डॉ॰ राजेन्द्र प्रसादके जीवन के कुछ सुने-अनसुने पहलू- (भाग1)

जूनियर कालेज की स्मरणीय घटना

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
जब प्रिंसिपल ने एफ.ए. में उत्तीर्ण छात्रों के नाम लिए तो राजेन्द्र प्रसाद का नाम उस सूची में नहीं था। राजेन्द्र प्रसाद एक मेधावी छात्र थे उन्हें अपने अनउत्तीर्ण होने पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्हें अपनी एफ.ए की परीक्षा में सर्वोच्च अंकों के साथ सफल होने का पूर्ण विश्वास था इसलिए उन्होंने खड़े होकर प्राचार्य से कहा कि वे फेल नहीं हो सकते हैं इसलिए आप परीक्षा में हुए उत्तीर्ण विद्यार्थीयों की सूची को एक बार पुनः देख लें, प्रिंसिपल ने क्रोधित होकर राजेन्द्र प्रसाद से कहा कि वह फ़ेल हो गए होंगे अत: उन्हें इस मामले में तर्क नहीं करना चाहिए। राजेन्द्र का हृदय धक-धक करने लगा और वे हकलाकर घबराते हुए बोले ‘लेकिन, लेकिन सर’ क्रोधित प्रिंसिपल ने कहा, ‘पाँच रुपया ज़ुर्माना’ राजेन्द्र प्रसाद साहस कर दुबारा बोले तो प्रिंसिपल चिल्लाये और बोले ‘दस रुपया ज़ुर्माना’| राजेन्द्र प्रसाद बहुत घबरा गए। अगले कुछ क्षणों में ज़ुर्माना बढ़कर 25 रुपये तक पहुँच गया। एकाएक हैड क्लर्क ने राजेन्द्र को पीछे से बैठ जाने का इशारा किया और वे प्रिंसिपल से बोले कि सर एक ग़लती हो गई है, वास्तव में राजेन्द्र प्रसाद कक्षा में प्रथम आए हैं। राजेन्द्र प्रसाद की छात्रवृत्ति दो वर्ष के लिए बढ़ाकर 50 रुपया प्रति मास कर दी गई। उसके बाद स्नातक की परीक्षा में भी उन्हें सर्वोच्च स्थानप्राप्त हुआ। यद्यपि राजेन्द्र प्रसाद एक विनम्र छात्र थे मगर उन्होंने यह जान लिया था कि आदमी को अपना संकोच को दूर कर आत्मविश्वासी बनना चाहिए।
अंग्रेज को सबक सिखाना-
एक बार राजेंद्र बाबू नाव से अपने गांव जा रहे थे। नाव में कई लोग सवार थे। राजेंद्र बाबू के नजदीक ही एक अंग्रेज बैठा हुआ था। वह बार-बार राजेंद्र बाबू की तरफ व्यंग्य से देखता और मुस्कराने लगता। कुछ देर बाद अंग्रेज ने उन्हें तंग करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली और उसका धुआं जान बूझकर राजेंद्र बाबू की ओर फेंकता रहा। कुछ देर तक राजेंद्र बाबू चुप रहे। लेकिन वह काफ़ी देर से उस अंग्रेज की इस हरकत को सहन नहीं पाये। उन्हें लगा कि अब उसे सबक सिखाना जरूरी है। कुछ सोचकर वह अंग्रेज से बोले, ‘महोदय, यह जो सिगरेट आप पी रहे हैं क्या आपकी ही है?’ यह प्रश्न सुनकर अंग्रेज व्यंग्य से मुस्कराता हुआ बोला, ‘अरे, मेरी नहीं तो क्या तुम्हारी है? महंगी और विदेशी सिगरेट है।’ अंग्रेज के इस वाक्य पर राजेंद्र बाबू बोले, ‘बड़े गर्व से कह रहे हो कि विदेशी और महंगी सिगरेट तुम्हारी है। तो फिर इसका धुआं भी तुम्हारा ही हुआ न। उस धुएं को हम पर क्यों फेंक रहे हो? तुम्हारी सिगरेट तुम्हारी चीज है। इसलिए अपनी हर चीज संभाल कर रखो। इसका धुआं हमारी ओर नहीं आना चाहिए। अगर इस बार धुआं हमारी और आया तो सोच लेना कि तुम अपनी जबान से ही मुकर रहे हो। तुम्हारी चीज तुम्हारे पास ही रहनी चाहिए, चाहे वह सिगरेट हो या इसका धुआं, राजेन्द्र बाबू की बात को सुनकर बेचारा अंग्रेज सकपकाया और उसने अपनी जलती हुई सिगरेट को बुझा दिया।
राजेन्द्र बाबू का कॉलेज में पहला दिन
सरल एवं निष्कपट स्वभाव वाला सीधा-साधा ग्रामीण युवक राजेन्द्र प्रसाद बिहार पहली बार 1902 में कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश हेतु आया था | अपनी कक्षा में जाने पर वह छात्रों को ताकते रह गये क्योंकि वहां सभी छात्र नगें सिर एवं सभी पश्चिमी वेषभूषा की पतलून और कमीज़ पहने थे इसलिये उन्होंने सोचा ये सब एंग्लो-इंडियन हैं किन्तु जब हाज़िरी बोली गई तो राजेन्द्र को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वे सभी हिन्दुस्तानी थे। जब राजेन्द्र प्रसाद का नाम हाज़िरी के समय नहीं पुकारा गया तो उन्होनें हिम्मत जुटा कर अपने प्रोफेसर को पूछा कि उनका नाम क्यों नहीं लिया गया। प्रोफेसर उनके देहाती कपड़ों को घूरता ही रहा एवं चिल्ला कर बोला“ठहरो”, मैंने अभी स्कूल के लड़कों की हाज़िरी नहीं ली है |राजेन्द्र प्रसाद ने हठ किया कि वह प्रेसीडेंसी कॉलेज के छात्र हैं और उन्होंने प्रोफेसर को अपना नाम भी बताया। अब कक्षा के सभी छात्र उन्हें उत्सुकतावश देखने लगे क्योंकि उस वर्ष राजेन्द्र प्रसाद विश्वविद्यालय में प्रथम आये थे, प्रोफेसर ने तुरंत अपनी ग़लती को सुधार कर ससम्मान उनका नाम पुकारा और इस तरह राजेन्द्र प्रसाद के कॉलेज जीवन की शुरुआत हुई।
संकलनकर्ता—डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-विकीपीडिया,गूगलसर्च आदि
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