महान स्वतंत्रता सेनानी
बैरिस्टर अपजौन को आश्चर्य हुआ और वे सोचने लगे कि राजेन्द्र बाबू इतने दिनों से मेरे साथ काम कर रहे है पर अपने मुंह से आज तक अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अपजौन एक दिन राजेन्द्र बाबू से बोले- लोग सफलता, पद और पैसे के पीछे भागते हैं और आप हैं कि इतनी चलती हुई वकालत को आपने ठोकर मार दी। आपने गलत किया। राजेन्द्र बाबू ने जवाब दिया “ एक सच्चे हिंदुस्तानी को अपने देश को आजाद कराने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए, वकालत छोड़ना तो एक छोटी सी बात है”। अपजौन उनकी देश भक्ति की भावना के सम्मुख नत मष्तक हो गये।
जनसेवा में समर्पित एवं जनसाधारण से निरंतर सम्पर्क
राष्ट्रपति बनने पर भी उनका जनसाधारण एवं गरीब ग्रामीणों से निरंतर सम्पर्क बना रहा। वृद्ध और नाज़ुक स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने भारत की जनता के साथ अपना निजी सम्पर्क क़ायम रखा। वह वर्ष में से 150 दिन रेलगाड़ी द्वारा यात्रा करते और आमतौर पर छोटे-छोटे स्टेशनों पर रूककर सामान्य लोगों से मिलते और उनके दुःख दर्द दूर करने का प्रयास करते।
क्या कोई राष्ट्रपति अपने सेवक से माफी मागेंगा ? –
राजेन्द्र बाबू 12 वर्षों तक राष्ट्रपति भवन में रहे, उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन की राजसी भव्यता और शान सुरूचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी। राष्ट्रपति भवन में कार्यरत कर्मचारी तुलसी से एक दिन सुबह उनके कमरे में झाड़पोंछ करते वक्त उसके हाथ से राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया और पेन टूट गया जिससे स्याही कालीन पर फैल गई। चुकिं यह पेन उन्हें किसी ने भेंट किया था और यह पेन उन्हें प्रिय भी था। राजेन्द्र बाबू ने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुलसी को तुरंत अपनी निजी सेवा से हटा दिया, उस दिन वे बहुत व्यस्त रहे, मगर सारा काम करते हुए उनके ह्रदय में एक कांटा चुभता रहा और वे सोचने लगे कि उन्होंने तुलसी के साथ न्याय नहीं किया है। शाम को राजेन्द्र बाबू ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया तब तुलसी ने राष्ट्रपति को सिर झुकाये और हाथ जोड़े खड़े देखा तो वह हक्का भक्का हो गया, राष्ट्रपति ने धीमे स्वर में कहा, “तुलसी मुझे माफ़ कर दो।” तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया। राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया,”तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?” इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये। ऐसी थी उनकी मानवीयता और बड्डपण | |
राजेन्द्र बाबू की दिनचर्या पर गांधीजी की छाप
समाज के बदलने से पहले अपने को बदलने का साहस होना चाहिये। “यह बात सच थी,” बापूजी की इस बात को राजेन्द्र बाबू ने अंतर्मन से स्वीकार किया वे कहते थे कि “मैं ब्राह्मण के अलावा किसी का छुआ भोजन नहीं खाता था। चम्पारन में गांधीजी ने उन्हें अपने पुराने विचारों को छोड़ देने के लिये कहा। आख़िरकार उन्होंने समझाया कि जब वे साथ-साथ एक ध्येय के लेये कार्य करते हैं तो उन सबकी केवल एक जाति होती है अर्थात वे सब साथी कार्यकर्ता हैं
सरोजिनी नायडू के राजेन्द्र बाबू के बारे मै विचार
सरोजिनी नायडू ने राजेन्द्र बाबू के बारे में लिखा था – “उनकी असाधारण प्रतिभा, उनके स्वभाव का अनोखा माधुर्य, उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है। गान्धी जी के निकटतम शिष्यों में उनका वही स्थान है जो ईसा मसीह के निकट के शिष्यों में सेंट जॉन का था।”
देश रत्न राजेन्द्र बाबू की कर्तव्य परायणता
भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वे भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गये।
संकलनकर्ता—डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-विकीपीडिया,गूगलसर्च आदि
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आपकी लेखनी द्वारा रचित,पंक्तियों को पढ़ने का अवसर मिला।
दिवगत राष्ट्रपति और स्वतंत्रता आंदोलन के सच्चे सिपाही डॉ.राजेंद्र प्रसाद जी के जीवन से जुडी बातों ने उनके प्रति श्रद्धा के भाव को और बढ़ा दिया है।