हां, मैने देखा है

शिक्षक दिवस पर मेरी एक रचना ……..

राकेश भट्ट
राकेश भट्ट
मैंने बचपन में पढने के दौरान स्कूल क्लास में गुरुजनो को खूब मेहनत करते देखा है ।

मैंने मेरे गुरुजनो को हर एक बच्चे का भविष्य संवारने के लिए चिंतित होते हुए देखा है ।

मैंने उस दौर में हमारे गुरुजनो को बगैर ट्यूशन करवाये भी शत प्रतिशत परिणाम देते देखा है ।

मैंने बच्चों को सही रास्ते पर लाने के लिए कठोर से कठोर दंड देने वाले कई अध्यापको को भी देखा है ।

मैंने समय के साथ हर रोज , हर पल बदलते जा रहे शिक्षा के स्तर को भी बेहद नजदीक से देखा है ।

मैंने शिक्षा के नाम पर राजस्थान सरकार की बदलती नीतियों को भी देखा है ।

मैंने अपनी नोकरी बचाने के लिए शिक्षको को पढ़ाई करवाने की बजाय घर घर जाकर सरकारी योजनाओ की खाना पूर्ती करते हुए भी देखा है ।

मैंने एक शिक्षक को पोषाहार , जनगणना , बी पी एल , आधार कार्ड , भामाशाह कार्ड और भी ना जाने कितनी योजनाओ को पूरा करने के लिए चपरासी से भी बदतर हालात में घूमते हुए देखा है ।

मैंने अपना तबादला रुकवाने या मनचाही जगह पोस्टिंग पाने के लिए शिक्षको को नेताओ के आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए , रोते हुए भी देखा है ।

मैंने बच्चों को ईमानदारी से जीवन जीने का पाठ पढ़ाने वाले अध्यापको को नोकरी पाने के लिए रिश्वत के रूप में लाखो रुपये देते हुए भी देखा है ।

मैंने कई महिला शिक्षिकाओं को उनके ही साथी शिक्षको द्वारा छेड़छाड़ किये जाते देखा है ।

मैंने शिक्षको के प्रति छात्रो के मन में लगातार घटते जा रहे मान सम्मान और इज्जत को भी नजदीक से देखा है ।

मैंने शिक्षा को व्यवसाय मानकर बड़ी बड़ी स्कूले खोलने वाले शिक्षको को शुद्ध दुकानदार की तरह भाषा बोलते हुए और निर्दयता से बच्चों के माँ बाप की जेब पर डाका डालते हुए भी देखा है ।

मैंने शिक्षा के नाम पर खुलेआम लूट मचाकर एक के बाद एक बिल्डिंगे बनाने वाले शिक्षा के दलालो को भी देखा है ।

मैंने निजी स्कूलो में चंद रुपयो की तनख्वाह पाने के लिए शिक्षको को घुट घुट कर काम करते हुए और उनका शोषण होते हुए देखा है ।

मैंने स्कूल में कम और ट्यूशन या कोचिंग सेंटर पर ज्यादा पढाई करवाने वाले शिक्षको को देखा है ।

मैंने सरकारी स्कूल में नोकरी कर हर साल लाखो रुपये की तनख्वाह लेने वाले शिक्षको द्वारा अपने ही बच्चों को निजी स्कूलो में पढ़ाते हुए देखा है ।

मैंने व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के इस दौर में लगातार शिक्षा के गिरते जा रहे स्तर और हर दिन पैदा होते जा रहे शिक्षा माफियाओ को देखा है ।

मैंने स्कूल आने के बावजूद अपने फर्ज से मुंह मोड़ने वाले अध्यापको को भी देखा है ।

लेकिन दोस्तों मैंने इन कठिन परिस्थितियों में भी सडको के किनारे गरीब बच्चों का भविष्य बनाने के लिए कई नौ जवानो को दिनरात एक कर पढ़ाते हुए भी देखा है ।

वाकई शिक्षक दिवस पर हमारे बचपन से लेकर आज दिन तक लगातार बदलते जा रहे शिक्षा के मापदंडो ने स्थिति बद से बदतर कर दी है । अब ना तो वैसे शिक्षक रहे है जिनका लक्ष्य ही बच्चे का भविष्य संवारना होता था और ना ही वो बच्चे , जिनके मन में अपने शिक्षको का सम्मान ही सब कुछ होता था । आखिर कहाँ से कहाँ पहुँच गया है हमारा समाज और हमारी शिक्षा का स्तर । शायद कुछ ज्यादा ही व्यावसायिक , स्वार्थ से परिपूर्ण और पैसो की चमक में अंधा हो चुका है हमारा मन। मित्रो ।
शिक्षक दिवस की आप सभी को बधाई ..

राकेश भट्ट
प्रधान संपादक
पॉवर ऑफ़ नेशन

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