सर्वस्पर्शी एवं सर्वग्राह्य भारतीय संस्कृति के दृष्टा मनीषियों और प्राचीन भारतीय खगोल शास्त्रियों के सूक्ष्म चिन्तन मनन के आधार पर की गई कालगणना से अपना यह नव संवत्सर पूर्णतः वैज्ञानिक एवं प्रकृति सम्मतः तो है ही, हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहर को पुष्ट करने का पुण्य दिवस भी है।
ऐतिहासिक महत्व:-
1. ब्रह्मपुराण के अनुसार पूर्णतः जलमग्न पृथ्वी में से सर्वप्रथम बाहर निकले भू-भाग सुमेरू पर्वत पर 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 116 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारम्भ की।
2. मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम के लंका विजय के बाद अयोध्या आने के पश्चात् यही मंगल दिन उनके राज्याभिषेक के लिए चुना गया।
3. शक्ति एवं भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है।
4. सनातन धर्म की रक्षा के लिए वरूणावतार झूलेलालजी आज ही के दिन अवतरित हुए।
5. समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थान दिवस के रूप में चुना।
6. सामाजिक समरसता के अग्रदूत डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म भी आज ही के दिन हुआ।
7. आज से 2072 वर्ष पूर्व राष्ट्रनायक सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी हमलावर शंकों को भारत की धरती से खदेड़ा। अभूतपूर्व विजय के कीर्ति स्तंभ के रूप में कृतज्ञ राष्ट्र ने कालगणना को विक्रमी संवत् कहकर पुकारा।
8. अधर्म पर धर्म का वर्चस्व स्थापित करने वाले सम्राट युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।
9. अपने राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाकर भारत माता को पुनः जगद्गुरू के सिंहासन पर आसीन करने के ध्येय को लेकर चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवर का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा के मंगल दिन ही हुआ।
10. मंत्र दृष्टा एवं न्यायदर्शन के आदि प्रवर्तक ऋषि गौतम का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा को ही हुआ।
11. महाराजा अजयपाल ने आज ही के दिन राजस्थान की हृदयस्थली अजयमेरू की स्थापना की।
12. गुरूमुखी के रचनाकार एवं सिख पंथ के द्वितीय गुरू अंगददेव का प्रकाशोत्सव भी आज ही पावन दिवस है।
वैज्ञानिक महत्व:-
1. भारतीय काल गणना के अनुसार सृष्टि का निर्माण हुआ अब तक 1972949116 वर्ष बीत चुके है। आज विश्व के वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करने लगे है।
2. भारतीय काल गणना विशुद्ध वैज्ञानिक प्रणाली है, इसमें सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक सैकण्ड के सौवें भाग का भी अन्तर नहीं आया है।
3. भारतीय काल गणना में समय की सबसे छोटी इकाई का भी महत्वपूर्ण स्थान है। त्रुटि सैकण्ड का 33750वाँ भाग है। सबसे बड़ी इकाई कल्प 432 करोड़ वर्ष का होता है। इस कल्प का वर्तमान में 7वाँ मनवन्तर है, जिसका नाम वैवस्वत है। वैवस्वत मनवन्तर की 71वीं चर्तुयुगियों में से 27 बीत चुकी है। 28वीं चतुर्युगी में भी सतयुग, त्रेता, द्वापर बीतकर कलियुग के 5115 वर्ष बीत चुके है।
4. सृष्टि का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार को सूर्य के प्रथम प्रकाश के साथ हुआ, इसलिए इस दिन प्रथम होरा रवि की थी। पश्चात् चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि की होरा आई, जिन पर सातों दिन का नामाकरण किया गया, जिन्हें आज संपूर्ण संसार मानता है।
5. चन्द्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण जैसी घटनाएं अचूक रूप से पूर्णिमा एवं अमावस्या को ही होती है।
प्राकृतिक महत्व:-
इस तिथि के आस-पास प्रकृति में नवीन परिवर्तन एवं उल्लास दिखाई देता है। रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते है। वृक्ष एवं लताएँ पुष्पित-पल्लवित होती दिखाई देती है। खेतों से फसलें कटकर घर में आना प्रारम्भ हो जाती है। सूर्य की किरणें पृथ्वी को ऊर्जामयी करने लगती है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होने से नए कार्यो के प्रारम्भ का शुभ मुहूर्त होता है। समाज में उत्साह एवं आनन्द का वातावरण दिखाई देता है।
भारतीय संविधान की भावना के अनुसार:-
भारतीय काल गणना, संवत्सर किसी विचार या पंथ पर आश्रित नहीं है। अतः किसी जाति या संप्रदाय विशेष की नहीं है। हमारी गौरवशाली परम्परा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोल शास्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित है। अतः विक्रमी संवत का वैचारिक आधार हमारे गणतंत्र में मान्य वर्तमान पंथ निरपेक्ष स्वरूप को भी पुष्ट करता है।
वर्ष प्रतिपदा के आस पास ही पढ़ने वाले अंग्रेजी वर्ष के मार्च अप्रैल माह से ही दुनियाभर के पुराने कामकाज समेट कर गए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। चाहे फिर व्यापारिक संस्थानों के लेखे-जोखे हो, करदाता का कर निर्धारण हो या सरकार का बजट।
जब हमारे पास राष्ट्र की दृष्टि से विजयी, विज्ञान की दृष्टि से समायोचित, प्रकृति की दृष्टि से समन्वयकारी, खगोलशास्त्र की दृष्टि से पूर्ण और धार्मिक दृष्टि से पंथ निरपेक्ष एवं स्वदेशी कालगणना है तो विदेशी, अपूर्ण, अवैज्ञानिक एवं पांथिक कालगणना की ओर अंधाधुध क्यों भागें ? आइए अपनी श्रेष्ठ परम्पराओं का अनुसरण करते हुए फिर से एक बार उठें और समूचे विश्व में भारतीय गौरव को प्रतिष्ठित कर दें।
इस तरह करें नव वर्ष का स्वागत:-
ऽ नव वर्ष की पूर्व संध्या पर घरों के बाहर दीपक जलाकर नववर्ष का स्वागत करना चाहिए।
ऽ नव वर्ष के नव प्रभात का स्वागत शंख ध्वनि व शहनाई वादन करके किया जाना चाहिए।
ऽ घरों, मंदिरों पर ओम् अंकित पताकाएं लगानी चाहिए तथा प्रमुख चौराहों, घरों को सजाना चाहिए।
ऽ यज्ञ-हवन, संकीर्तन, सहभोज आदि आयोजन करके उत्साह प्रकट करना चाहिए।
ऽ अपने मित्रों व संबंधियों को नव-वर्ष बधाई संदेश भेजने चाहिए।
ऽ भारतीय कालगणना एवं इसके महत्व को उजागर करने वाले लेखों का प्रकाशन तथा गोष्ठियों का आयोजन करना चाहिए।
-सुनील दत्त जैन
अध्यक्ष
नव संवत्सर समारोह समिति
अजयमेरू