
आईये करें महादेव के अनोखे रूप का विश्लेषण एवं उनके रूप के पीछे छुपा रहस्य——
आज का मानव जहाँ एक तरफ चांद व मंगल ग्रह को छूने एवं उनपर जीवन होने की सम्भावनाएं खोजने में लगा है वहीं दूसरी तरफ मानव समाज में हिंसा, छुआछूत, भेदभाव , टोने-टोटके आदि कुरीतियां मानवता के लिये अभिशाप बन रही हैं | ऐसी विषम परिस्थिति में देवों के देव महादेव से जुड़ी कल्याणकारी शिक्षाएं अत्यंत उपयोगीसाबित हो सकती हैं |
जो व्यक्ति भगवान शिव के समान खुद के स्वार्थ का परित्याग कर परमार्थ को अपनी साधना, आराधना समझेगा, वही शिवतत्व को प्राप्त कर सकेगा | भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा से यह प्रेरणा मिलती है कि हम चौथ के चाँद के बजाय द्वितीया (दूज ) के चाँद के समान सभी को सुख-शांति एवंशीतलता प्रदान करें |
भभूत भावन भगवान शिव के परिवार में भूत-प्रेत, सर्प-बिच्छू, बैल और सिंह, मयूर एवं सर्प, सर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसी भेदभाव के गिरे हुओं को, पिछड़े हुओं को , विभिन्न धर्मों के अनुयायीयो को साथ लेकर चल सकते हैं ?.
महादेव श्मशान की राख को शरीर पर मलते हैं. इसका वास्तविकता में तात्पर्य है कि “ हमें भी मृत्यु को हर समय याद रखना चाहिए ताकि हम एक साफ-सुथरा निष्कलंक जीवन जी सकें “| शिव मुंडों की माला पहनते हैं , यह देखकर नासमझी में थोड़ा अटपटा जरुर लगता है, पर शिव का यह रूप भयावह नहीं किन्तु कल्याणकारी रूप ही है | यह शिवरूप हमें यह सीख देता है कि अपने क्रोध, अंहकार-ईगो को सदैव वश में रखें | इसी तरह नशीली वस्तुएं, जैसे- आक, धतूरा, भांग आदि शिव को चढ़ाने की जो परिपाटी है, उसके पीछे यही तथ्य छिपा है कि प्रत्येक वस्तु व्यक्ति के अच्छे-बुरे दोनों पहलू होते हैं, इन नशीले व विषाक्त पदार्थों को शिव को अर्पित करने का अर्थ हुआ उनके शिव-शुभ (औषधीय गुण) को स्वीकार करना किन्तु उनकी अशुभ-व्यसन प्रवर्ती का त्याग कर देना |
भगवान शिव का केवलमृगछाल धारण करना अपरिग्रह का प्रतीक है | परिग्रह एक प्रकार का पाप है, क्योंकि किसी वस्तु का परिग्रह करने का अर्थ हुआ कि दूसरों को उस वस्तु से वंचित करना | अपरिग्रही (जो आवश्यकता से अधिक मात्र मे धन-वस्तु का संग्रह) व्यक्ति ही समाज के अंदर वंदनीय होते हैं और, उनका जीवन संसार में शांति स्थापित करने के लिए होता है | गौरतलब है कि शिव सर्व समाज के सर्वमान्य देवता हैं |शिवरात्रि व्रत मनाने का अधिकार ब्राह्मण से लेकर चंडाल तक सभी को है| भोले बाबा के लिए सब एक समान हैं | भगवान शिव महायोगी भी कहलाते हैं, उन्होंने योग साधना के द्वारा अपने जीवन को पवित्र किया है, वे असीमित गुणों के अक्षय भंडार हैं |
महाशिवरात्रि का पावन पर्व प्रत्येक साधक को आह्वान करता है कि “ उठो, जागो और यदि अपनी और दूसरों की सुख-शांति चाहते हो तो अपरिग्रह, सादा जीवन, उच्च विचार,परोपकार, समता, परदुख कातरता,परोपकार, अहिंसा और परमात्मा के सामीप्य को ग्रहण करो, केवल अपनी उन्नति में ही संतुष्ट न रहो वरन दूसरों की, अपने समाज की तथा अपने राष्ट्र की एवं मानव मात्र की उन्नति को ही अपनी सफलता मानो “ | इन संदेशों को यदि अपने अंत:करण में स्थान दे सकें व उन्हें कार्यरूप में परिणतकर सकें तो ही हम देवों के देव महादेव के सच्चे अनुयायी-अनुचर कहलाने के अधिकारी बनेगें |
-जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—References——-cafe Hindu.com,sadar India People patrotic Plateform-S Mathur,Poonm Negi,Vinayk Vastu Times,Web Duniya, Aajtak, India Today, Wikipediya etc etc
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