हा ये जरूर हे की सनातन धर्म में खण्डित मूर्ति की पूजा नही होती
अतः उसे जल में या जमीन के भीतर समाधि देने का रिवाज हे
ये मेरी जिज्ञासा हे में जानना चाहता हु कृपया कोई गलत ना समजे
क्योकि मेने जहा तक जाना हे विद्वानों या संतो से
उस के अनुसार तो जब कभी यज्ञ अनुष्ठान या कोई धार्मिक आयोजन में सनातन परम्परा के अनुसार गौरी गणेश के साथ साथ अनेक देवता ओका आह्वान एवं स्थान दिया जाता हे
परन्तु यज्ञ अनुष्ठान के पूर्ण होने पर समस्त स्थापित्त देवता ओको पुनः उनके अपने स्थान पर लौटने के लिए प्राथना की जाती हे
जिनके लिए बाकायदा मन्त्र बोला जाता हे
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ ! स्वस्थाने परमेश्वर।
यत्र ब्रम्हादयो देवास्तत्र गच्छ हुताशन।।
परन्तु गणेश जी और ठाकुर जी की विदाय नही होती हे
उल्टा उनको प्राथना की जाती हे की हे गणेश जी ठाकुर जी आप कहि न जाकर हमारे निवास स्थान में क्षीरकाल तक निवास करे.
में यह जानने का जिज्ञासु हु की गणेश जी की विदाय और जल मे विसर्जन की परम्परा कहा से प्रारम्भ हुवी किसने की और क्यों की. यदि आप सज्जनो को पता हो तो मुझे अवश्य बताये
अमित भट्ट
Yesa santan dharm me khi bhi ulekh nhi hai
Na hi kisi murti ka samadh ka na visrjan ka kyo ke agar ganpati ka ghar mr pujan kr visarjan krte hai to ridhi sidhi bhi unke sath chli jayegi fir aap ke ghar or vyapar me unati kese hogi ye sirf ajadi ke andolan ke liye mharashtra me bal gnaga dhar tilak ne ayojan kiya tha usi ki bhed chal hai