ में होने के साथ ही साथ ‘>’ और ‘<’ या ‘=<’ और ‘=>’ में भी हो सकता है। कोई समीकरण ‘लिमिट’ में भी अपना जवाब देती है । सभी समीकरण एक सीधी रेखा का ही ग्राफ नहीं बनाती , पाराबोला और हाइपरबोला भी बना सकती है। गणित के संभावनावाद का सिद्धांत संभावना की भी चर्चा करता है। और चूंकि भौतिकी जैसा पूर्ण विज्ञान के भी सभी नियम गणित पर ही आधारित होते हैं , तो भला इसके भी हर प्रश्‍न का जवाब ‘=’ में कैसे दिया जा सकता है ? और बाकी विज्ञान जो भौतिकी की तरह पूर्ण विज्ञान न हो तो उसके प्रश्‍नों का जवाब ‘=’ में देना तो और भी मुश्किल है।

एलोपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के बहुत से प्रश्‍नों का जवाब ‘=’ में दिया जा सकता है , पर सबका दे पाना असंभव है , बहुत से प्रश्‍नों का जवाब ‘लगभग’ और बहुत से प्रश्‍नों का जवाब ‘संभावनावाद’ के नियमों के अनुसार दिया जा सकता है। पहले एक ही लक्षण देखकर चार प्रकार के बीमारी की संभावना व्‍यक्‍त की जाती है , जिससे पहले डाक्‍टरों को अक्‍सर दुविधा हो जाया करती थी , आज जरूर विभिन्‍न प्रकार के टेस्‍टों ने डाक्‍टरों का काम आसान कर दिया है , तो क्‍या पहले मेडिकल साइंस विज्ञान नहीं था ? अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिलने के बावजूद मौसम विज्ञान कहा जाता है , क्‍योंकि इस क्षेत्र में बेहतर भविष्‍यवाणी कर पाने की संभावनाएं दिखाई पड रही है। क्‍या भूगर्भ विज्ञान की भूगर्भ के बारे में की गयी गणना बिल्‍कुल सटीक रहती है ? नहीं , फिर भी उसे भूगर्भ विज्ञान कहा जाता है। संक्षेप में , हम यही कह सकते हें कि जरूरी नहीं कि वैज्ञानिक सिद्धांत हमें सत्‍य की ही जानकारी दे , जिन सिद्धांतो की सहायता से हमें सत्‍य के निकट आने में भी सहायता मिल जाए , उसे विज्ञान कहा जाता है।

यदि ज्‍योतिष शास्‍त्र के नियमों की बात करें , तो इसके कुछ नियम बिल्‍कुल सत्‍य हैं , मौसम से संबंधित जिस सिद्धांत के बारे में कल चर्चा हुई , वह बिल्‍कुल सत्‍य है। ऐसा इसलिए है , क्‍योंकि इस नियम को स्‍थापित करने में ग्रहों को छोडकर सिर्फ भौगोलिक तत्‍वों का ही प्रभाव पडता है। ग्‍लोबल वार्मिंग का ही यह असर माना जा सकता है कि आज यह योग कम काम कर रहा है और शायद आनेवाले दिनों में इतनी बरसात के लिए भी यह योग काम करना बंद कर दे। 14 – 15 जून को आप पुन: इस सिद्धांत को सत्‍यापित होते देख सकते हैं , हालांकि वह मानसून का महीना है , इसलिए स्थिति के इस बार से भी भीषण रूप में होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। भारत में चारो ओर आंधी , तूफान के साथ ही साथ जोरों की बारिश भी होती रहेगी। पर ज्‍योतिष के कुछ नियम सत्‍य के निकट भी होते हैं , और कुछ के बारे में तो सिर्फ संभावना ही व्‍यक्‍त की जा सकती है , दावा नहीं किया जा सकता। ऐसा इसलिए होता है , क्‍योंकि उन नियमों पर सामाजिक , राजनीतिक , भौगोलिक या अन्‍य बहुत से कारकों का प्रभाव देखा जाता है । पर इसका अर्थ यह नहीं है कि यह एक विज्ञान नहीं है।

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