गणेशजी की विशिष्ट शारिरिक संरचना एवम् आज के परिपेक्ष में उसका महत्व

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ छुपा हुआ है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

गणेशजी की चार भुजायें चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। वेलंबोदरहैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

गणेश के पास हाथी का सिर, मोटा पेट और चूहा जैसा छोटा वाहन है, लेकिन इन समस्याओं के बाद भी वे विघ्नविनाशक, संकटमोचक की उपाधियों से नवाजे गए हैं। कारण यह है कि उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया, बल्कि अपनी ताकत बनाया।
गणेशजी की सूंड को लेकर कहा जाता है कि सूंड को देख कर दुष्ट एवम् आसुरी शक्तियाँ डरकर मार्ग से अलग हो जाती है | इसी सूंड से गणेशजी ब्रम्हाजी पर जल की धारा बरसाते हैं वहीं इसीसे वे उन पर पुष्पों की बरसात भी करते हैं |ऐसी मान्यता है कि सुख, सम्पनता एवम् एश्वर्य की प्राप्ति हेतु गणेशजी की दायीं तरफ मूडी सूंड की पूजा करनी चाहिए वहीं शत्रु पर विजय प्राप्ती हेतु बायीं तरफ मूडी सूंड की पूजा करनी चाहिये | यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सफलता प्राप्ती एवं सत्य की खोज हेतु हमें हर वक्त गहन द्रष्टी यानि दाएं-बाएं देखना होगा | गणेशजी की टेढ़ी-मेढ़ी सूंड बताती है कि सफलता का पथ सीधा नहीं है।
अत: निसंदेह विघ्नहर्ता गौरी पुत्र गणेश की मनोहारी शरीराकृति भी अपने में गहरे और विशिष्ट अर्थ संजोये हुए है |.
गणेशजी को लम्बोदर क्यों कहा जाता है ?

हमारे मन में यदा-कदा सवाल उत्पन्न होता है कि गणेशजी को लम्बोदर क्यों कहा जाता है ? ब्रह्म पुराण के अन्दर वर्णन मिलता है कि गणेशजी अपनी माता पार्वतीजी का दूध दिन भर पीते रहते थे क्योंकि गणेशजी के मन में भय था कि कहीं उनके भाई कार्तिकेय आकर दूध नहीं पी जायं | गणेशजी की इस आदत को देख कर उनके पिता शिवजी ने हंसी-मजाक में एक दिन कहा कि “ गणेश तुम बहुत दूध पीते हो, कहीं तुम लम्बोदर नहीं बन जाओ “ | उसी दिन से गणेशजी का नाम लम्बोदर पड़ गया | गणेशजी को लम्बोदर कहें जाने के पीछे एक और कारण माना जाता है और वो यह है कि गणेशजी हर अच्छी-बुरी बात को आसानी से पचा जाते हैं |

गणेशजी ने मूषक (चूहा) को ही अपना वाहन क्यों चूना ?

मन में सवाल पैदा होता है कि भगवान गणेशजी ने निक्रष्ट माने जाने वाले चूहे (मूषक) को ही अपना वाहन क्यों चुना ? सभी देवी-देवता गणेशजी की बुद्धीमता के कायल हैं, तर्क-वितर्क में हर देवी-देवता गणेशजी से हार जाते थे | प्रत्येक समस्या के मूल (तय) में जाकर उसकी मीमांसा एवम् विवेचना कर उसका तर्कसंगत हल खोजना उनकी विशेषता है | इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि चूहा भी तर्क-वितर्क में किसी से पिछे नहीं रहता है, चूहे का काम हर किसी भी वस्तु को कुतर डालना है | जो भी वस्तु या चीज चूहे को दिखाई देती है, चूहे महाराज उसकी चीर फाड़ करके उसके प्रत्येक अंगो का विस्तृत विश्लेष्ण सा कर देता है, अत: संभवत गणेशजी ने चूहे के इन्हीं गुणों को देख कर चूहे को अपना वाहन चुना होगा

मूषक (चूहा) के जन्म सम्बन्धी कथा

प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी पतिव्रता पत्नी मनोमयी अत्यंत रूपवती थी । एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो वह कामान्ध एवं व्याकुल हो गया।

कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि भी वहां वापिस आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा ‘तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती पर रहेगा और चोरी करके अपना पेट भरेगा।

काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-‘दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे।

डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ:— मुक्त ज्ञानकोश, विकिपीडिया,गूगल सर्च आदि

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