
पर्व-उत्सव सामाजिक बंधनों को मजबूत बनाने का शक्तिशाली माध्यम है | पर्व एक बहाना है अपनों से मिलने का लड़ाई-झगड़ा भूलाकर एक होने का और ईश्वर की आराधना करने का | हमारे देश में प्राचीन काल से ही मान्यता रही है कि ईश्वर केवल मंदिरों या मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों में नहीं बसता है बल्कि परमात्मा इस सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है | भारत में त्यौंहार परमपिता परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने,सामाजिक संबंधों में मजबूती प्रदान करने व जीवन में उल्लास खुशी लाने के लिए मनाए जाते हैं। मकर सक्रांति का त्यौंहार सम्पूर्ण सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत भगवान सूर्य की अराधना के रूप में मनाया जाता है | जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उसी अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्तिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेशकरना“संक्रान्ति”कहलाता है। इसी लिये सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को “मकर संक्रान्ति”कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना‘उत्तरायण’तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना‘दक्षिणायन’है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञमें दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य,दान,जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। वास्तव में मकर सक्रांति सूर्य के उत्तरायण में आने का पर्व है| ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण में आने पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है और यह धरा प्रकाशमय हो जाती है। मकर संक्रांति के दिन भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों यथा प्रयाग,हरिद्वार,वाराणसी,कुरुक्षेत्र,गंगासागर आदि में पवित्र नदियों गंगा,यमुना आदि में करोडों लोग डुबकी लगा कर स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि वरुण देवता इन दिनों में यहां आते हैं , यह भी माना जाता है कि उत्तरायण में देवता मनुष्य द्वारा किए गए हवन,यज्ञ आदि को शीघ्रता से ग्रहण करते हैं। अथर्ववेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दीर्घायु और स्वस्थ रहने के लिए सूर्योदय से पूर्व ही स्नान शुभ होता है। ऋग्वेद में ऐसा लिखा है कि-हे देवाधिदेव भास्कर,वात,पित्त और कफजैसे विकारों से पैदा होने वाले रोगों को समाप्त करो और व्याधि प्रतिरोधक रश्मियों से इन त्रिदोशों का नाश करो।
वैज्ञानिक विचार
वैज्ञानिक विचार से21-22दिसंबर के आसपास से ही दिन बढऩे शुरू होते हैं। इसलिए वास्तविक शीतकालीन संक्रांति21दिसंबर या22दिसंबर जब उष्णकटिबंधीय रवि मकर राशि में प्रवेश करती है पर शुरू होती है। इसलिए वास्तविक उत्तरायण21दिसंबर को होता है। यही मकर सक्रांति की वास्तविक तारीख भी थी। एक हजार साल पहले मकर संक्रांति31दिसंबर को मनाया गयी थी और अब14जनवरी को बनाई जाती है। वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार पांच हजार साल बाद,यह फरवरी के अंत तक हो सकता है,जबकि9000वर्षों बाद में यह जून में आ जाएगा।
खगोलीय तथ्य
सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। साल2012में यह14जनवरी की मध्यरात्रि में थी, इसलिए उदय तिथि के अनुसार मकर संक्रांति15जनवरी को पड़ी थी। इस वर्ष 2017 में मकर सक्रांति 14 जनवरी को बनाई जायेगी , अगले 68सालों तक यह पर्व 15जनवरी को ही पड़ेगा। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश20मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर72साल एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस तरह 2080के बाद मकर संक्रांति 16जनवरी को पड़ेगी। इसी सन्दर्भ यह उल्लेखनीय है कि राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24दिसम्बर को पड़ा था। मुग़ल बादशाह अकबर के शासन काल में10जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह त्योहार 11जनवरी को पड़ा था।
ज्योतिषीय आकलन
ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष20सेकेंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से1000साल पहले मकर संक्रांति31दिसंबर को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से14जनवरी को मनाई जाने लगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000साल बाद मकर संक्रांति फ़रवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी
पोराणिक मान्यता
पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते हैं,वैसे तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व शनि में शत्रुता बताई गई है लेकिन इस दिन पिता सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं तो इस दिन को पिता पुत्र के तालमेल के दिन के दिन व पिता पुत्र में नए संबंधो की शुरूआत के दिन के रूप में भी देखा गया है।
इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार करके असुरो के सिर को मंदार पर्वत पर दबा कर युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी थी।इसलिए यह दिन बुराईयों को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा की शुरूआत के रूप में भी मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज व गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों का तिल से तर्पण किया था और तर्पण के बाद गंगा इसी दिन सागर में समा गई थी और इसीलिए इस दिन गंगासागर में मकर सक्रांति के दिन मेला भरता है।
सकलंककर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—डॉ. जे.के गर्ग
सन्दर्भ—विभिन्न पत्र-पत्रिकायें,,भारत ज्ञान कोष एवं, मेरी डायरी के पन्ने आदि
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