माता का चमत्कार
सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। पाकिस्तानी सेना ने तनोट को तीन दिशाओं से घेर लिया और तनोट की ओर बढ़ने लगे। यदि शत्रु तनोट पर कब्जा कर लेते तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकते थे। इसलिए पाकिस्तानी सैनिकों ने तनोट पर गोले बरसाने शुरू कर दिये।
उस समय मेजर जय सिंह 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां के साथ शत्रु सेना से मुकाबला कर रहे थे। दुश्मनों ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाए लेकिन अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
माता का ऐसा चमत्कार देखकर सैनिक उत्साहित हो गये और पाकिस्तानी सैनिकों पर कहर बनकर टूट पड़े। इसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने जान बचाकर भागना शुरू कर दिया। ऐसे माना जाता है कि सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में रहोगे मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी। सन् 1971 की लड़ाई में भी मां ने ऐसा ही चमत्कार फिर दिखाया था। सैनिकों ने मां के चमत्कार का बखान करने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दागे गये गोलों को मंदिर में संभाल कर रखा है।
ऐसे बना माता का मंदिर
लोक कथाओं के अनुसार तनोट माता एक चारण की पुत्री थी जो हिंगलाज माता का भक्त था। चारण की भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने इसके घर कन्या रूप में जन्म लिया। छोटी उम्र से ही माता ने चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया। माता ने हूणों के आक्रमण से माड़ क्षेत्र की और भाटी राजाओं को सुदृढ़ बनाया। भाटी राजपूत नरेश ‘तणुराव’ने विक्रम संवत 828 में तनोट माता के मंदिर का निर्माण करवा।
