धन्यवाद कहना सीखीये — Part 3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
धन्यवाद दें उन मित्रों-स्वजनों को जिन्होंने आपको आपसी बातचीत में कटु-कर्कश बोली के स्थान पर शहद जैसी मीठी बोली बोलने के लिये प्रेरित किया था | संत कबीर ने सही ही कहा था “बोली एक अनमोल है,जो कोई बोलै जानि,हिये तराजू तौलि के,तब मुख बाहर आनि।
धन्यवाद दें उन मित्रों-स्वजनों एवं आलोचकों को जिन्होंने आपकी निंदा अथवा आलोचना की है क्योंकि वो मुफ्त में ही आपको आपकी कमजोरियां को बतला कर आपको उन कमजोरियों को दूर करने का मोका देते हैं | याद रखिये संत कबीरदासजी ने सही ही कहा था कि “निंदक नियरे राखिए,ऑंगन कुटी छवाय,बिन पानी,साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय। अरस्तु ने कहा था कि आलोचनाएं जीवन का हिस्सा होती हैं। अक्सर लोगों को आलोचनाएं और उनकी कमियां बताया जाना पसंद नहीं आता। वास्तविकता तो यह ही है कि दूसरे ही हमारी कमियों के बारे में ज्यादा सही बता सकते हैं। यह बात भी समझना चाहिए कि आलोचना हमेशा अपमान नहीं होती। यह किसी की सोच अथवा उनका आकलन भी हो सकता है। इसलिए जब किसी की आलोचना का सामना करना पड़े तो सम्मानजनक जवाब दिया जाना चाहिए क्योंकि आलोचनाएं हमें बेहतरी की तरफ ही ले जाती हैं।आलोचना करने वाले से सलाह भी ली जा सकती है कि कैसे समस्या का समाधान किया जाए। सच्चाई तो यही है कि आलोचनाएं इंसान को जीवन में सफलता के मार्ग पर ले जाने में साहयक बनती हैं।
धन्यवाद दें उन मित्रों-स्वजनों को जिन्होंने आपको आपकी अपनी इच्छाओं के मुताबिक चीज़ों को पसंद या नापसंद करने की आज़ादी देने की सलाह दी थी।

डा.जे.के.गर्ग, सन्दर्भ—मेरी डायरी के पन्ने,संतों के प्रवर्चन एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकायें | Visit our blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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