वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
गणेश जी की ही पूजा सबसे पहले क्यों होती है इस सन्दर्भ में पौराणिक कथा :
पद्मपुराण के अनुसार (सृष्टिखण्ड 61। 1 से 63। 11): – एक दिन व्यासजी के शिष्य महामुनि संजय ने अपने गुरूदेव को प्रणाम करके उनसे प्रश्न किया कि “ गुरूदेव! आप मुझे देवताओं के पूजन का सुनिश्चित क्रम बतलाइये, प्रतिदिन की पूजा में सबसे पहले किसका पूजन करना चाहिये” ? तब व्यासजी ने कहा “ संजय विघ्नों को दूर करने के लिये सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करनी चाहिये”। पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (स्कन्द (कार्तिकेय ) तथा गणेश) माता से मोदक माँगने लगे। तब माता ने मोदक के प्रभावों का वर्णन कर दोनों से कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसी को मैं यह मोदक दूँगी। माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिकेय मयूर पर आरूढ़ हो मुहूर्तभर में सब तीर्थों की स्न्नान कर लिया। इधर लम्बोदरधारी गणेशजी माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गये।तब पार्वतीजी ने कहा- समस्त तीर्थों में किया हुआ स्न्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते। इसलिये यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है। अतः देवताओं का बनाया हुआ यह मोदक मैं गणेश को ही देती हूँ। माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले गणेश की पूजा होगी। तत्पश्चात् महादेवजी बोले- इस गणेश के ही अग्रपूजन से सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हों।
ज्योतिष के अनुसार—गणेशजी का वर्णन
ज्योतिष्शास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप मे जाना जाता है, केतु एक छाया ग्रह है, जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध मे रहता है, बिना विरोध के ज्ञान नही आता है और बिना ज्ञान के मुक्ति नही है, गणेशजी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सर्वत्र देखना है, गणेश अगर साधन है तो संसार के प्रत्येक कण मे वह विद्यमान है। उदाहरण के लिये तो जो साधन है वही गणेश है, जीवन को चलाने के लिये अनाज की आवश्यकता होती है, जीवन को चलाने का साधन अनाज है, तो अनाज गणेश है, अनाज को पैदा करने के लिये किसान की आवश्यकता होती है, तो किसान गणेश है, किसान को अनाज बोने और निकालने के लिये बैलों की आवश्यक्ता होती है तो बैल भी गणेश है, अनाज बोने के लिये खेत की आवश्यक्ता होती है, तो खेत गणेश है, अनाज को रखने के लिये भण्डारण स्थान की आवश्यक्ता होती है तो भण्डारण का स्थान भी गणेश है, अनाज के घर मे आने के बाद उसे पीस कर चक्की की आवश्यक्ता होती है तो चक्की भी गणेश है, चक्की से निकालकर रोटी बनाने के लिये तवे, चीमटे और रोटी बनाने वाले की आवश्यक्ता होती है, तो यह सभी गणेश है, खाने के लिये हाथों की आवश्यक्ता होती है, तो हाथ भी गणेश है, मुँह मे खाने के लिये दाँतों की आवश्यक्ता होती है, तो दाँत भी गणेश है, कहने के लिये जो भी साधन जीवन मे प्रयोग किये जाते वे सभी गणेश है |
गणेशजी विध्या के देवता हैं:
साधना में उच्चस्तरीय दूरदर्शिता प्राप्ति हो जाए, उचित-अनुचित एवं कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो जाए, इसीलिये सभी शुभ कार्यों में गणेश पूजन का विधान बनाया गया है।
शास्त्रीय प्रमाणों में पंचदेवों की उपासना सम्पूर्ण कर्मों में प्रख्यात है। ‘शब्दकल्पद्रुम’ कोश में लिखा है –
आदित्यं गणनाथं च देवीं रूद्रं च केशवम्।
पंचदैवतमित्युक्त सर्वकर्मसु पूजयेत्।।
पंचदेवों की उपासना का रहस्य पंचभूतों के साथ सम्बन्धित है:–
पंचभूतों में पृथ्वी, जल, तेज(अग्नि), वायु और आकाश सम्मिलितत हैं और इन्हीं के आधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ(गणेश), देवी, रूद्र और केशव- ये पंचदेव भी पूजनीय प्रख्यात हैं। एक-एक तत्त्व का एक-एक देवता स्वामी है-
आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः।।
क्रम निम्न प्रकार है-
महाभूत अधिपति
1. क्षिति (पृथ्वी) शिव
2. अप् (जल) गणेश
3. तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी)
4. मरूत् (वायु) सूर्य (अग्नि)
5. व्योम (आकाश) विष्णु
भगवान् श्रीशिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी पार्थिव-पूजा का विधान है। भगवान् विष्णु के आकाश तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शब्दों द्वारा स्तुति का विधान है। भगवती देवी के अग्नि तत्त्व का अधिपति होने के कारण उनका अग्निकुण्ड में हवनादि के द्वारा पूजा का विधान है। श्रीगणेश के जलतत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा का विधान है; क्योंकि सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले तत्त्व ‘जल’ का अधिपति होने के कारण गणेशजी ही प्रथमपूज्य के अधिकारी होते हैं।
मनु का कथन है-‘अप एच ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत्।’ (मनुस्मृति 1। सृष्टि के आदि में एकमात्र वर्तमान जल का अधिपति गणेश हैं।
गणेशजी के बारह नाम
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं-
सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उपरोक्त 12 नाम नारद पुराण मे पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि मे आया है |
विध्याआरम्भ एवम्थ विवाह के पूजन के समय इन नामो से गणपति की अराधना करने का विधान है |
गणेशजी का परिवार:—-
पिता- भगवान शंकर
माता- भगवती पार्वती
भाई- श्री कार्तिकेय (बड़े भाई)
बहन- अशोक सुन्दरी
पत्नी- .रिद्धि और. सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं |
पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
प्रिय पुष्प- लाल रंग के
प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्
अधिपति- जल तत्व के
प्रमुख अस्त्र– पाश, अंकुश
वाहन – मूषक
सकंलन कर्ता डा. जे. के. गर्ग
सन्दर्भ:— मुक्त ज्ञानकोश, विकिपीडिया,गूगल सर्च आदि