नवरात्रि —-नारी सशक्तिकरण की आराधना का महोत्सव Part 1

डा. जे.के.गर्ग
किसी भी देश की प्रगति एवं विकास नारी के सशक्तिकरण के बिना असंम्भव है | इसी अवधारणा को मान्यता देते हुये भारत में प्राचीन काल से ही नारी को देवी तुल्य मान कर सम्मान देने की गोरवमयी परम्परा रही है | नवरात्रा के नो दिनो का पर्व हमारे समाज की इसी हमारी परम्परा की पुष्टी करता है | नवरात्रा की प्रथम “देवीशैलपुत्री” के जरिये ऋषि-मुनि जहाँ हम लोगों को पहाड़ों के प्राक्रतिक स्वरूप एवं पर्यावरण को सुरक्षित बनाये रखने का संदेश देते हैं, वहीं दुसरी तरफ “देवी ब्रह्मचारिणी” के माध्यम से हम सभी को जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करते रहने के साथ साथ नवीन ज्ञान अर्जन और शोध कार्य करते रहने का संदेश देती है | सच्चाई तो यही है कि महिलायें शुरू से ही सहह्र्द्यता, सोहार्द, स्नेह और ममता की प्रतिमूर्ति रही है, “देवी चन्द्रघंटा” हम सभी को नारी की सुन्दरता के साथ साथ चन्द्रमा से मिलनेवाली शीतलता,शालीनता,सहनशीलता,सहजता, सकारात्मकता एवं शांति का बोध करवाती है | “देवी कूष्मांडा” भी हम सभी को संसार में माता-बहिनों के अस्तित्व का बोध करवाती है इसीलिये देवी कूष्मांडा को नारी सम्मान तथा स्रष्टी रचना में इन्हें अक्षुण्ण बनाये रखनेवाली देवी के रूप में जाना जाता है | कष्टों, मुसीबतों, विपदाओं (काल) के हरण के प्रतीक में हम ” देवी कालरात्री” की आराधना करते हैं | शांति का संदेश वाहक सफेद रंग से सुशोभित माता “महागोरी”, “ देवी सिद्धिदात्री” ( जो जीव मात्र की सुरक्षा,देखभाल करती है वह कल्याणकारी भी है) सभी सिद्धियों को संपुष्ट करने वाली हैं | अत: ये सभी देवियाँ नारीयों में पाये जाने हर प्रकार के गुंणों को संसार में संजोये रखने का पावन संदेश देती |

डा. जे.के.गर्ग, सन्दर्भ— मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्रिकाएँ, भारत ज्ञान कोष, संतों के प्रवचन,जनसरोकार, आदि
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