जानिये दक्षिण एवं पूर्वी भारत के विभिन्न हिस्सों मै कैसे मनायी जाती है होली

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
तमिलनाडु——तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किवदन्ती है कि तपस्यालीन भगवान शंकर की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव ने शिवजी पर अपने कामबाणों से वार कर उनकी तपस्या को भंग किया जिससे शिवजी क्रोधित हो ऊठे | भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भष्म कर दिया ( उधर पर्वत सम्राट की पुत्री पार्वती भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिये तपस्या कर रही थी, शिवजी की तपस्या भंग होने का सुखद परिणाम तो यह हुआ कि शिव-पार्वती का विवाह हो गया ) , उधर कामदेव की पत्नी रति ने कामदेव की म्रत्यु पर विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को पुनः जीवित करने की प्राथना की। रति की आराधना से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। कहा जाता है कि यह दिन होली का दिन था । आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रुप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

आंध्र प्रदेश की होली वैसेतो दक्षिणभारत में उत्तर भारत कीतरहकीरंगोंभरीहोलीनहींमनाईजातीहैफिरभी सभीलोगहर्षोल्लासमेंआंध्रप्रदेश के बंजारा जनजतियोंकाहोलीमनानेकाअपनानिरालातरीक़ाहै।यहलोगअपनेविशिष्ट अंदाज़मेंमनोरमनृत्यप्रस्तुतकरतेहैं।

बंगाल की होली—बंगाल में दोलयात्रा का उत्सव होता है । यह उत्सव पाँच या तीन दिनों तक चलता है ।पूर्णिमा के पूर्व चतुर्दशी को सन्ध्या के समय मण्डप के पूर्व मेंअग्नि के सम्मान में एक उत्सव होता है। गोविन्द की प्रतिमा का निर्माण होता है। एक वेदिका पर16खम्भों से युक्त मण्डप में प्रतिमा रखी जाती है। इसे पंचामृत से नहलाया जाता है एवं,कई प्रकार के कृत्य किये जाते हैं फिर मूर्ति या प्रतिमा को इधर-उधर सात बार डोलाया जाता है।

उड़ीसा की होली —— उड़ीसा में भी होली को’डोल पूर्णिमा’कहते हैं और भगवान जगन्नाथ जीकी डोली निकाली जाती है।

मणिपुर—–यहाँपर होली याओसांग के नाम से मनाई जाती है। योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है यहां धुलेंडी वाले दिन को पिचकारी कहा जाता है। इस दिन योंगसांग के अंदर चैतन्य महाप्रभु की प्रतिमा स्थापित की जाती है और पूजन के बाद इस झोपड़ी को अलाव की भांति जला दिया जाता है। इस झोपड़ी में लगने वाली सामग्री को बच्चों द्वारा चुराकर लाने की प्रथा है। इसकी राख को लोग मस्तक पर लगाते हैं एवं ताबीज भी बनाया जाता है। पिचकारी के दिन सभी एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। बच्चे घर-घर जाकर चांवल,सब्जी इत्यादि इकट्ठा करते हैं और फिर विशाल भोज का आयोजन किया जाता है।

सकंलन कर्ता —– जे.के.गर्ग\ please visit our blog————–gargjugalvinod.blogspot.in

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