गणेश पुराण के अनुसार श्री गणेश जी द्वारा भगवान महादेव जी को बताया विधान भाद्रपद मास की चतुर्थी जो गणेश जयंती के रूप में मनाई जाती है। उसकी पूजा नियमानुआर करना चाहिए
गंगा जी के रेशे की बनी हुई मिट्टी की प्रतिमा की सोलह उपचार के द्वारा गणेश के हजार नाम के साथ दूर्वा चढ़ाएं व गाय के दूध से तपर्ण करें। इसके बाद आठ द्रव्यों से मोदक, पोहा, लाई, गन्ने के टुकड़े, पके केले, कच्चे नारियल के टुकडेÞ, जौं का सत्तू, सफेद तिल से गणेश हजार नाम से हवन करें। इसके बाद श्री गणेश जी को इक्कीस प्रकार की पत्ते जैसे मालती, घमरा वील ,सफेद दूर्वा, बेर, धतूरा, तुलसी, समी, अधरझाढा, भटकाटाई, कनेर, अकौआ, कोंआ, गोकर्णी, आनार, देवदार, मरूआ, पीपल, चमेली, केवड़ा, अगस्ती पत्र चढाने से शीघ्र ही श्री गणेश प्रसन्न होते हैं एवं मनोकामना पूर्ण होती है। श्री राम लोकरे शास्त्री जी द्वारा गणेश पूजन का समय दोपहर 12 से 3 बजे तक का शुभ महूर्त बताया है।
