हिन्दू मान्यता के अनुसार, दिवाली का त्यौहार नये वर्ष को ताजगी के साथ शुरु करने की प्रेरणा देने के साथ में हम सभी के जीवन को सुखमय बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भगवान राम का लंका विजय के बाद अयोध्या में आगमन:—-
जब भगवान राम अहंकारी राक्षसराज रावण का वध करने के बाद लंका का राज्य विभीषन को सोंप कर माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ अपने ग्रह राज्य अयोध्या में 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर वापस लोटे तो उस वक्त अयोध्या के समस्त नर-नारी उन सभी के आगमन से बहुत खुश थे। इसलिये अयोध्यावासीयों नें भगवान राम के लौटने के दिन अपने घर और पूरे राज्य को सजाकर मिट्टी से बने दीपकों से अमावस्या की अंधकारमय रात्री को रोशनी से जगमगा दिया एवं खुशी प्रकट करने हेतु आतिशबाजी बाज़ी कर फटाके जलाये, तभी से कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाई जाती है।
माता लक्ष्मी का जन्मदिन:-
हम देवी लक्ष्मी को धन एवं समृद्धि की स्वामिनी मानते हैं। यह माना जाता है कि कार्तिक महीने की अमावस्या को राक्षस और देवताओं द्वारा समुन्द्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी क्षीर सागर से ब्रह्माण्ड में अवतरित हुई थी। इसी वजह से कार्तिक महीने की अमावस्या को माता लक्ष्मी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिवाली के त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया गया था।
नरकासुर वध:—–
प्राचीन काल में राक्षसराज नरकासुर अत्यंत अत्याचारी था उसने अपनी जेल में 16000 औरतों को बंधी बना रखा था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मार कर समस्त महिलाओं को मुक्त करवा के उनकी जान बचाई थी। इसीलिये दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को इस घटना को उत्सव के रूप में मनाया जाता है ।
12 वर्ष के वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की अपने राज्य में वापसी:-
महाभारत के अनुसार 12 वर्ष के निष्कासन एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद कार्तिक महीने की अमावस्या को पांडव अपने ऱाज्य में सकुशल लौटे थे। पांडवों के वापस लोटने से वहां के लोग बहुत खुश थे, उन्होंने मिट्टी के दीपक जलाकर और फटाखे जलाकर पांडवों के लौटने दिन को मनाना शुरू कर दिया।
माता काली का जन्म:–
बहुत समय पहले एक राक्षस था जिसने लड़ाई में सभी देवताओं को पराजित किया और सारी पृथ्वी और स्वर्ग को अपने अधिकार में ले लिया। तब माँ काली ने देवताओं, स्वर्ग और पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से देवी दुर्गा के माथे से जन्म लिया था। राक्षसों की हत्या के बाद उन्होंने अपना नियंत्रण खो दिया और जो भी उनके सामने आया उन्होंने हर किसी की हत्या करनी शुरू कर दी। अंत में माता काली को उनके रास्ते में भगवान शिव के हस्तक्षेप द्वारा रोका गया। देश के कुछ भागों में, उस पल को यादगार बनाने के लिए उसी समय से ही यह दिवाली पर देवी काली की पूजा करके मनाया जाता है।
विक्रमादित्य का राज्याभिषेक:-
राजा विक्रमादित्य का इसी दिन राज्यभिषेक हुआ था तबसे लोगों ने दिवाली को ऐतिहासिक रुप से मनाना शुरु कर दिया।
बौद्ध धर्म :–
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में उनके लाखों अनुयायीयों नेदीप जलाकर दीपावली मनाई थी।
जैन धर्म:–
दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है । कल्पसूत्र में कहा गया है कि महावीर-निर्वाण के साथ जो अंतरज्योति सदा के लिए बुझ गई है, आओ हम उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बहिर्ज्योति के प्रतीक दीप जलाएं। 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामीजी को इस दिन बिहार के पावापुरी मै निर्वाण की प्राप्ति हुई थी जिसके उपलक्ष्य में जैनियों में यह दिन दीवाली के रूप में मनाया जाता है। महावीर-निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं।
सिक्ख धर्म दिन:-
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की स्थापना भी वर्ष 1577 में दीवाली के मौके पर की गयी थी। तीसरे गुरु अमरदासजी ने दिवाली को लाल-पत्र दिन के पारंम्परिक रुप में बदल दिया जिस पर सभी सिख अपने गुरुजनों का आशार्वाद पाने के लिये एक साथ मिलते है। सिख धर्म में इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रुप में जाना जाता है, इस दिन सन् 1619 में सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह 52 अन्य हिंदू राजकुमारों के साथ ग्वालियर के किले से रिहा हुए थे। सिखों की मांग पर जब शहंशाह जहांगीर, गुरु हरगोविंद सिंह को छोड़ने के लिए राजी हुए तो गुरु ने एलान किया कि वह अन्य बंदी राजकुमारों के बिना नहीं जाएंगे। यह जानते हुए कि सारे राजकुमार गुरु को एक साथ एक ही समय पर नहीं पकड़ सकते, चालाक जहांगीर ने एलान किया कि सिर्फ उन्हीं राजकुमारों को गुरु के साथ छोड़ा जाएगा जिन्होंने गुरु को पकड़ रखा होगा। गुरु ने तब एक ऐसा वस्त्र बनवाया जिसमें 52 डोरियां थी। हर युवराज ने एक डोरी पकड़ी और इस तरह गुरु ने सफलता से सभी को मुक्त करवाया। इस दिन स्वर्ण मंदिर को रोशनी से सजाया जाता है। गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई की स्मृति में दीवाली मनायी जाती है।
आर्य समाज के अनुयायी:–
महर्षि दयानंद ने वर्ष 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी | महान समाज सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अजमेर में निर्वाण प्राप्त किया। उसी दिन से इस दिन को दीवाली के रूप में मनाया जा रहा है।
अन्य गाथाएं:—
ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों (नदी के किनारे) पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते थे।
इतिहास के शोधकर्ताओं के अनुसार 500 ईसा वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो सभ्यता में खुदाई के दौरन मिट्टी की एक मूर्ति में देवी के दोनों हाथों में दीप जलते दिखाई देते हैं। जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस वक्त भी दीपावली का पर्व मनाया जाता था।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय ‘ओम’ कहते हुए समाधि ले ली।
1999 में, पोप जॉन पॉल द्वितीय ने भारतीय चर्च में अपने माथे में पर तिलक लगा कर ईसा मसीह के अंतिम भोज के स्मारक रात्रि भोज (प्रकाश का त्यौहार) का असाधारण प्रदर्शन किया था। यही तो दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
मुगल काल में दीवाली:—
दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाश दीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था।
बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे।
मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और वे इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे।
शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लाल किले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
मारवाड़ीयों का नया साल:–
मारवाड़ी कार्तिक की कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन पर दीवाली पर अपने नए साल का उत्सव मनाते हैं एवं नये बही खाते प्रारम्भ करते हैं।
गुजरातियों के लिए नया साल:–
गुजराती भी कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन दीवाली के एक दिन बाद अपने नए साल का उत्सव मनाते है।
फसलों की कटाई का त्यौहार दीवाली
दीवाली शुरुआत में फसलों की कटाई के उत्सव के रुप में मनाई जाती थी। यह वह समय है जब भारत में किसान फसल काटकर संपत्ति और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उन्हें नई फसल में से उनका हिस्सा समर्पित करते हैं।
सकंलन कर्ता—डा. जे.के गर्ग
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