मैसूर (कर्नाटक) का दशहरा
कर्नाटक मेंमैसूरका दशहरापूरे भारत में प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सुसज्जित किया जाता है और हाथियों का शृंगार कर उनका पूरे शहर में भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्धमैसूर महलको दीपमालाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है। इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं। वाड्यार राजाओं के काल से शुरू हुये इस दशहरे को अभी तक भी राजसी शान शोकत के साथ मनाया जाता है और लगातार दस दिन तक चलने वाले इस उत्सव में राजाओं का स्वर्ण –सिंहासन को प्रदर्शित किया जाता है।
आंध्रप्रदेश का दशहरा
आंध्र प्रदेश के तिरूपति (बालाजी मंदिर) में शारदीय नवरात्र को ब्रह्मोत्सवम् के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिनों के दौरान सात पर्वतों के राजा पृथक–पृथक बारह वाहनों की सवारी करते हैं तथा हर दिन एक नया अवतार लेते हैं। इस दृश्य के मंचन और साथ ही चक्रस्नान (भगवान के सुदर्शन चक्र की पुष्करणी में डुबकी) के साथ आंध्र में दशहरा सम्पन्न होता है।
केरल का दशहराka
केरल में दशहरे की धूम दुर्गा अष्टमी से ’पूजा वैपू’ के साथ आरंभ होती है। इसमें कमरे के मध्य में सरस्वती माँ की प्रतिमा सुसज्जित कर आसपास पवित्र पुस्तकें रखी जाती हैं और कमरे को अस्त्रों से सजाया जाता है। उत्सव का अंत विजयदशमी के दिन ’पूजा इदप्पु’ के साथ होता है। महाराज स्वाथिथिरूनाल द्वारा आरंभ शास्त्रीय संगीत गायन की परंपरा यहाँ आज भी जीवित है।
तमिलनाडु का दशहरा
तमिलनाडु में मुरगन मंदिर में होने वाली नवरात्र की गतिविधयाँ प्रसिद्ध हैं।
इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता
गुजरात का दशहरा
गुजरातमें मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है।गरबा नृत्यइस पर्व की शान है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृत्य करते हैं। इस अवसर पर भक्ति, फिल्म तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है। नवरात्रि में सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है।गुजरात में दशहरा के दौरान गरबा व डांडिया–रास की धूम रहती है। मिट्टी के घडे़ में दीयों की रोशनी से प्रज्वलित ’गरबो’ के इर्द–गिर्द गरबा करती महिलायें इस नृत्य के माध्यम से देवी का ध्यान करती हैं। गरबा के बाद डांडिया–रास का खेल खेला जाता है। ऐसी मान्यता है कि माँ दुर्गा व राक्षस महिषासुर के मध्य हुए युद्ध में माँ ने डांडिया की डंडियों के जरिए महिषासुर का सामना किया था। डांडिया–रास के माध्यम से इस युद्ध को प्रतीकात्मक रूप मे दर्शाया जाता है।
महाराष्ट्र का दशहरा
महाराष्ट्रमेंनवरात्रिके नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवीसरस्वतीकी वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।
महाराष्ट्रमें इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमीवृक्ष के पत्तों के रूप में ‘स्वर्ण’ लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
कश्मीर का दशहरा
कश्मीरके हिन्दू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। अत्यंत पुरानी परंपरा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माताखीर भवानीके दर्शन करने के लिए जाते हैं। यह मंदिर एक झील के बीचोबीच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि देवी ने अपने भक्तों से कहा हुआ है कि यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक एक दिन पहले और भारत पाक युद्ध के पहले यहाँ का पानी सचमुच काला हो गया था।
बंगाल का दशहरा
मान्यताओं के अनुसार नौवीं सदी में बंगाल में जन्मे बालक व दीपक नामक स्मृतिकारों ने शक्ति उपासना की इस परिपाटी की शुरूआत की थी। तत्पश्चात दशप्रहारधारिणी के रूप में शक्ति उपासना के शास्त्रीय पृष्ठाधार को रघुनंदन भट्टाचार्य नामक विद्वान ने संपुष्ट किया। कहते हैं कि प्लासी के युद्ध (1757) में विजय के पश्चात लार्ड क्लाइव ने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु सहयोगी राजा नवकृष्णदेव की सलाह पर कलक्त्ता के शोभा बाजार की विशाल पुरातन बाड़ी में भव्य स्तर पर दुर्गा–पूजा की। इसमें कृष्णानगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों द्वारा निर्मित भव्य मूर्तियाँ बनावाई गईं एवं बर्मा और श्रीलंका से नृत्यांगनाएं बुलवाई गईं। लार्ड क्लाइव ने हाथी पर बैठकर इस समारोह का आनंद लिया। राजा नवकृष्णदेव द्वारा की गई दुर्गा–पूजा की भव्यता से लोग काफी प्रभावित हुए व अन्य राजाओं, सामंतों व जमींदारों ने भी इसी शैली में पूजा आरम्भ की। सन् 1790 में प्रथम बार राजाओं,सामंतो व जमींदारों से परे सामान्य जन रूप में बारह ब्राह्मणों ने नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा नामक स्थान पर सामूहिक रूप से दुर्गा–पूजा का आयोजन किया, तब से यह धीरे–धीरे सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होता गया।
प्रस्तुतिकरण—–डा.जे.के.गर्ग