एक थी वीरांगना अवंतीबाई लोधी

16 अगस्त को जन्मदिवस पर विशेष
veerangna avantibai lodhi photoभारत में पुरुषों के साथ आर्य ललनाओं ने भी देशए राज्य और धर्मए संस्कृति की रक्षा के लिए आवश्यकता पडने पर अपने प्राणों की बाजी लगाईं है। गोंडंवाने की रानी दुर्गावती और झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई के चरण चिन्हों का अनुकरण करते हुए रामगढ ;जनपद मंडला. मध्य प्रदेशद्ध की रानी वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी ने सन १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम मैं अग्रेंजो से खुलकर लोहा लिया था और अंत में भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी थी आज उनका 184वां जन्मदिवस है। २० मार्च १८५८ को इस वीरांगना ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए युध्द लडते हुए अपने आप को चारो तरफ से घिरता देख स्वय तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया।
उन्होंने अपने सीने तलवार भोकते वक्त कहा की ष्ष्हमारी दुर्गावती ने जीते जी वैरी के हाथ से अंग न चुए जाने का प्रण लिया था। इसे न भूलना बडों़ष्ष्। उनकी यह बात भी भविष्य के लिए अनुकरणीय बन गयी वीरांगना अवंतीबाई का अनुकरण करते हुए उनकी दासी ने भी तलवार भोक कर अपना बलिदान दे दिया और भारत के इतिहास मैं इस वीरांगना अवंतीबाई ने सुनहरे अक्षरों मैं अपना नाम लिख दिया।
आज उसी वीरांगना की शहादत की उपेक्षा देखकर दुःख होता है। कहा जाता है की वीरांगना अवंतीबाई लोधी १८५७ के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं में अत्यधिक योग्य थीं कहा जाए तो वीरांगना अवंतीबाई लोधी का योगदान भी उतना ही है जितना १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का था। लेकिन हमारे देश की सरकारों ने चाहे केंद्र की जितनी सरकारे रही है या राज्यों की जितनी सरकारें रही है उन द्वारा हमेशा से वीरांगना अवंतिबाई लोधी की उपेक्षा होती रहा है। वीरांगना अवंतीबाई जितने सम्मान की हकदार थी वास्तव में उनको उतना सम्मान नहीं मिला यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्य की बात है। इससे देश के इतिहासकारों और नेताओं की पिछडी विरोधी मानसिकता झलकती है।
वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने वीरांगना झाँसी की रानी की तरह ही अपने पति विक्रमादित्य के अस्वस्थ्य होने पर ऐसी दशा में अपने साहसए धैर्य और शौर्य की प्रतिमूर्ति रानी अवंतीबाई ने राज्य कार्य संभाल कर अपनी सुयोग्यता का परिचय दिया और अंग्रेंजों की चूलें हिल कर रार रख दी। सन १८५७ मैं जब देश मैं स्वतंत्रता संग्राम छिडा तो क्रान्तिकारियो का सन्देश रामगढ भी पहुंचा। रानी तो अंग्रेजो से पहले से ही जली भुनी बैठी थी। क्योकि उनका राज्य भी झाँसी की तरह कोर्ट कर लिया गया था और अंगेज रेजिमेंट उनके समस्त कार्यो पर निगाह रखे हुई थी। रानी ने अपनी और से क्रान्ति का सन्देश देने के लिए अपने आसपास के सभी राजाओं और प्रमुख जमीदारों को चिट्ठी के साथ या कांच की चूडी भिजवाई उस चिट्ठी मैं लिखा था। ष्ष्देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो या चूडी पहनकर कर मैं बैठो तुम्हे धर्म ईमान की सौगंध जो इस कागज का सही पता बैरी को दोष्ष्
सभी देश भक्त राजाओं और जमीदारों ने रानी के साहस और शौर्य की बडी सराहना की और उनकी योजनानुसार अंग्रेंजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा खडा कर दिया। जगह.जगह गुप्त सभाएं कर देश में सर्वत्र क्रान्ति की ज्वाला फैला दी। रानी ने अपने राज्य से कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधिकारियों को भगा दिया और राज्य एवं क्रान्ति की बागडोर अपने हाथो मैं ले ली।
आज ऐसी आर्य वीरांगना का बलिदान और जन्मदिवस उनकी जाति ;लोधीद्ध के ही कार्यक्रम बनकर रह गए है। जो की बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं। वीरांगना अवंतीबाई किसी जाती विशेष के उत्थान के नहीं लडी थी। बल्कि वोह तो अंग्रेजों से अपने देश की स्वतंत्रता और हक के लिए लडी थी इसका उदहारण भी इतिहास मैं है। जब रानी वीरांगना अवंतीबाई अपनी म्रत्युशैया पर थी तो इस वीरांगना ने अंग्रेज अफसर को अपना बयान देते हुए कहा कि ष्ष्ग्रामीण क्षेत्र के लोगो को मैंने ही विद्रोह के लिए उकसायाए भडकाया था उनकी प्रजा बिलकुल निर्दोष हैष्ष्
ऐसा कर वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने हजारो लोगों को फांसी लगने और अंग्रेजों के अमानवीय व्यवहार से बचा लिया। मरते.मरते ऐसा कर वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने अपनी वीरता की एक और मिसाल पेश की।
निसंदेह वीरांगना अवंतीबाई का व्यक्तिगत जीवन जितना पवित्रए संघर्षशील तथा निष्कलंक था। उनकी म्रत्यु ;बलिदानद्ध भी उतनी ही वीरोचित थी। धन्य है वह वीरांगना जिसने एक अदितीय उदहारण प्रस्तुत कर १८५७ के भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम मैं २० मार्च १८५८ को अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसी वीरांगना का देश की सभी नारियो और पुरुषों को अनुकरण करना चाहिए और उनसे सीख लेकर नारियो को विपरीत परिस्थतियो में जज्बे के साथ खडा रहना चाहिए। जरूरत पडे तो अपनी आत्मरक्षा अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीरांगना का रूप भी धारण करना चाहिए। 16 अगस्त २०१5 को ऐसी आर्य वीरांगना के जन्मदिवस पर उनको शत्.शत् नमन् और श्रध्दांजलि।
. ब्रह्मानंद राजपूतए दहतोराए आगरा
(Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra
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