मोहन थानवीबीकानेर। अब कहा जा सकता है कि हम अपने राष्ट्र को मूलभूत आवश्यकताओं से आगे चलते हुए विकसित राष्ट्र के रूप में संसाधन उपलब्ध करवाने की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। देश के वित्त मंत्री द्वारा आय-व्यय के अनुमानों को बजट के रूप में सदन में रखा जा चुका है और वित्त सलाहकार, वित्त विशेषज्ञ, वाणिज्य, कृषि, शिक्षा, रक्षा आदि आदि क्षेत्रों के जानकार बजट की विशेषताएं और खामियां बताने में जुटे हैं। ऐसे में हम आम जनता की बात कर रहे हैं, आमजन के लिए यह बजट थाली को सहज सरल बनाने वाला सिद्ध होता है या नहीं किन्तु यह समझ में आता है कि बजट में थाली के निवाले से लेकर आम आदमी के सपनों को साकार करने के प्रयत्न जरूर पिरोये गए हैं। बीते सप्ताहों में भ्रष्टाचार व कालेधन के उन्मूलन के लिए नोटबंदी का सामना कर चुके देश में डिजीटलाइजेशन के प्रयासों का युद्धस्तर पर क्रियान्वयन होना आम आदमी के विश्वास को जीतने वाला सिद्ध हो सकता है। हालांकि बजट प्रावधान यह संकेत करते हैं कि लगभग हर आदमी के हाथ में आ चुका सूचना-संचार का प्रमुख माध्यम मोबाइल अब महंगा हो सकता है। लेकिन जब सरकार ने महंगाई से जूझने का हौसला बजट प्रावधानों में रखने के संकेत किए हैं तो जरूरी है कहीं से राजस्व वृद्धि के उपाय भी करने होंगे, किए भी गए होंगे। टैक्स छूट और ग्राम विकास के साथ साथ शिक्षा, सुरक्षा आदि पर विशेष ध्यान केंद्रित करने के अलावा सरकार ने मध्यम वर्ग को ैकाफी राहत के प्रावधान दिए हैं। जबकि धनाढ्य वर्ग पर कुछ अतिरिक्त प्रभार के प्रस्ताव भी दिखाई देते हैं। कुल मिला कर विकसित देशों की श्रेणी की ओर तेजी से बढ़ते ैसमग्र देश के लिए यह बजट भूख से जूझने का नहीं वरन् रोटी, कपड़ा से इतर मकान और अत्याधुनिक सुविधाएं विकसित करने के निश्चय का प्रतीक लगता है। यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि हर काल मेैं पल पल आगे बढ़ते कदमों के साथ आमजन को और अधिक अच्छे दिनों की प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ती है।