डा. जे.के.गर्गराजस्थान में होली के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। बाड़मेर में पत्थर मार होली खेली जाती है तो अजमेर में कोड़ा होली। सलंबर कस्बे में आदिवासी गेर खेलकर होली मनाते हैं। इस दिन यहां के युवक हाथ में एक बांस जिस पर घूंघरू और रूमाल बंधा होता है,जिसे गेली कहा जाता है लेकर नृत्य करते हैं। इस दिन युवतियां फाग के गीत गाती हैं। तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। कहा जाता है कि शिवजी की तपस्या को भंग करने के लिये कामदेव ने शिवजी पर अपने कामबाणों से वार कर उनकी तपस्या को भंग किया जिससे शिवजी क्रोधित हो ऊठे| भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भष्मकर दिया | शिवजी की तपस्या भंग होने का सुखद परिणाम तो यह हुआ किशिव-पार्वती का विवाह हो गया | उधर कामदेव की पत्नी रति ने कामदेव की म्रत्यु पर विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को पुनः जीवित करने की प्राथना की। रति की आराधना से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। कहा जाता है कि यह दिन होली का दिन था | आज भी रति के विलाप को लोकसंगीत के रूप में गाया जाता है और चन्दन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को आग में भस्म होने में पीड़ा ना हो, साथ ही बाद में कामदेव के जीवित होने की खुशीमे रंगो का त्योहार मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश की होली वैसे तो दक्षिण भारत में उत्तर भारत की तरह की रंगों भरी होली नहीं मनाई जाती है फिर भी सभी लोग हर्षोल्लास में आंध्रप्रदेश के बंजारा जनजतियों का होली मनाने का अपना निराला तरीक़ा है। यह लोग अपने विशिष्ट अंदाज़ में मनोरम नृत्य प्रस्तुत करते हैं।उड़ीसा में भी होली को ‘डोल पूर्णिमा’ कहते हैं और भगवान जगन्नाथजी की डोली निकाली जाती है। सकंलन कर्ता —– जे.के.गर्ग, please visit our blog————–gargjugalvinod.blogspot.in