मेनार में शौर्य के पर्व पर रातभर गूंजी बन्दूकें, खनकी तलवारें

zzzलोकेश मेनारिया
मेनार। जिले के मेनार कस्बे में ऐतिहासिक शौर्य का पर्व जमराबीज मंगलवार को हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया।कस्बे में मंगलवार को जमराबीज पर मोर्चाबन्दी एवं गैर नृत्य ने ऐसा समा बॉधा जैसे युद्ध में फौज किसी दुश्मन की ललकार पर फतह करने पहूॅची हो। शौर्य और विरता के इस त्यौहार में करीब 16 हजार लोगों की उपस्थिति में लाखों रूपये के पटाखे व बन्दुकों से हवाई-फायर किए गए। पर्व को लेकर सुबह से ही लोगों मे ंचहल-पहल शुरू हो गई थी। बडे-बुजुर्ग सभी के पारम्परिक वैषभुशा व सिरपर मेवाडी पगडी व साफा धारण किए हुए थे। बाहर से आए मेहमानों के लिए औंकारेश्वर महाराज के चबुतरे पर लाल झाजम डाली गई और आतिथ्य परम्परा के तहत गुलाल लगाकर स्वागत किया गया। यह झाजम और ढोल उदयपुर राज-परिवार की ओर से गांव के शौर्य और विरता से प्रसन्न होकर उपहार स्वरूप प्रदान किए गए थे। कुछ लोगों के हाथों में बन्दुके थी तो कुछ पटाखे जलाने में व्यस्त थे। शाम को घरों में नाना प्रकार के व्यंजन बनाए गए। रात को करिब 9 बजेगांव के मुख्य बाजार में आने वाले सभी मार्गो पर ग्रामीणों द्वारा सुसज्जित वेषभूशा व बन्दुकों के साथ आकर मोर्चा बन्दी की। इसदरम्यान नाई समाज के लोगों द्वारा मशाले प्रज्जवलित की गई।मशालों मे ंतेली समाज के लोगों द्वारा तेल डाला जारहा था। करिब एक घण्टें तक सभी मोर्चों पर भव्य आतिशबाजी व हवाई-फायर किए गए।
बन्दुको व तोपो के फायर से गूंजा मेनार
इस दौरान नंगारसी के ढोल की आवाज में परिवर्तन होते हीं मोर्चाबन्दी खुल गई और लोग मैदान में आ गए और जमकर बन्दंकों से हवाई-फायर व आतिशबाजी की गई। करीब दो घण्टे चली जोरदार हवाई-फायर व भव्य आतिशबाजी के दौरान जैन समाज के लोगों ने आतिथ्य परम्परा के तहत सभी लोगों का गुलाल लगाकर स्वागत किया। भव्य आतिषबाजी व स्वागत परम्परा को देखकर औंकारेश्वर महाराज के चबुतरे पर खडे अन्य गांवो व कस्बो से आए मेहमान अभिभूत हो उठे।
इतिहास और शौर्य का हुआ वाचन
इसके पश्चात् गांव के शौर्य और वीरता पर आधारित गांव के इतिहास को पढने के लिए सभी लोग भव्य आतिशबाजी व हवाई-फायर करते हुए घाटी पर बाहुचर माता के मन्दिर के पास पहुॅचे जहॉ राधाकिशन व सुखलाल नंगारसी के द्वारा समाज के शौर्य और इतिहास का वाचन किया गया।
यह है मेनार के शौर्य और वीरता का इतिहास
महाराणा अमरसिंह के समय समूचे मेवाड मेंजगह-जगह मुगल सैनिक छावनियां डाले पडे थे। मुगल सैनिकों के अत्याचार से जनता दुखी थी और इनसे छुटकारा पाना चाहती थी। विक्रमसंवत 1657 में होली के दिनों में मेनार के ब्राह्मणों ने योजना बनाकर मुगलों के थाने पर हमला कर दिया और मुगल सैना को मौत के घाट उतार दिया। कई वीर शहिद हुए। यह दिन चेत्र सुदी द्वितिया का था इसी उपलक्ष्य में जमराबीज मनाया जाता है। जिसे देखने हजारों की तादाद में नीमच, मन्दसैर, रतलाम ,इन्दौर ,मुम्बई, दिल्ली, उदयपुर,राजसमन्द सहित अनेकस्थानो से लोग उमडते है।
महाराणा ने प्रसन्न होकर दिया पारितोषित
मुगल सैनिको पर विजय होने पर मेवाड के महाराणा ने मेनारवासियों के पराक्रम पर प्रसन्न होकर पारितोषित के रूप में लाल झाजम ,रणबांकुरा ढोल, सिरपर कलंगी धारण करने का अधिकार तथा मेवाड के सौलह उमरावों के साथ ही सतरवा उमराव का पद एवं मेहता परिवार की पदवी प्रदान की।इस दौरान मेनार को 52000 बीघा भूमि दी गई।
ढोल की थाप पर हुआ गैरनृत्य
गांव में इतिहास के वाचन के बाद तलवारों की गैर खेली गई। गैरनृत्य के दौरान विभिन्न कलाओं से गांव के कलाकारों ने दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर दिया। यह कार्यक्रम सुबह लगभग पॉच बजे तक चला। मुख्य चौराहे पर ढोल की थाप पर करीब दो घण्टे तक तलवारों की गैर खेली गई।
कोतवाल संभालता है मुख्य जिम्मेदारी
गांव में इस पर्व परवैसे तो सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभते हैं फिर भी मोर्चाबन्दी,हवाई फायर से लेकर ईतिहास वाचन तक कोतवाल मुख्य जिम्मेदारी संभालता हैं,सुरक्षा की दृश्टि से पुलिस भी उपस्थित रहती हैं किन्तु कोतवाल व रावत समाज की भी मुख्य भूमिका रहती हैं।

error: Content is protected !!