काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा एवं चोरी के परित्याग करने का पर्व दशहरा

दशहरा का अर्थ

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
संस्कृत भाषा के शब्द’दश’व’हरा’से मिलकर बना है “दशहरा”|दशहरा का अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दसों सिरों को काटने एवं रावण की मृत्यु के साथ राक्षस (असुर) राज्य के आंतक से मुक्ति दिलाने से है। इसीलिये दशहरे को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय एवं अहंकार की पराजय के रूप में भी मनाया जाता है। विजयदशमी मात्र इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी वरन् यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढने का अवसर होता है। रावण–वध के बाद स्वयं भगवान राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को रावण के पास जाकर उनसे राजनीति सीखने एवं ज्ञान प्राप्त करने को कहा था |
दशहरा का पर्व
हमारे देश में प्रत्येक पर्व सामाजिक स्तर पर मनायें जाते हैं इसीलिए इन पर्वों के माध्यम से सामाजिक सामंजस्य निर्माण हेतु इनको शिक्षाप्रद-मनोरंजक बनाया जाता है जिसके लिये इन पर्वों में संगीत,नृत्य,नाटक आदि भी सम्मिलितत किये जाते हैं । कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम के जीवन व शिक्षाओं को जन–जन तक पहुँचाने के प्रयोजन से बनारस में प्रति वर्ष रामलीला की परम्परा शुरू की थी। आज भी प्रतीकात्मक रूप में दशहरे के दिन रावण-मेघनाद-कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि दशहरे के पहले नवरात्रा के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं (शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चंद्रघंटा,कूश्मांडा,स्कंदमाता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी व सिद्धिदात्री) ऐसा भी कहा जाता है कि है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और माँ ने श्रीराम को युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन यानि अश्विन शुक्ला दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी इसीलिए प्रति वर्ष अश्विन शुक्ला दशमी को विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है |विजयदशमी का पर्व मानव को दस तरह के पापों (दुष्कर्मों) यथा काम,क्रोध,लोभ,मोह मद,मत्सर,अहंकार,आलस्य,हिंसा एवं चोरी छोड़ने की सद्प्रेरणा देता करता है।
शस्त्र-पूजा

विजयदशमी के दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं,शस्त्र-पूजाकी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे, क्योंकि दशहरा के समयप्रायवर्षासमाप्त हो जाती है,नदियों में आई बाढ़ भी थम जाती है,राज्य के कोष्ठागार धान-सम्पति संचित होते हैं।
वनस्पतियों का पूजन:–
विजयदशमी पर दो विशेष प्रकार की वनस्पतियों के पूजन का महत्व है |
1. शमी व्रक्ष
शमी वृक्ष का पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है।सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में’स्वर्ण’लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर-आदान-प्रदान किया जाता है। क्षत्रियों में शमी व्रक्ष पूजन का महत्व अपेक्षाक्रत अधिक है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवो ने इसी वृक्ष के अंदरर अपने हथियार (गांडीव आदि) छुपाए थे और बाद में उन्हें इन्हीं हथियारों से कौरवों पर जीत प्राप्त की थी। (कहते हैं कि गुजरात के भुज शहर में साढ़े चार सौ साल पूराना एक शमीवृक्ष है)।

शमी वृक्ष (खीजडा) से लाभ
भारत में विशेषतया गुजरात में अधिकांक्ष किसान अपने खेतों में शमीवृक्ष बोते हैं जिसे उन्हें अनेक लाभ होते हैं शमी व्रक्ष एक पानखर जैसा काँटेदार वृक्ष है जिसके पत्ते सूख जाने के बाद उसमें छोटेःछोटे पीले फूल आते हैं। उसकी जड़ जमीन में बहुत गहराई तक जाती है जिससे उपज के सूखने का भय नहीं रहता। शमी व्रक्ष अनेक प्राणियों के लिए चारे के रूप में उनका भोजन बनता है। खेत की मेढ़ पर उसे बोने से फसल पर पड़ने वाले वायु के अधिक दबाव को भी वह कम कर देता है। जिससे खेतों की फसलों को तूफान से होने वाले नुकसान नहीं होते। इस वृक्ष की लकड़ियों से आज भी कई गाँवों में घर के चूल्हे जलते हैं। विदेशों के कृषि विशेषज्ञों ने भी यह बात मान ली है कि जिस खेत में शमी वृक्ष बोया जाता है उस खेत के किसान को देर-सबेर कई सारे फायदे होते हैं।शायद इसीलिए हमारे यहाँ हिंदू बरगद,पीपल,तुलसी और बिल्व पत्र जैसे पवित्र वृक्षों की तरह ही शमी वृक्ष (खीजड़ा) को भी पूजनीय मानते हैं।
2. अपराजिता (विष्णु-क्राता) का पोधा
दूसरा है अपराजिता (विष्णु-क्रांता)। यह पौधा अपने नाम के अनुरूप ही है। यह विष्णु को प्रिय है और प्रत्येक परिस्थिति में सहायक बनकर विजय प्रदान करने वाला है। नीले रंग के पुष्प का यह पौधा भारत में सुलभता से उपलब्ध है। घरों में समृद्धि के लिए तुलसी की भाँति इसकी नियमित सेवा की जाती है
दशहरे का सामाजिक महत्त्व

