स्वामी विवेकानन्द के अनमोल बोल—भाग-2

swami-vivekananda thumbआकांक्षा, अज्ञानता और असमानता ही बंधन की त्रिमूर्तियां हैं |
जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
अगर आप ईश्वर को अपने भीतर और दूसरे वन्य जीवो में नहीं देख पाते, तो आप ईश्वर को कही नहीं पा सकते।
पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में स्वयं से प्रेम कर सकता हुँ तो दुसरो में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हूँ।
लगातार पवित्र विचार करते रहे, बुरे संस्कारो को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।
उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता |
एक विचार लो | उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो | अपने मस्तिष्क , मांसपेशियों , नसों , शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो | यही सफल होने का तरीका है।
प्रस्तुती एवं सकलंकर्ता—डा.जे. के. गर्ग
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