

१. ३१ जनवरी को हमें कच्छ के सफ़ेद रण जाने का सौभाग्य मिला, इस यात्रा के माध्यम बने मेरे मित्र दीपक विधानी के पुत्र, पुत्रवधू व नन्हा बच्चा आरू. गांधीधाम से करीब २०० km की दूरी २.३० घंटे में कार से तय की. गंतव्य पर पहुँचने के बहुत पहले ही करीब ६० km से हमें स्वागत द्वार नज़र आने लगे, जिन पर सफ़ेद रण के ब्रांड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन के पोस्टर विभिन्न मुद्राओं में हमें आकर्षित कर रहे थे.
२. जब सफ़ेद रण के मुख्य द्वार से अन्दर पहुंचे तो एक बहुत ही विशाल शहरनुमा नज़ारा दिखा जहाँ सब कुछ टेंटों से बनाया हुआ था, पक्का निर्माण कहीं नहीं था. रहने के लिए ५०००/ प्रति दिन से लेकर एक लाख रुपए प्रति दिन के फाइव स्टार टेंट भी उपलब्ध थे. बड़े बड़े बाज़ार दोनों ओर बने थे जहाँ हाथ करघा, क्राफ्ट, आर्ट, बैंक, ऐ.टी.एम्, खाने पीने के स्टाल, आकर्षक झांकियां जिनमे स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया आदि के सन्देश थे. इनमें सबसे आकर्षक सीन था महात्मा गाँधी की मूर्ति को हाथ में झाड़ू लेकर सफाई करते हुए दिखाया जाना.
३. सेंकडों लोग वहां अलग अलग ग्रुप्स में आये हुए थे, बच्चे भाग दौड़ कर रहे थे, कोई पतंगबाजी, कोई बेडमिन्टन, कोई दरी बिछा कर ताश तो कोई वहां के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत लोकगीतों, नृत्यों का आनंद ले रहे थे. हम प्रकर्ति के अनुपम दृश्यों को निहारने व केमरे में उन्हें किस कर लेने में मशगुल थे.
अमिताभ बच्चन के एक पोस्टर में जिसमे वे बांये हाथ में लकड़ी लिए, मुस्कुराते हुए दाहिने हाथ से पधारो सा वाला एक्शन करते दिखे तो मुझे एक शरारत सूझी, मैंने आइडीया से अपना दाहिना हाथ उनके लकड़ी वाले हाथ पर रख कर नविन को क्लीक करने को कहा. अमिताभ की फोटो के संग मेरी भी एक याद दाश्त फोटो खिंच गयी.