दशहरे का सामाजिक महत्व भी है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है जहाँ किसानों के लिये उसकी फसल जीवनव्यापन का मुख्य जरिया है |जब किसान अपनी मेहनत एवं खून-पसीनें को बाह कर अपने खेत में फसल उगाकर उससे प्राप्त अनाज को घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की कोई सीमा नहीं होती है, इस खुशी- प्रसन्नता के मोके पर किसान अपनी अच्छी फसल को वह भगवान की कृपा को मान कर उनकी पूजा-अर्चना करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है।
निसंदेह विजयदशमी का पर्व हम सभी को अपने जीवन में हम सच्चाई एवं सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि बुराई चाहे कितनी भी बलवान क्यूँ ना हो उसे एक न एक दिन सत्य-सच्चाई के सामने हार मान कर नतमस्तक होना ही पड़ता है। राम – रावण युद्ध दो विचारधाराओं का युद्ध है जिसमे शक्तियाँ दोनों पक्षों के पास थी किन्तु श्रीराम के पास जहाँ सत्य -धर्म की शक्ति थी तो वहीं रावण के पास विशाल सेना, माया,आसुरी शक्तियाँ एवं अहंकार की शक्ति थी । सत्य-धर्म की शक्ति के बलबूते पर ही निर्वासित राजकुमार राम ने बंदरों,भालुओं की सहायता से महाशक्तिमान रावण को हरा दिया था।
डा. जे.के. गर्ग
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दशहरा का अर्थ
संस्कृत भाषा के शब्द’दश’व’हरा’से मिलकर बना है “दशहरा”|दशहरा का अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दसों सिरों को काटने एवं रावण की मृत्यु के साथ राक्षस (असुर) राज्य के आंतक से मुक्ति दिलाने से है। इसीलिये दशहरे को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय एवं अहंकार की पराजय के रूप में भी मनाया जाता है। विजयदशमी मात्र इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी वरन् यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढने का अवसर होता है। रावण–वध के बाद स्वयं भगवान राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को रावण के पास जाकर उनसे राजनीति सीखने एवं ज्ञान प्राप्त करने को कहा था |
दशहरा का पर्व
हमारे देश में प्रत्येक पर्व सामाजिक स्तर पर मनायें जाते हैं इसीलिए इन पर्वों के माध्यम से सामाजिक सामंजस्य निर्माण हेतु इनको शिक्षाप्रद-मनोरंजक बनाया जाता है जिसके लिये इन पर्वों में संगीत,नृत्य,नाटक आदि भी सम्मिलितत किये जाते हैं । कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम के जीवन व शिक्षाओं को जन–जन तक पहुँचाने के प्रयोजन से बनारस में प्रति वर्ष रामलीला की परम्परा शुरू की थी। आज भी प्रतीकात्मक रूप में दशहरे के दिन रावण-मेघनाद-कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि दशहरे के पहले नवरात्रा के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं (शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चंद्रघंटा,कूश्मांडा,स्कंदमाता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी व सिद्धिदात्री) ऐसा भी कहा जाता है कि है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और माँ ने श्रीराम को युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन यानि अश्विन शुक्ला दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी इसीलिए प्रति वर्ष अश्विन शुक्ला दशमी को विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है |विजयदशमी का पर्व मानव को दस तरह के पापों (दुष्कर्मों) यथा काम,क्रोध,लोभ,मोह मद,मत्सर,अहंकार,आलस्य,हिंसा एवं चोरी छोड़ने की सद्प्रेरणा देता करता है।
शस्त्र-पूजा

