डीडवाना में अनूठे अंदाज में मनाई जाती है होली

FB_IMG_14892831138972968FB_IMG_14892830840227780नागौर जिले के डीडवाना मे हो का त्योहार एक ऐसी परंपरा के साथ मनाया जाता है जो कि भारत मे कही और नही मिलती । होली खेलने के बाद शाम को माली सैनी समाज के लोगों के आस पास के गाँवों की 12 टीमे अलग अलग स्वांग रचकर आती है और सब एक जगह इकठ्ठे होते है.। सबसे बढिया स्वांग रचने वाली टीम को पुरस्कृत किया जाता है । डीडवाना मे पिछले सैकड़ो साल से जारी कार्निवाल का आयोजन और कही नही होता .

जोर जोर से हंस रहे रावण को देखकर आप गलत अंदाजा ना लगा ले उससे पहले हम आपको बता देते है की ये कोई राम लीला नहीं बल्कि देसी कार्निवाल है और इसमें आपको धार्मिक, राजमीतिक औऱ फिल्म कलाकारों के चरित्र भी देखने को मिलते है | देसी कार्निवाल जी हां , नागौर जिले के डीडवाना मे होली के दिन एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है जो की होली कार्निवाल के नाम से जानी जाती है । ये आयोजन डीडवाना के माली समाज की और से होता है । इसमे भाग लेने वाले भी माली समाज से जुड़े ही होते हैं । महिलाओ के स्वांग भी पुरूष ही रचते है । माली समाज के 12 बासों के नाम से मशहूर आस पास के 12 गाँवों के लोग शिरकत करते हैं और । हर बास की एक टीम प्रतियोगिता मे भाग लेती है। ये जरूरी है कि सभी प्रतिभागी कुछ ना कुछ स्वांग रच कर, वेश बदलकर ही ही कंपीटिशन मे शिरकत करे ।

पूरे नगर की परिक्रमा के लिए स्वांगधारियो की सभी टोलियां एक साथ निकलती है जिसे गैर कहा जाता है और बाजार से जब यह जुलूसनुमा गैर निकलती है तो हर समुदाय के लोग पलक फावड़े बिछाकर इसका स्वागत करते हैं। इसमें कुल 12 बासों यानी गाँवों की गैरें होती है जिनमें हजारों की संख्या में बच्चे बुढ़े जवान अलग अलग स्वांग बनाकर निकलते हैं। हर टीम की कोशिश होती है कि उनकी परर्फोमेंस सबसे अच्छा रहे ताकि उन्हे खिताब मिल सके इसलिए टीम मेंबर बढिया से बढिया स्वांग रचने की कोशिश करते है इसी वजह से कई बार इसकी तुलना ब्राजील के विश्वप्रसिद्ध कार्निवाल से भी की जाती है। लेकिन इसमें भारतीय संस्कृति का सम्मान रखा जाता है इसलिए यहां इसमें ब्राजिल की तरह फूहड़ता ना होकर भारतीय संस्कृति की झलक मिलती है । माली समाज में यह अनूठी परम्परा सैंकड़ों सालों से चली आ रही है । ब्राज़ील के मशहूर कार्निवाल की तर्ज़ पर डीडवाना में भी होली कार्निवाल पिछले सेकड़ों सालों से मनाया जाता है । हजारो लोग इन स्वांग धारियों के कारनामे देखने दूर दूर से आते है. तो भी छते भी महिलाओ से अटी होती है । पूरा आयोजन लोग अपने स्तर पर ही करते है . लोग चाहते है की सरकार इस आयोजन को बढ़ावा देने के लिए कोशिश करे और इस आयोजन को राज्य पर्व का दर्जा दे. तीज तँयोहार मेले और परम्पराये हमारी भारतीय संस्कृति का संवाहक है बीते कुछ वर्षों में परम्पराओ में कमी आई है जरूरत इस बात की है कि सरकार इनका संरक्षण करे ताकि हम इनको आने वाली पीढ़ियों तक ले जा सके ।

हनु तंवर नि:शब्द

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