दीवाली कब मनाई जाती है
दीपोत्सव पाँच दिन का पर्व हैं
दिवाली के पॉचों दिनों के बारे में कई कहानियॉ एवं किंवदंतियॉं है। ये पांच दिन हैं–—1.धनतेरस 2. नरक चतुर्दशी 3. अमावस्या 4. कार्तिक सुधा पधमी एवं 5. यम द्वितीया या भाई दूज |
कुछ स्थानों पर जैसे कि महाराष्ट्र में दीवाली का पर्व छह दिनों में पूरा होता है यानि वहां वासु बरस या गौवास्ता द्वादशी के साथ शुरू होता है और भय्या दूज के साथ समाप्त होता है ।
1. धनतृयोदशी या धनतेरस या धनवंन्तरी तृयोदशी:— यह भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक) की जयंती (जन्मदिन की सालगिरह) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान अवतरित हुए थे | धनतेरस का अर्थ है धन एवं धन का अर्थ है संपत्ति | इस दिन को शुभ मानते हुए लोग बर्तन, सोना–चादीं खरीदकर धन के रूप में घर लाते है।
2. नरक चतुर्दशी:— नरक चतुर्दशी 14वें दिन पडती है, जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को मारा था। नरक चतुदर्शी को बुराई की सत्ता या अंधकार पर अच्छाई या प्रकाश की विजय के संकेत के रुप में मनाया जाता है। आज के दिन लोग जल्दी (सूर्योदय से पहले) सुबह उठते है, और एक खुशबूदार तेल और स्नान के साथ ही नये कपडे पहनकर तैयार होते है। तब वे सभी अपने घरों के आसपास बहुत से दीपक जलाते है और घर के बाहर रंगोली बनाते है। वे अपने भगवान कृष्ण या विष्णु की भी एक अनूठी पूजा करवाते है। सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व गंगा के पवित्र जल में स्नान करने के बराबर माना जाता है।
3. अमावस्या- लक्ष्मी पूजा: यह मुख्य दिन दीवाली जो लक्ष्मी पूजा (धन की देवी) और गणेश पूजा (सभी बाधाओं को हटा जो ज्ञान के देवता) के साथ पूरी होती है। महान पूजा के बाद वे अपने घर की समृद्धि और भलाई का स्वागत करने के लिए सड़कों और घरों पर मिट्टी के दीये जलाते है।
4. बाली प्रतिप्रदा और गोवर्धन पूजा:– यह उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के गर्व को पराजित करके लगातार बारिश और बाढ से बहुत से लोगों (गोकुलवासी) और मवेशियों के जीवन की रक्षा करने के महत्व के रुप में इस दिन जश्न मनाते है। अन्नकूट मनाने के महत्व के रुप में लोग बडी मात्रा में भोजन की सजावट(कृष्ण द्वारा गोवर्धन पहाडी उठाने प्रतीक के रुप में) करते है और पूजा करते है।यह दिन कुछ स्थानों पर दानव राजा बाली पर भगवान विष्णु (वामन) की जीत मनाने के लिये भी बाली-प्रतिप्रदा या बाली पद्धमी के रूप में मनाया जाता है। कुछ स्थानों जैसे महाराष्ट्र में यह दिन पडवा या नव दिवस (अर्थात् नया दिन) के रुप में भी मनाया जाता है और सभी पति अपनी पत्नियों को उपहार देते है। गुजरात में यह विक्रम संवत् नाम से कैलेंडर के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।
5. यम द्वितीया या भाई दूज:– यह भाइयों और बहनों के मध्य स्नेह-प्यार का त्यौहार है | इस पर्व के पीछे यम की कहानी (मृत्यु के देवता) है। आज के दिन यम अपनी बहन यामी (यमुना) से मिलने आये और अपनी बहन द्बारा उनका आरती के साथ स्वागत हुआ और यम एवं यामी ने साथ साथ में खाना भी खाया। यम नें अपनी बहन यामी को अनेकों उपहार भी दिये। लोग यम द्वितीया या भाई दूज को बहन — भाई के पारस्परिक प्रति प्रेम और स्नेह के रूप में मनाते है।
सकंलन कर्ता—डा. जे.के गर्ग
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