विजयदशमी के दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं,शस्त्र-पूजाकी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे, क्योंकि दशहरा के समयप्रायवर्षासमाप्त हो जाती है,नदियों में आई बाढ़ भी थम जाती है,राज्य के कोष्ठागार धान-सम्पति संचित होते हैं।
वनस्पतियों का पूजन:–
विजयदशमी पर दो विशेष प्रकार की वनस्पतियों के पूजन का महत्व है |
1. शमी व्रक्ष
शमी वृक्ष का पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है।सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में’स्वर्ण’लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर-आदान-प्रदान किया जाता है। क्षत्रियों में शमी व्रक्ष पूजन का महत्व अपेक्षाक्रत अधिक है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवो ने इसी वृक्ष के अंदरर अपने हथियार (गांडीव आदि) छुपाए थे और बाद में उन्हें इन्हीं हथियारों से कौरवों पर जीत प्राप्त की थी। (कहते हैं कि गुजरात के भुज शहर में साढ़े चार सौ साल पूराना एक शमीवृक्ष है)।

शमी वृक्ष (खीजडा) से लाभ
भारत में विशेषतया गुजरात में अधिकांक्ष किसान अपने खेतों में शमीवृक्ष बोते हैं जिसे उन्हें अनेक लाभ होते हैं शमी व्रक्ष एक पानखर जैसा काँटेदार वृक्ष है जिसके पत्ते सूख जाने के बाद उसमें छोटेःछोटे पीले फूल आते हैं। उसकी जड़ जमीन में बहुत गहराई तक जाती है जिससे उपज के सूखने का भय नहीं रहता। शमी व्रक्ष अनेक प्राणियों के लिए चारे के रूप में उनका भोजन बनता है। खेत की मेढ़ पर उसे बोने से फसल पर पड़ने वाले वायु के अधिक दबाव को भी वह कम कर देता है। जिससे खेतों की फसलों को तूफान से होने वाले नुकसान नहीं होते। इस वृक्ष की लकड़ियों से आज भी कई गाँवों में घर के चूल्हे जलते हैं। विदेशों के कृषि विशेषज्ञों ने भी यह बात मान ली है कि जिस खेत में शमी वृक्ष बोया जाता है उस खेत के किसान को देर-सबेर कई सारे फायदे होते हैं।शायद इसीलिए हमारे यहाँ हिंदू बरगद,पीपल,तुलसी और बिल्व पत्र जैसे पवित्र वृक्षों की तरह ही शमी वृक्ष (खीजड़ा) को भी पूजनीय मानते हैं।
2. अपराजिता (विष्णु-क्राता) का पोधा
दूसरा है अपराजिता (विष्णु-क्रांता)। यह पौधा अपने नाम के अनुरूप ही है। यह विष्णु को प्रिय है और प्रत्येक परिस्थिति में सहायक बनकर विजय प्रदान करने वाला है। नीले रंग के पुष्प का यह पौधा भारत में सुलभता से उपलब्ध है। घरों में समृद्धि के लिए तुलसी की भाँति इसकी नियमित सेवा की जाती है
दशहरे का सामाजिक महत्त्व

दशहरे का सामाजिक महत्व भी है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है जहाँ किसानों के लिये उसकी फसल जीवनव्यापन का मुख्य जरिया है |जब किसान अपनी मेहनत एवं खून-पसीनें को बाह कर अपने खेत में फसल उगाकर उससे प्राप्त अनाज को घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की कोई सीमा नहीं होती है, इस खुशी- प्रसन्नता के मोके पर किसान अपनी अच्छी फसल को वह भगवान की कृपा को मान कर उनकी पूजा-अर्चना करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है।
निसंदेह विजयदशमी का पर्व हम सभी को अपने जीवन में हम सच्चाई एवं सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि बुराई चाहे कितनी भी बलवान क्यूँ ना हो उसे एक न एक दिन सत्य-सच्चाई के सामने हार मान कर नतमस्तक होना ही पड़ता है। राम – रावण युद्ध दो विचारधाराओं का युद्ध है जिसमे शक्तियाँ दोनों पक्षों के पास थी किन्तु श्रीराम के पास जहाँ सत्य -धर्म की शक्ति थी तो वहीं रावण के पास विशाल सेना, माया,आसुरी शक्तियाँ एवं अहंकार की शक्ति थी । सत्य-धर्म की शक्ति के बलबूते पर ही निर्वासित राजकुमार राम ने बंदरों,भालुओं की सहायता से महाशक्तिमान रावण को हरा दिया था।
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