ग्रहों के अनुसार हो या फिर पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार, जिस स्तर में हमने जन्म लिया , जिस स्तर का हमें वातावरण मिला, उस स्तर में रहने में अधिक परेशानी नहीं होती। पर कभी कभी अपनी जीवनयात्रा में अचानक ग्रहों के अच्छे या बुरे प्रभाव देखने को मिल जाते हैं , जहां ग्रहों का अच्छा प्रभाव हमारी सुख और सफलता को बढाता हुआ हमारे मनोबल को बढाता है , वहीं ग्रहों का बुरा प्रभाव हमें दुख और असफलता देते हुए हमारे मनोबल को घटाने में भी सक्षम होता है। वास्तव में , जिस तरह अच्छे ग्रहों के प्रभाव से जितना अच्छा नहीं हो पाता , उससे अधिक हमारे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है द्व ठीक उसी तरह बुरे ग्रहों के प्रभाव से हमारी स्थिति जितनी बिगडती नहीं , उतना अधिक हम मानसिक तौर पर निराश हो जाया करते हैं। ज्योतिष के अनुसार हमारी मन:स्थिति को प्रभावित करने में चंद्रमा का बहुत बडा हाथ होता है। धातु में चंद्रमा का सर्वाधिक प्रभाव चांदी पर पडता है। यही कारण है कि बालारिष्ट रोगों से बचाने के लिए जातक को चांदी का चंद्रमा पहनाए जाने की परंपरा रही है। बडे होने के बाद भी हम चांदी के छल्ले को धारण कर अपने मनोबल को बढा सकते हैं।
आसमान में चंद्रमा की घटती बढती स्थिति से चंद्रमा की ज्योतिषीय प्रभाव डालने की शक्ति में घट बढ होती रहती है। अमावस्या के दिन बिल्कुल कमजोर रहने वाला चंद्रमा पूर्णिमा के दिन अपनी पूरी शक्ति में आ जाता है। आप दो चार महीने तक चंद्रमा के अनुसार अपनी मन:स्थिति को अच्छी तरह गौर करें , पूर्णिमा और अमावस्या के वक्त आपको अवश्य अंतर दिखाई देगा। पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के वक्त यानि सूर्यास्त के वक्त चंद्रमा का पृथ्वी पर सर्वाधिक अच्छा प्रभाव देखा जाता है। इस लग्न में दो घंटे के अंदर चांदी को पूर्ण तौर पर गलाकर एक छल्ला तैयार कर उसी वक्त उसे पहना जाए तो उस छल्ले में चंद्रमा की सकारात्मक शक्ति का पूरा प्रभाव पडेगा , जिससे व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक क्षमता में वृद्धि होगी। इससे उसके चिंतन मनन पर भी सकारात्मक प्रभाव पडता है। यही कारण है कि लगभग सभी व्यक्ति को पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के उदय के वक्त तैयार किए गए चंद्रमा के छल्ले को पहनना चाहिए।