जीवन में खुशीयां प्राप्त करने एवं खुशहाल रहने के लिये मुहं न मोड़े अटल सच्चाईयों से Part -2

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
सच्चाई तो यही है कि आदमी को कभी भी किसी की निंदा अथवा आलोचना नहीं करनी चाहिये | किसी की निंदा करने से पूर्व संत कबीर केशब्दों को याद करें “ दोष पराए देखि करि,चला हसन्त हसन्त,अपने याद न आवई,जिनका आदि न अंत | यानि मनुष्य का स्वभाव है कि जब वहदूसरों के दोष देख कर हंसता है,तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत | संत कबीर ने तो सही ही कहा था कि “तिनका कबहुँ ना निन्दिये,जो पाँवन तर होय,कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े,तो पीर घनेरी होय। यानि हमें एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए जो हमारे के नीचे दब जाता है | किन्तु अगर वही तिनका उड़कर आपकी ही आँख में आ गिरेगा तोआपको ही असीम पीड़ा देगा |
अरस्तु ने कहा था कि आलोचनाएं जीवन का हिस्सा होती हैं। अक्सर लोगों को आलोचनाएं और उनकी कमियां बताया जाना पसंद नहीं आता।वास्तविकता तो यह ही है कि दूसरे ही हमारी कमियों के बारे में ज्यादा सही बता सकते हैं । यह बात भी समझना चाहिए कि आलोचना हमेशाअपमान नहीं होती। यह किसी की सोच अथवा उनका आकलन भी हो सकता है। इसलिए जब किसी की आलोचना का सामना करना पड़े तोसम्मानजनक जवाब दिया जाना चाहिए क्योंकि आलोचनाएं हमें बेहतरी की तरफ ही ले जाती हैं। आलोचना करने वाले से सलाह भी ली जासकती है कि कैसे समस्या का समाधान किया जाए। सच्चाई तो यही है कि आलोचनाएं इंसान को जीवन में सफलता के मार्ग पर ले जाने मेंसाहयक ही बनती हैं।

प्रस्तुतिकरण—डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्र-पत्रिकाये ,मोटिवेशन गुरुओं के लेख, शुभविलास दास, एडवर्ड मॉर्गन फोर्स्टर, आदि
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