राजस्थान के लोक देवता तेजाजी —–Part 4

(माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 —- भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160) (29 जनवरी 1074– 28 अगस्त 1103)

dr. j k garg
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प्राण जाहि पर वचन न जाहि के धनी—तेजाजी : तेजाजी विजयी होकर वापस पनेर आये | तेजाजी तुरंत नागराज के पास पहुंच कर उन्हें डसंने को कहा | लहूलुहान तेजाजी को नागराज बोले तुम्हारे रोम- रोम से खून टपक रहा है तो मैं तुम्हें कहाँ डसूं ? तेजाजी बोले कि मेरे हाथ की हथेली व जीभ पर कोई घाव नहीं है इसलिए आप यहाँ डसं लें | नागराज ने तेजाजी से कहा“तेजा तुम शूरवीर हो, मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर मैं बहुत खुश हूँ, अब तुम जाओ | तुम्हारी शूरवीरता और सच्चाई के सामने में हार गया हूँ |मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम अपने कुल के एक मात्र देवता बनोगे | आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका जहर उतर जायेगा | तेजाजी ने कहा “ नागराज आपको मुझें डसंना ही होगा अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर अपने वचन की रक्षा की | तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुला कर “भाई मेरी इहलीला समाप्त होने वाली है मेरा रुमाल लेकर मेरी प्राण प्रिया पत्नी पेमल को मेरे प्यार के प्रतिक के रूप में उसे दे देना और पेमल को कहना कि उसका तेजा कुछ ही पलों का मेहमान हैं”| तेजाजी ने लीलण घोड़ी की आँखों से आंसू टपकते देख कहा – “लीलण आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया है | तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से मेरी इहलीला के समाप्त होने के बारे में बता देना ”|
पेमल का अपने पति तेजाजी के वियोग में सती होना: आसू देवासी ने पनेर जाकर पेमल को बताया “तुम्हारा पति तेजा मरणासन्न हैं उसने तुम्हारें लिये यह रुमाल भेजा है | “तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल की आँखें पथरा गई उसने मां से नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई | कहते हैं कि चिता की अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई | लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि – “भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना ऐसा करने से मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे | लीलण घोड़ी भी अपने मालिक तेजाजी को सती माता पेमल के हवाले खरनाल चली गई | खरनाल गाँव में लीलण खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को कोई बड़ी अनहोनी होने का डर लगा, तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी और थोड़ी देर बाद अपने माँ-बाप, भाई भाभी और अन्य स्वजनों से आज्ञा लेकर खरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता बनवाकर भाई की मौत पर सती हो गई | भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा एक मात्र उदहारण है | राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में है जिसे बांगुरी माता का मंदिर कहते हैं | तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण ने भी अपना शारीर छोड़ दिया | लीलणघोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना हुआ है | तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।

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