प्रिन्ट मीडिया के पितामह “श्रद्धेय कुलिश जी” को शत शत नमन

सिद्धार्थ जैन
सिद्धार्थ जैन
“हमारे समाज की सत्ता राजनितिक सत्ता से बड़ी हे। जहाँ हमने थोड़ी शिथिलता बरती…वही मात खा गये, लेकिन अभियान के तौर पर या जानबुझकर पक्षपात करना या विरोध करना हमारी प्रकृति में नहीं हे।” श्रद्धेय कुलिश जी के यह शब्द तब,आज और भविष्य के लिए भी अमिट रहेंगे। जन सत्ता…, राजसत्ता व मीडिया सत्ता से कही ऊपर हे। इस मर्म की गहराईयो को कुलिश जी ने खूब नजदीकियों से देखकर खुद को भी उसी अनुरूप ढ़ाल लिया। यही कारण हे कि “राजस्थान पत्रिका”का स्वरूप हमे आज वटवृक्ष के रूप में दिखाई दे रहा हे।

“बाऊजी” को कुछेक दफा मुझे भी नजदीक से जानने का सौभाग्य मिला। हंसमुख,सरल,मस्तमौला और शीघ्र ही हर किसी को अपना बना देने वाली शख्शियत…। बात करते लगता ही नही कि राजस्थान की किसी टॉप हस्ती से हम बात कर रहे हे। अपने एम्पायर के किसी अदने पत्रकार से भी वैसे ही बात करते। उनके स्वभाव में कही कोई लेश मात्र भी दम्भ का नामोनिशान तक देखने को नही मिलता।

ब्यावर में बातचीत के दौरान उनके विचार जानकर मै दंग रह गया। उनका अपने संस्थान को लेकर स्पष्ट नजरियां था। वे कहते कि कमाई का पच्चीस पैसा कर्मचारियों को, पच्चीस मशीनों के नवीनीकरण में, पच्चीस परिवार के लिए और शेष पच्चीस पैसा लोकहित कार्यो में समर्पित कर दिया जाना चाहिए। ऐसी ऊँची सोच रखने वाले उन महामना व उनके पुत्र के काल में “राजस्थान पत्रिका” में मेरे जैसे ही अनेक कर्मियो ने खुद को परिवार का ही हिस्सा मानते हुए स्वयं को “पत्रिका” के लिए समर्पित किये रखा।

मुझे वह समय भी याद आता हे…। अपनों के ही किन्ही के उकसावे में पत्रिका के मुख्यालय के कई कर्मचारी अचानक हड़ताल पर चले गये। इसके बावजूद वह कुलिश जी का वर्चस्व व आत्मीयता ही थी कि टेक्निकल कर्मचारियों के साथ पत्रकार आदि सब ने मिलझुल कर दिनरात एक कर दिए। उस गम्भीर संकट में भी पत्रिका प्रकाशन के एक दिन भी रुकने की नौबत नही आई। कुलिश जी ने कर्मचारियों की उस निष्ठा को सिर-माथे लेते हुए सबको नवाजने में भी कोई कौर-कसर नही रखी। ऐसे थे…महामना “कर्पुर चन्द्र जी कुलिश”।

सरल और मस्तमौला इस कदर कि एक दफा बातों बातों में मुझे बताया। अपनी किसी बीमारी से कभी भी चिंतित नही हो। उनको डाक्टर ने एक दफा बताया कि आपको डायबिटीज हो गई। वे बोले तो क्या हो गया? डाक्टर बोले कि आपको यह नही खाना..वो नही खाना..कम खाना आदि आदि। कुलिश जी बोले कि इतना ध्यान में रखने से तो चिन्ता वाली बात हो जायेगी। और फिर आप (डा.) ही कहते हो कि चिन्ता ही शुगर बढ़ाती हे। फिर खाने की चिन्ता ही क्यों करे…! कार में वे अपने साथ “बोर” रखते। मस्ती से खाते रहते। ऐसे मस्तमौला..निडर..दमंग..निष्पक्ष..सजग..कलमकार को शत-शत नमन…!

सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राज.)

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